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(Created page with "<html> <style> @import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Google+Sans:wght@400;700&display=swap'); .mw-parser-output * { font-family: 'Google Sans', sans-serif; } i { display: inline-block; margin-right: 0.2em; } </style> </html> '''भाग I''' '''1.''' "जब मेरे अग्रज किसी वस्तु का नाम पुकार कर उस वस्तु की ओर चले तो मैंने यह देखा...") |
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विभिन्न शब्द-प्रकारों के अन्तर के अस्तित्व के बारे में तो ऑगस्टीन कुछ कहते ही नहीं। मेरे विचार से यदि आप भाषा को इस प्रकार निरूपित करते हैं तो आप मुख्य रूप से संज्ञा, — जैसे "मेज", "कुर्सी", "रोटी" एवं लोगों के नामों — के बारे में ही सोचते हैं, और केवल अपरोक्ष रूप से ही कुछ विशेष कार्यों एवं गुणों के नामों के बारे में सोचते हैं, और शेष शब्द-प्रकारों के बारे में कुछ भी सोचते ही नहीं । | विभिन्न शब्द-प्रकारों के अन्तर के अस्तित्व के बारे में तो ऑगस्टीन कुछ कहते ही नहीं। मेरे विचार से यदि आप भाषा को इस प्रकार निरूपित करते हैं तो आप मुख्य रूप से संज्ञा, — जैसे "मेज", "कुर्सी", "रोटी" एवं लोगों के नामों — के बारे में ही सोचते हैं, और केवल अपरोक्ष रूप से ही कुछ विशेष कार्यों एवं गुणों के नामों के बारे में सोचते हैं, और शेष शब्द-प्रकारों के बारे में कुछ भी सोचते ही नहीं । | ||
अब भाषा के निम्नलिखित प्रयोग के बारे में सोचिए: मैं किसी को खरीददारी के लिए बाजार भेजता हूँ। मैं उसे "पाँच लाल सेब" लिखा हुआ पर्चा देता हूँ। वह उसे लेकर दुकानदार के पास जाता है। दुकानदार "सेब" लिखे हुए खाने को खोलता है; फिर वह सारिणी में "लाल" शब्द को देखता है जिस के सामने एक रंग का नमूना है; और फिर वह "पाँच" शब्द आने तक गिनती गिनता है — मैं मानता हूँ कि उसने गिनती कण्ठस्थ कर रखी है और वह गिनती के प्रत्येक पग पर खाने में से एक सेब रंग वाले नमूने के साथ मिलाकर निकालता है। — इस प्रकार और इससे मिलते जुलते | अब भाषा के निम्नलिखित प्रयोग के बारे में सोचिए: मैं किसी को खरीददारी के लिए बाजार भेजता हूँ। मैं उसे "पाँच लाल सेब" लिखा हुआ पर्चा देता हूँ। वह उसे लेकर दुकानदार के पास जाता है। दुकानदार "सेब" लिखे हुए खाने को खोलता है; फिर वह सारिणी में "लाल" शब्द को देखता है जिस के सामने एक रंग का नमूना है; और फिर वह "पाँच" शब्द आने तक गिनती गिनता है — मैं मानता हूँ कि उसने गिनती कण्ठस्थ कर रखी है और वह गिनती के प्रत्येक पग पर खाने में से एक सेब रंग वाले नमूने के साथ मिलाकर निकालता है। — इस प्रकार और इससे मिलते जुलते ढंग से ही हम शब्दों से काम चलाते हैं — “लेकिन उसे कैसे पता चलता है कि उसे कहाँ और कैसे 'लाल' शब्द का अर्थ ढूँढना है और उसे 'पाँच' शब्द के साथ क्या करना है?" बहरहाल मैं समझता हूँ कि वह वैसा ही ''करता'' है जैसे मैंने कहा है। व्याख्याओं का कहीं न कहीं तो अन्त होता ही है । — परन्तु "पाँच" शब्द का अर्थ क्या है ? — इस प्रकार का कोई प्रश्न यहाँ नहीं उठता, प्रश्न तो यह है कि "पाँच" शब्द का प्रयोग कैसे किया जाता है। | ||
