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{{ParPU|181}} यह समझने के लिए हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता है: मान लीजिए '''ख''' कहता है कि वह यह जानता है कि आगे कैसे बढ़ना है — किन्तु जब वह आगे बढ़ना चाहता है तो वह द्विविधा-ग्रस्त हो जाता है और आगे नहीं बढ़ पाता; क्या हमें कहना चाहिए कि जब उसने कहा कि वह आगे बढ़ सकता है तो वह गलती पर था, अथवा यह कि तब वह आगे बढ़ सकने में समर्थ था परन्तु अब नहीं? — स्पष्टतः हम भिन्न स्थितियों में भिन्न बातें कहेंगे। (दोनों प्रकार की स्थितियों पर विचार कीजिए।) | {{ParPU|181}} यह समझने के लिए हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता है: मान लीजिए '''ख''' कहता है कि वह यह जानता है कि आगे कैसे बढ़ना है — किन्तु जब वह आगे बढ़ना चाहता है तो वह द्विविधा-ग्रस्त हो जाता है और आगे नहीं बढ़ पाता; क्या हमें कहना चाहिए कि जब उसने कहा कि वह आगे बढ़ सकता है तो वह गलती पर था, अथवा यह कि तब वह आगे बढ़ सकने में समर्थ था परन्तु अब नहीं? — स्पष्टतः हम भिन्न स्थितियों में भिन्न बातें कहेंगे। (दोनों प्रकार की स्थितियों पर विचार कीजिए।) | ||
{{ParPU|182}} | {{ParPU|182}} “फ़िट होने”, “समर्थ होने”, और “समझने” का व्याकरण। | ||
अभ्यास : (1) हम कब कहते हैं कि बेलन '''ब''' खोखले बेलन '''ख''' में फिट होता है? केवल तभी जब '''ब''' को '''ख''' में फँसाया जाता है? (2) कभी-कभी हम कहते हैं कि अमुक-अमुक समय पर '''ब''', '''ख''' में फिट नहीं होता। ऐसी स्थिति में उसके फिट होने की कौन सी कसौटी प्रयुक्त की जाती है ? (3) किसी समय विशेष पर जब कोई वस्तु तुला पर नहीं होती उसके भार परिवर्तन की क्या कसौटी होगी ? (4) कल मुझे कविता कंठस्थ थी; परन्तु अब मुझे वह याद नहीं। किन स्थितियों में यह पूछने का अर्थ होता है: “मैं उसे कब से भूला?” (5) कोई मुझसे पूछता है: “क्या आप यह भार उठा सकते हैं?” मैं उत्तर देता हूँ “हां”। अब वह कहता है “उठाओ!” — पर मैं उठा नहीं पाता। किन स्थितियों में यह कहना असंगत होगा “जब मैंने ‘हाँ’ में उत्तर दिया था तो मैं ऐसा कर ''सकता'' था, किन्तु अब नहीं”? | अभ्यास : (1) हम कब कहते हैं कि बेलन '''ब''' खोखले बेलन '''ख''' में फिट होता है? केवल तभी जब '''ब''' को '''ख''' में फँसाया जाता है? (2) कभी-कभी हम कहते हैं कि अमुक-अमुक समय पर '''ब''', '''ख''' में फिट नहीं होता। ऐसी स्थिति में उसके फिट होने की कौन सी कसौटी प्रयुक्त की जाती है ? (3) किसी समय विशेष पर जब कोई वस्तु तुला पर नहीं होती उसके भार परिवर्तन की क्या कसौटी होगी ? (4) कल मुझे कविता कंठस्थ थी; परन्तु अब मुझे वह याद नहीं। किन स्थितियों में यह पूछने का अर्थ होता है: “मैं उसे कब से भूला?” (5) कोई मुझसे पूछता है: “क्या आप यह भार उठा सकते हैं?” मैं उत्तर देता हूँ “हां”। अब वह कहता है “उठाओ!” — पर मैं उठा नहीं पाता। किन स्थितियों में यह कहना असंगत होगा “जब मैंने ‘हाँ’ में उत्तर दिया था तो मैं ऐसा कर ''सकता'' था, किन्तु अब नहीं”? | ||
“फ़िट होने”, “योग्य होने”, “समझने” के लिए जिन कसौटियों को हम स्वीकार करते हैं, वे पहली नजर में दिखाई देने वाली जटिलता से कहीं अधिक जटिल होती हैं। अतः इन शब्दों से खेले जाने वाले खेल, उनके प्रयोग द्वारा होने वाले भाषाई-सम्पर्क — हमारी भाषा में इन शब्दों की भूमिका — हमारी कल्पना से कहीं अधिक जटिल होते हैं। | |||
