फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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'''69.''' किसी को हम कैसे समझाएं कि खेल क्या होता है? मैं कल्पना करता हूँ कि हमें उसे खेलों का विवरण देना चाहिए, और हम यह भी कह सकते हैं: "यह और ''इस प्रकार के विषय'' 'खेल' कहलाते हैं"। और क्या हमें स्वयं भी इसके बारे में इससे अधिक कुछ विदित है? या केवल अन्य व्यक्तियों को ही हम यह नहीं बता सकते कि यथार्थतः खेल क्या होता है? — किन्तु इसे अनभिज्ञता तो नहीं कहा जा सकता। हमें सीमाओं का पता नहीं है क्योंकि कोई सीमा बनाई ही नहीं गई। यानी हम — किसी विशेष प्रयोजन हेतु सीमा बना सकते हैं। प्रत्यय को प्रयोग के योग्य बनाने के लिए क्या यही करना होता है? कदापि नहीं! (सिर्फ उस विशेष प्रयोजन को छोड़कर) वैसे ही जैसे 'एक पेस' को लम्बाई के पैमाने के रूप में प्रयोग करने योग्य बनाने के लिए हमें एक पेस = 75 से.मी. ऐसी परिभाषा देनी पड़ी। और यदि आप कहना चाहें, "किन्तु फिर भी इससे पूर्व तो वह यथार्थ पैमाना नहीं था", तो मैं उत्तर दूंगाः ठीक है, यह अयथार्थ ही था। — यद्यपि अभी भी आप को मुझे यथार्थता की परिभाषा देनी है।
'''69.''' किसी को हम कैसे समझाएं कि खेल क्या होता है? मैं कल्पना करता हूँ कि हमें उसे खेलों का विवरण देना चाहिए, और हम यह भी कह सकते हैं: "यह और ''इस प्रकार के विषय'' 'खेल' कहलाते हैं"। और क्या हमें स्वयं भी इसके बारे में इससे अधिक कुछ विदित है? या केवल अन्य व्यक्तियों को ही हम यह नहीं बता सकते कि यथार्थतः खेल क्या होता है? — किन्तु इसे अनभिज्ञता तो नहीं कहा जा सकता। हमें सीमाओं का पता नहीं है क्योंकि कोई सीमा बनाई ही नहीं गई। यानी हम — किसी विशेष प्रयोजन हेतु सीमा बना सकते हैं। प्रत्यय को प्रयोग के योग्य बनाने के लिए क्या यही करना होता है? कदापि नहीं! (सिर्फ उस विशेष प्रयोजन को छोड़कर) वैसे ही जैसे 'एक पेस' को लम्बाई के पैमाने के रूप में प्रयोग करने योग्य बनाने के लिए हमें एक पेस = 75 से.मी. ऐसी परिभाषा देनी पड़ी। और यदि आप कहना चाहें, "किन्तु फिर भी इससे पूर्व तो वह यथार्थ पैमाना नहीं था", तो मैं उत्तर दूंगाः ठीक है, यह अयथार्थ ही था। — यद्यपि अभी भी आप को मुझे यथार्थता की परिभाषा देनी है।


'''70.''' "किन्तु यदि 'खेल' प्रत्यय का इस प्रकार सीमांकन नहीं हुआ है तो आप वास्तव में नहीं जानते कि आपका 'खेल' से क्या तात्पर्य है।" लेकिन जब मैं यह
'''70.''' "किन्तु यदि 'खेल' प्रत्यय का इस प्रकार सीमांकन नहीं हुआ है तो आप वास्तव में नहीं जानते कि आपका 'खेल' से क्या तात्पर्य है।" लेकिन जब मैं यह विवरण देता हूँ: "मैदान पौधों से आच्छादित था" — तो क्या आप कहना चाहेंगे कि जब तक मैं पौधों की परिभाषा नहीं दूँ तब तक मैं नहीं जानता कि मैं क्या कह रहा हूँ?
 
यूँ कहिये कि मेरे अर्थ की व्याख्या, किसी चित्र या “मैदान लगभग ऐसा प्रतीत हो रहा था" शब्दों द्वारा की जा सकती है। मैं कह सकता हूँ "वह ''यथार्थत'': ऐसा ही प्रतीत होता था।" — तो क्या वहाँ इस घास और इन पत्तियों का बिल्कुल इसी प्रकार विन्यास किया गया था? नहीं, इसका यह अर्थ नहीं है । और मुझे ''इस'' अर्थ में किसी भी चित्र को यथार्थ के रूप में स्वीकारना नहीं चाहिए।
 
'''71.''' कहा जा सकता है कि 'खेल' प्रत्यय तो अस्पष्ट छोरों वाला प्रत्यय है। — "किन्तु क्या कोई अस्पष्ट प्रत्यय भी प्रत्यय होता है?” — क्या कोई धुंधला फोटो भी किसी व्यक्ति का चित्र हो सकता है? किसी अस्पष्ट चित्र को स्पष्ट चित्र द्वारा प्रतिस्थापित करना क्या सदैव ही लाभप्रद होता है? अस्पष्ट चित्र ही क्या बहुधा वह चित्र नहीं होता जिसकी यथार्थतः हमें आवश्यकता होती है?
 