'''2.''' अर्थ का यह दार्शनिक प्रत्यय भाषा के प्रयोग के बारे में किये गए आदिम चिंतन में पाया जाता है । परन्तु यह भी कहा जा सकता है कि भाषा का यह निरूपण हमारी भाषा से भी अधिक आदिम भाषा का है। | |||
आइए हम ऐसी भाषा की कल्पना करें जो ऑगस्टीन के विवरण के अनुरूप हो । यह भाषा एक गृहनिर्माण करने वाले राजमिस्त्री '''क''' एवं उसके सहायक '''ख''' के बीच ''संलाप'' के लिए है । '''क''' निर्माण-पत्थरों से निर्माण कर रहा है: उनमें गुटके, खम्बे पट्टियाँ और कड़ियाँ हैं । '''ख''' का काम '''क''' की आवश्यकता के क्रम में, '''क''' को पत्थर देना है। इस हेतु वे एक ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिसमें "गुटका", "खम्बा", "पट्टी", "कड़ी" शब्द आते हैं। '''क''' इन शब्दों को बोलता है; — '''ख''' उस पत्थर को ले आता है जो कि उसने उस शब्द के उच्चारण पर लाना सीखा है। — इसे एक संपूर्ण आदिम भाषा समझिए। | |||
'''3.''' यहाँ हम कह सकते हैं कि ऑगस्टीन किसी संलाप-व्यवस्था का उदाहरण देते हैं; किन्तु भाषा कहलाने वाला प्रत्येक क्रिया-कलाप ऐसी व्यवस्था नहीं होता । और उन बहुत सी स्थितियों में जिनमें यह प्रश्न उठता है: "क्या यह एक उपयुक्त विवरण है या नहीं?" यही कहना पड़ता है: “हाँ यह उपयुक्त है, किन्तु केवल संकीर्ण सीमित क्षेत्र के लिए, न कि उस सारे क्षेत्र के लिए जिसका आप वर्णन करने का दावा कर रहे थे।" | |||
यह ऐसा ही होगा जैसे कि कोई कहे : "किसी खेल को खेलना तो कुछ वस्तुओं को नियमानुसार एक पटल पर घुमाना फिराना भर ही होता है......" — और हम उत्तर दें: आप केवल पटल पर खेले जाने वाले खेलों के बारे में ही सोचते जान पड़ते हैं, किन्तु अन्य प्रकार के खेल भी होते हैं। आप अपनी परिभाषा को संशोधित कर सकते हैं, उसे उन्हीं खेलों तक स्पष्टतः सीमित करके जिन पर आपकी परिभाषा लागू होती है। | |||
'''4.''' किसी ऐसी लिपि की कल्पना कीजिए जिसमें अक्षर ध्वनियों के नाम होने के साथ-साथ विराम-चिह्न एवं जोर देने के चिह्न भी हों। (लिपि को ध्वनि-व्यवस्थाओं का वर्णन देने की भाषा के रूप में भी समझा जा सकता है।) अब कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति यूँ समझे कि यह लिपि अक्षरों एवं ध्वनियों का साहचर्य मात्र है तथा उन अक्षरों का अन्य कोई कार्य ही नहीं है। इस लिपि जैसी अति सरल संकल्पना जैसी ही है ऑगस्टीन की भाषा संबंधी संकल्पना । | |||
'''5.''' यदि हम §1 में दिये गये उदाहरण का निरीक्षण करें, तो शायद हमें इस बात की भनक पड़ जाए कि भाषा का प्रयोग शब्दार्थ की ऐसी संकल्पना के कोहरे से ऐसा घिरा हुआ है कि उसे स्पष्ट देखना असंभव है। भाषा के आदिम प्रकार के ऐसे उपयोगों का परीक्षण करने से यह कोहरा हट जायेगा जिनमें शब्दों के उद्देश्य एवं क्रियाकलाप स्पष्ट होते हैं। | |||
जब बच्चा बोलना सीखता है तो भाषा के ऐसे ही आदिम प्रकारों का प्रयोग करता है। यहाँ भाषा का सिखाना व्याख्या न होकर प्रशिक्षण है। | |||
'''6.''' हम कल्पना कर सकते हैं कि §2 में वर्णित भाषा '''क''' एवं '''ख''' की, अपितु किसी जन-जाति की ''सम्पूर्ण'' भाषा है। बच्चों को यही सिखाया जाता है कि ''यही'' कार्य करें, उनको करते हुए ''इन्हीं'' शब्दों का प्रयोग करें, और दूसरे के शब्दों पर ''यही'' प्रतिक्रिया करें। | |||
