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{{ParPU|118}} हमारा अन्वेषण महत्त्वपूर्ण क्योंकर होता है, क्योंकि यह तो सभी रुचिकर विषयों : अतः उन सब का जो महान एवं महत्त्वपूर्ण हैं, विनाश ही करना प्रतीत होता है? (मानो सभी भवनों का विनाश, और बचे रहते हैं केवल टूटे पत्थर और उनका मलबा।) हम जिसका विनाश कर रहे हैं वह ताश के पत्तों से बने घरों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, और हम भाषा के उसी आधार को खत्म कर रहे हैं जिस पर वे बने हैं। | {{ParPU|118}} हमारा अन्वेषण महत्त्वपूर्ण क्योंकर होता है, क्योंकि यह तो सभी रुचिकर विषयों : अतः उन सब का जो महान एवं महत्त्वपूर्ण हैं, विनाश ही करना प्रतीत होता है? (मानो सभी भवनों का विनाश, और बचे रहते हैं केवल टूटे पत्थर और उनका मलबा।) हम जिसका विनाश कर रहे हैं वह ताश के पत्तों से बने घरों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, और हम भाषा के उसी आधार को खत्म कर रहे हैं जिस पर वे बने हैं। | ||
{{ParPU|119}} किसी विशुद्ध ''बकवास'' को प्रदर्शित करना, और बोध के द्वारा भाषा की सीमाओं से सिर फोड़ने से आई चोटों को दिखाना दर्शन के परिणाम हैं। इन चोटों से | {{ParPU|119}} किसी विशुद्ध ''बकवास'' को प्रदर्शित करना, और बोध के द्वारा भाषा की सीमाओं से सिर फोड़ने से आई चोटों को दिखाना दर्शन के परिणाम हैं। इन चोटों से हमें खोज की महत्ता पता चलती है। | ||
{{ParPU|120}} जब मैं भाषा (शब्दों, वाक्यों इत्यादि) के बारे में बात करता हूँ तो मुझे दैनन्दिन भाषा का उल्लेख करना चाहिए। क्या यह भाषा हमारी अभिव्यक्ति के लिए कोई बेहद घटिया एवं दुनियावी साधन है? ''तो किसी अन्य भाषा का निर्माण कैसे होगा?'' — यह विचित्र ही है कि उपलब्ध भाषा द्वारा हम कुछ भी कर पाते हैं! | {{ParPU|120}} जब मैं भाषा (शब्दों, वाक्यों इत्यादि) के बारे में बात करता हूँ तो मुझे दैनन्दिन भाषा का उल्लेख करना चाहिए। क्या यह भाषा हमारी अभिव्यक्ति के लिए कोई बेहद घटिया एवं दुनियावी साधन है? ''तो किसी अन्य भाषा का निर्माण कैसे होगा?'' — यह विचित्र ही है कि उपलब्ध भाषा द्वारा हम कुछ भी कर पाते हैं! |