फ्रेगे प्रत्यय की तुलना एक क्षेत्र से करते हैं और कहते हैं कि अनिर्दिष्ट सीमाओं वाले क्षेत्र को क्षेत्र ही नहीं कहा जा सकता। अनुमानत: इसका अर्थ है कि हम इससे कुछ भी नहीं कर सकते । — किन्तु क्या यह कहना अर्थहीन है: “लगभग वहाँ खड़े रहना"? मान लीजिए कि मैं किसी के साथ शहर के चौराहे पर खड़ा हूँ और यह कहता हूँ । इसे कहते हुए मैं किसी भी प्रकार की सीमा नहीं बनाता अपितु सम्भवतः अपने हाथ से इंगित करता हूँ — मानो मैं किसी ''स्थान'' विशेष को इंगित कर रहा होऊं। और इसी प्रकार ही खेल क्या होता है, की व्याख्या दी जा सकती है। हम उदाहरण देते हैं और हमारा अभिप्राय होता है कि उन्हें विशेष ढंग से समझा जाए। — बहरहाल, इससे मेरा अर्थ यह नहीं है कि उन उदाहरणों से उसे वह साझी विषय-वस्तु सूझनी चाहिए जिसे — किसी कारणवश — मैं अभिव्यक्त करने में असमर्थ था: अपितु इससे मेरा अर्थ यह है कि अब उसे उन उदाहरणों को एक विशेष ढंग से ''प्रयोग'' में लाना है। यहाँ उदाहरण देना व्याख्या देने का — बेहतर साधन के अभाव में — ''परोक्ष'' साधन
 
नहीं है। क्योंकि कोई सार्वभौम परिभाषा भी गलत समझी जा सकती है। बात तो यह है कि हम खेल को ''इसी प्रकार'' खेलते हैं। “खेल" से मेरा तात्पर्य भाषा-खेल है।
 
{{PU box|कोई मुझे कहता है: "बच्चों को कोई खेल खिलाओ।" मैं उन्हें पाँसे से खेला जाने वाला कोई खेल खिलाता हूँ, और दूसरा व्यक्ति कहता है “मेरा आशय उस प्रकार के खेल से नहीं था।" खेल खिलाने का आदेश देते समय क्या उसके मन में पाँसे से खेले जाने वाले खेल थे या नहीं?}}
 
'''72.''' ''यह समझना कि साझा क्या है।'' मान लीजिए मैं किसी को अनेक बहुरंगी चित्र दिखाता हूँ और कहता हूँ: "जो रंग आप इन सभी में देख रहे हैं 'पीत गेरुआ' कहलाता है"। — यह एक परिभाषा है और दूसरा व्यक्ति चित्रों का निरीक्षण और अवलोकन करने पर समझ जाता है कि उनमें साझा क्या है। फिर वह साझे विषय का अवलोकन कर सकता है, ''उसे'' इंगित कर सकता है। इसकी तुलना ऐसी स्थिति से करें जिसमें मैं उसे एक ही रंग से पुती भिन्न आकारों वाली आकृतियों को दिखाता हूँ और कहता हूँ: "जो इन सब में साझा है वही 'पीत गेरुआ' कहलाता है"।
 
और इस स्थिति से तुलना कीजिए: मैं उसे नीले रंग के भिन्न छटाओं के नमूने दिखाता हूँ और कहता हूँ: "वह रंग जो इन सब में साझा है उस को मैं 'नीला' कहता हूँ"।
 
'''73.''' जब कोई मुझे रंगों के नाम उनके नमूनों को इंगित कर के और "यह रंग 'नीला' कहलाता है, यह 'हरा'...." ऐसा कह कर समझाता है, तो अनेक प्रकार से इस स्थिति की तुलना मेरे हाथों में दी हुई ऐसी सारिणी से की जा सकती है जिसमें रंग-नमूनों के नीचे शब्द लिखे हों । — यद्यपि यह तुलना अनेक प्रकार से भ्रमोत्पादक हो सकती है। हम अब इस तुलना का विस्तार करने को प्रवृत्त हैं: परिभाषा को समझने का अर्थ है मन में परिभाषित विषय का धारण हो जाना और वह धारणा होती है नमूने अथवा चित्र की। अतः यदि मुझे विविध पत्तियाँ दिखाई जाएं और कहा जाए "यह 'पत्ती' कहलाती है" तो मुझे पत्ती की आकृति की धारणा हो जाती है, और उसका चित्र मेरे मन में आ जाता है। — किन्तु पत्ती का चित्र कैसा प्रतीत होता है जब वह हमें कोई आकृति विशेष नहीं दर्शाता, अपितु उसे दर्शाता है 'जो पत्ती की सभी आकृतियों में साझा होता है'? 'मेरे मन के हरे रंग के नमूने' की हरे रंग की कौन सी छटा है — वही नमूना जो हरे रंग की सभी छटाओं में साझा है?
 
“किन्तु क्या ऐसे 'सार्वभौम' नमूने नहीं हो सकते? जैसे कि पत्ती का प्रारूप अथवा विशुद्ध हरे रंग का नमूना?" — निस्संदेह हो सकते हैं। किन्तु ऐसे प्रारूप को ''प्रारूप'' के समान समझना, न कि किसी पत्ती विशेष की आकृति के समान समझना, और विशुद्ध हरे रंग के नमूने को सभी हरी वस्तुओं का नमूना समझना, न कि विशुद्ध हरे रंग के समान समझना — यह तो नमूनों के प्रयुक्त किए जाने के ढंग में निहित होता है।