अध्यापक का वस्तुओं को इंगित करते हुए, बच्चों का ध्यान उस ओर आकृष्ट करना और ऐसा करते समय किसी शब्द का उच्चारण करना इस प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है; उदाहरणार्थ "पट्टी" शब्द का उच्चारण करते हुए उचित आकार की ओर इंगित करना। (मैं इसे "निदर्शनात्मक परिभाषा" नहीं कहना चाहता क्योंकि बच्चा अभी यह नहीं पूछ सकता कि इसका नाम क्या है। मैं इसे शब्दों का "निदर्शनात्मक शिक्षण" कहूँगा। — मैं कहता हूँ कि यह प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है; इसलिए नहीं कि इसके अलावा प्रशिक्षण के किसी अन्य प्रकार की कल्पना नहीं की जा सकती बल्कि इसलिए कि मानव-जाति के साथ होता ऐसा ही है।) यह कहा जा सकता है कि शब्दों का निदर्शनात्मक प्रशिक्षण शब्द और विषय का साहचर्य स्थापित करता है। ??? इसका अर्थ क्या है? इसके तो अनेक अर्थ हो सकते हैं; सर्वप्रथम तो हम संभवतः यही सोचेंगे कि किसी शब्द के सुनने पर बच्चे के मानस पटल पर उस विषय का चित्र उभर आता है । किन्तु यदि ऐसा होता भी हो, तो भी — क्या शब्द का प्रयोजन यही है? — हाँ यह प्रयोजन ''भी हो सकता'' है। — मैं शब्दों के (ध्वनियों की एक श्रृंखला के) ऐसे प्रयोग की कल्पना कर सकता हूँ। (शब्द का उच्चारण करना तो कल्पना के स्वर-मण्डल पर स्वर को छेड़ने जैसा ही है । परन्तु §2 की भाषा में शब्दों का प्रयोजन बिम्बोद्दीपन तो नहीं है। (हालांकि संभव है कि हमें आगे चलकर पता चले कि बिम्बोद्दीपन भाषा के वास्तविक प्रयोजन को समझने में सहायक हो सकता है ।) | |||
परन्तु यदि निदर्शनात्मक शिक्षण का ऐसा परिणाम है — तो क्या यह कहना होगा कि इस से शाब्द-बोध प्रभावित होता है? क्या आप "पट्टी", कथन को नहीं समझते जब आप इस कथन को सुनकर अमुक कार्य करने लगते हैं? — बेशक, निदर्शनात्मक शिक्षण ऐसा करने में सहायक तो हुआ, परन्तु विशेष प्रशिक्षण के संयोग के साथ ही । अन्य प्रशिक्षण के साथ, इन्हीं शब्दों का वही निदर्शनात्मक शिक्षण नितान्त भिन्न बोध कराने वाला होता । | |||
"मैं छड़ और टेकन को जोड़कर एक ब्रेक बना देता हूँ" — हाँ, तभी जब कि शेष यन्त्र उपलब्ध हों। उस पूरे यन्त्र के साथ तो यह ब्रेक-टेकन है, परन्तु उससे वियुक्त होकर तो वह टेकन भी नहीं। ऐसी अवस्था में तो यह कुछ भी हो सकता है — या फिर कुछ भी नहीं । | |||
'''7.''' §2 की भाषा के वास्तविक प्रयोग में कोई व्यक्ति तो शब्दों का उच्चारण करता है, और कोई अन्य व्यक्ति उन पर अमल करता है। इस भाषा को सिखाने में इस तरह की प्रक्रिया होगी: शिक्षार्थी विषयों के नाम बोलता है; यानी जब अध्यापक पत्थर की ओर इशारा करता है तो शिक्षार्थी उस शब्द का उच्चारण करता है । — और इससे भी अधिक सरल प्रक्रिया होगी: शिक्षार्थी अध्यापक के शब्दों को दोहराता है — ये दोनों ही भाषा से मिलती-जुलती प्रक्रियाएं हैं। | |||
हम §2 के शब्दों की प्रयोगविधि की पूर्ण प्रक्रिया को उन खेलों में से एक खेल मान सकते हैं जिनसे बच्चे अपनी मातृभाषा सीखते हैं। मैं इन खेलों को "भाषा-खेल" कहूँगा, और कभी-कभी किसी आदिम भाषा को भी भाषा-खेल कहूँगा । | |||
और पत्थरों के नाम बोलने एवं अन्य व्यक्तियों के द्वारा बोले गए शब्दों को दोहराने की प्रक्रियाएं भी भाषा-खेल कही जा सकती हैं। रिंग-ए-रिंग-ए-रोजिज़ जैसे खेलों में शब्दों के प्रयोग के बारे में सोचिए । | |||
