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'''28.''' किसी नामवाचक संज्ञा, किसी रंग के नाम, किसी पदार्थ के नाम, किसी संख्यांक, कम्पास के किसी बिन्दु के नाम, इत्यादि को निदर्शनात्मक विधि से परिभाषित किया जा सकता है। संख्या '''दो''' की परिभाषा — दो पेचों को इंगित करते हुए — यह कह कर करना कि "उसको '''दो''' कहते हैं" — बिल्कुल ठीक है। — किन्तु '''दो''' को इस प्रकार कैसे परिभाषित किया जा सकता है? जिस व्यक्ति को आप यह परिभाषा देते हैं वह यह नहीं जानता कि आप "'''दो'''" किसे कहते हैं; वह यह समझेगा कि "'''दो'''" तो इस पेच-समूह को दिया गया नाम है! — उसका ऐसा समझना ''संभव'' तो है; किन्तु संभवत: वह ऐसा समझता नहीं। वह इससे बिल्कुल उलट गलती कर सकता है; जब मेरा अभिप्राय इस पेच-समूह को नाम देने का तो यह हो सकता है कि वह उस नाम को संख्यांक समझे। और उसी प्रकार जब मैं उसे निदर्शनात्मक परिभाषा द्वारा किसी व्यक्ति का नाम बताता हूँ तो यह उतना ही संभव है कि वह उस नाम को किसी रंग, किसी जाति, अथवा कम्पास के किसी बिन्दु का ही, नाम समझे। अर्थात् निदर्शनात्मक परिभाषा को तो ''सदैव'' विविध प्रकार से समझा जा सकता है। | '''28.''' किसी नामवाचक संज्ञा, किसी रंग के नाम, किसी पदार्थ के नाम, किसी संख्यांक, कम्पास के किसी बिन्दु के नाम, इत्यादि को निदर्शनात्मक विधि से परिभाषित किया जा सकता है। संख्या '''दो''' की परिभाषा — दो पेचों को इंगित करते हुए — यह कह कर करना कि "उसको '''दो''' कहते हैं" — बिल्कुल ठीक है। — किन्तु '''दो''' को इस प्रकार कैसे परिभाषित किया जा सकता है? जिस व्यक्ति को आप यह परिभाषा देते हैं वह यह नहीं जानता कि आप "'''दो'''" किसे कहते हैं; वह यह समझेगा कि "'''दो'''" तो इस पेच-समूह को दिया गया नाम है! — उसका ऐसा समझना ''संभव'' तो है; किन्तु संभवत: वह ऐसा समझता नहीं। वह इससे बिल्कुल उलट गलती कर सकता है; जब मेरा अभिप्राय इस पेच-समूह को नाम देने का तो यह हो सकता है कि वह उस नाम को संख्यांक समझे। और उसी प्रकार जब मैं उसे निदर्शनात्मक परिभाषा द्वारा किसी व्यक्ति का नाम बताता हूँ तो यह उतना ही संभव है कि वह उस नाम को किसी रंग, किसी जाति, अथवा कम्पास के किसी बिन्दु का ही, नाम समझे। अर्थात् निदर्शनात्मक परिभाषा को तो ''सदैव'' विविध प्रकार से समझा जा सकता है। | ||
'''29.''' संभवतः आप कहेंगे: '''दो''' तो निदर्शनात्मक रूप से केवल इस प्रकार ही परिभाषित किया जा सकता है: "यह ''संख्या'' '''दो''' कहलाती है"। क्योंकि "संख्या" शब्द यह दर्शाता है कि भाषा में, व्याकरण में, उस शब्द के लिए हम कौन सा स्थान नियत करते हैं। परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि निदर्शनात्मक परिभाषा के बोध से पूर्व ही "संख्या" शब्द की व्याख्या करनी होगी। — परिभाषा में "संख्या" शब्द निश्चय ही उस स्थान को दर्शाता है, उस स्थान को बताता है जहाँ हम उस शब्द को रखते हैं। और हम यह कहकर मिथ्याबोधों का निवारण कर सकते हैं; "यह ''रंग'', अमुक-अमुक कहलाता है", "यह ''लम्बाई'', अमुक-अमुक कहलाती है" इत्यादि, इत्यादि। अर्थात्, मिथ्याबोधों का कई बार इस प्रकार निवारण हो जाता है। किन्तु "रंग" या "लम्बाई" शब्द क्या ''एक'' ही रूप में ग्राह्य हैं? — वस्तुतः, उनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। — अन्य शब्दों से परिभाषित करने की! और इस श्रृंखला में अंतिम परिभाषा का क्या होगा? (मत कहिए: "'अंतिम' परिभाषा तो होती ही नहीं"। यह तो ऐसा कहने जैसा ही होगा: "इस वीथी में अंतिम गृह है ही नहीं: एक और गृह का निर्माण तो सदैव संभव है"।) | '''29.''' संभवतः आप कहेंगे: '''दो''' तो निदर्शनात्मक रूप से केवल इस प्रकार ही परिभाषित किया जा सकता है: "यह ''संख्या'' '''दो''' कहलाती है"। क्योंकि "संख्या" शब्द यह दर्शाता है कि भाषा में, व्याकरण में, उस शब्द के लिए हम कौन सा स्थान नियत करते हैं। परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि निदर्शनात्मक परिभाषा के बोध से पूर्व ही "संख्या" शब्द की व्याख्या करनी होगी। — परिभाषा में "संख्या" शब्द निश्चय ही उस स्थान को दर्शाता है, उस स्थान को बताता है जहाँ हम उस शब्द को रखते हैं। और हम यह कहकर मिथ्याबोधों का निवारण कर सकते हैं; "यह ''रंग'', अमुक-अमुक कहलाता है", "यह ''लम्बाई'', अमुक-अमुक कहलाती है" इत्यादि, इत्यादि। अर्थात्, मिथ्याबोधों का कई बार इस प्रकार निवारण हो जाता है। किन्तु "रंग" या "लम्बाई" शब्द क्या ''एक'' ही रूप में ग्राह्य हैं? — वस्तुतः, उनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। — अन्य शब्दों से परिभाषित करने की! और इस श्रृंखला में अंतिम परिभाषा का क्या होगा? (मत कहिए: "----'अंतिम' परिभाषा तो होती ही नहीं"। यह तो ऐसा कहने जैसा ही होगा: "इस वीथी में अंतिम गृह है ही नहीं: एक और गृह का निर्माण तो सदैव संभव है"।) | ||
निदर्शनात्मक परिभाषा में "संख्या" शब्द आवश्यक है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके बिना कोई दूसरा व्यक्ति उस परिभाषा को मेरी इच्छा से विपरीत रूप में ग्रहण करता है या नहीं। और यह निर्भर करता है उन परिस्थितियों पर जिनमें वह परिभाषा दी जा रही है, और उस व्यक्ति पर जिसे मैं यह परिभाषा देता हूँ। | निदर्शनात्मक परिभाषा में "संख्या" शब्द आवश्यक है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके बिना कोई दूसरा व्यक्ति उस परिभाषा को मेरी इच्छा से विपरीत रूप में ग्रहण करता है या नहीं। और यह निर्भर करता है उन परिस्थितियों पर जिनमें वह परिभाषा दी जा रही है, और उस व्यक्ति पर जिसे मैं यह परिभाषा देता हूँ। |