भाषा और उसके साथ गंथी हुई क्रियाओं के साकल्य को भी मैं "भाषा-खेल" कहूँगा । | |||
'''8.''' आइए अब हम §2 के किसी भाषा-विस्तार का निरीक्षण करें। मान लीजिए कि उसमें "गुटका", "खम्बा" इत्यादि चार शब्दों के अतिरिक्त अब उन शब्दों की श्रृंखला भी है जिनका प्रयोग वही है जो कि 81 में दुकानदार द्वारा किए गए अंकों का प्रयोग है (यह वर्णमाला के अक्षरों की श्रृंखला भी हो सकती है)। और मान लीजिए कि उसमें संकेत-भंगिमा से जुड़े दो और शब्द हैं जो "यह" एवं "वहाँ" भी हो सकते | |||
हैं (क्योंकि इससे उनका प्रयोग मोटे तौर पर इंगित होता है); और अन्ततः मान लीजिए उसमें रंगों के कई नमूने भी हैं। "'''ई'''-पट्टियाँ-वहाँ" जैसा आदेश '''क''' देता है। इसी के साथ-साथ वह अपने सहायक को रंग का एक नमूना दिखाता है, और जब वह "वहाँ” कहता है तो निर्माण-स्थल के किसी स्थान की ओर संकेत भी करता है। '''ई''' पर्यन्त वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर के लिए '''ख''' पट्टियों के ढेर में से, नमूने के रंग की पट्टियां निकालता है और उन्हें '''क''' के द्वारा दिखाए गए स्थान पर लाता है। — अन्य अवसरों पर क आदेश देता है: "यह वहाँ"। "यह" कहने के साथ-साथ वह किसी निर्माण-पत्थर की ओर संकेत करता है। और इसी प्रकार के कई अन्य आदेश देता है। | |||
'''9.''' जब कोई बच्चा इस भाषा को सीखता है तो उसे 'अंक' शृंखला '''अ''', '''आ''', '''इ''', '''ई''',... को कंठस्थ करना पड़ता है। और उसे उनका प्रयोग भी सीखना पड़ता है । — क्या इस प्रशिक्षण में इन शब्दों का निदर्शनात्मक प्रशिक्षण सम्मिलित होगा? — उदाहरणार्थ, लोग पट्टियों की ओर संकेत करके गिनेंगेः "अ, आ, इ..." पट्टियां । — गणना के लिए प्रयुक्त होने की बजाय, तत्काल दिखाई देने वाले विषय-समूहों को इंगित करने वाले अंकों का निदर्शनात्मक शिक्षण, "गुटका", "खम्बा" इत्यादि शब्दों के निदर्शनात्मक शिक्षण जैसा ही होता है। बच्चे प्रथम पाँच या छः अंक इसी प्रकार सीखते हैं। | |||
क्या "वहाँ" और "यह" भी निदर्शनात्मक विधि से सिखाए जाते हैं? — सोचिए कि किस प्रकार उनका प्रयोग सिखाया जाता है। संभवतः स्थलों एवं वस्तुओं की ओर संकेत करके ऐसा किया जा सकता है। पर तब यह मानना पड़ेगा कि शब्द द्वारा इंगित करने का काम हम प्रयोग सिखाने में ही नहीं करते, ''प्रयोग'' में भी करते हैं। | |||
'''10.''' अब प्रश्न उठता है कि इस भाषा के शब्दों का ''अर्थ'' क्या है? — उनके प्रयोग यदि उनके अर्थों को नहीं दशति तो किसे उनके अर्थ दर्शाने वाला माना जाए? और उसका विवरण तो हम दे ही चुके हैं। तो हमारा कहना है कि "इस शब्द का अर्थ यह है" इस अभिव्यक्ति को उसी विवरण का अंग बनाया जाए। दूसरे शब्दों में इस विवरण का आकार होना चाहिए: "... शब्द का अर्थ है..."I | |||
"पट्टी शब्द के प्रयोग के विवरण का रूपान्तर करके यह कहा जा सकता है कि अमुक शब्द का अर्थ अमुक वस्तु है। उदाहरणार्थ, जब हमें इस भ्रान्ति का निराकरण करना हो कि "पट्टी" शब्द उस निर्माण-पत्थर के आकार का द्योतक है जिस पत्थर को हम वस्तुतः "गुटका" कहते हैं तो ऐसा ही किया जाएगा। किन्तु इस प्रकार का '''द्योतन''<nowiki/>', अर्थात् इन शब्दों का शेष सब बातों के लिए प्रयोग, तो पहले से ही ज्ञात है। |