(दार्शनिक विरोधाभासों के समाधान के लिए हमें इन भूमिकाओं को समझना आवश्यक है। और इसीलिए सामान्यतः, परिभाषाएं उनका समाधान करने में असफल होती हैं; और इसीलिए ''सुतरां स्पष्ट'' यह अभिकथन भी कि शब्द ‘अनिर्वचनीय’ है।) | (दार्शनिक विरोधाभासों के समाधान के लिए हमें इन भूमिकाओं को समझना आवश्यक है। और इसीलिए सामान्यतः, परिभाषाएं उनका समाधान करने में असफल होती हैं; और इसीलिए ''सुतरां स्पष्ट'' यह अभिकथन भी कि शब्द ‘अनिर्वचनीय’ है।) | ||
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{{ParPU|185}} आइए हम §143 के अपने उदाहरण की ओर लौटें। अब — साधारण कसौटी द्वारा परखने पर — शिक्षार्थी पूर्णांकों की श्रृंखला में निपुण हो गया है। इसके बाद हम उसे अंकों की अन्य श्रृंखला लिखना सिखाते हैं और उसे इतना सिखा देते हैं कि '''+n''' आकार के आदेश देने पर वह '''0, n, 2n, 3n''' इत्यादि आकार की श्रृंखला लिख देता है; अतः +1 आदेश पर वह पूर्णांकों की शृंखला लिखता है। आइए हम मान लें कि हमने उसे 1000 तक अभ्यास कराया है और उसकी परीक्षा ली है। | {{ParPU|185}} आइए हम §143 के अपने उदाहरण की ओर लौटें। अब — साधारण कसौटी द्वारा परखने पर — शिक्षार्थी पूर्णांकों की श्रृंखला में निपुण हो गया है। इसके बाद हम उसे अंकों की अन्य श्रृंखला लिखना सिखाते हैं और उसे इतना सिखा देते हैं कि '''+n''' आकार के आदेश देने पर वह '''0, n, 2n, 3n''' इत्यादि आकार की श्रृंखला लिख देता है; अतः +1 आदेश पर वह पूर्णांकों की शृंखला लिखता है। आइए हम मान लें कि हमने उसे 1000 तक अभ्यास कराया है और उसकी परीक्षा ली है। | ||
अब हम शिक्षार्थी को श्रृंखला को 1000 से आगे बढ़ाने (मान लीजिए +2) को कहते हैं — और वह लिखता है 1000, 1004, 1008, | अब हम शिक्षार्थी को श्रृंखला को 1000 से आगे बढ़ाने (मान लीजिए +2) को कहते हैं — और वह लिखता है 1000, 1004, 1008, 1012 । | ||
हम उसे कहते हैं: “देखो तुमने क्या किया!” — वह समझता नहीं। हम कहते हैं: तुम्हें तो दो जोड़ना था : “ध्यान दो कि तुमने श्रृंखला का आरम्भ कैसे किया था।” — वह उत्तर देता है: “ओह, क्या वह ठीक नहीं है? मैंने समझा कि मुझे ऐसा ही ''करना'' था।” — अथवा मान लीजिए कि वह श्रृंखला को इंगित करता है और कहता है: “किन्तु मैं तो उसी प्रकार आगे बढ़ा।” — अब उसे यह कहने “किन्तु क्या तुम्हें नहीं सूझता कि....?” — और पुराने उदाहरणों एवं व्याख्याओं को दुहराने से कोई लाभ नहीं होगा। ऐसी स्थितियों में सम्भवतः हम कहें : यह व्यक्ति हमारी व्याख्याओं सहित हमारे आदेश को स्वाभाविक रूप से उसी प्रकार समझता है जैसे हम “1000 तक 2 जोड़ो 2000 तक 4, 3000 तक 6, आदि” आदेशों को समझते हैं। | हम उसे कहते हैं: “देखो तुमने क्या किया!” — वह समझता नहीं। हम कहते हैं: तुम्हें तो दो जोड़ना था : “ध्यान दो कि तुमने श्रृंखला का आरम्भ कैसे किया था।” — वह उत्तर देता है: “ओह, क्या वह ठीक नहीं है? मैंने समझा कि मुझे ऐसा ही ''करना'' था।” — अथवा मान लीजिए कि वह श्रृंखला को इंगित करता है और कहता है: “किन्तु मैं तो उसी प्रकार आगे बढ़ा।” — अब उसे यह कहने “किन्तु क्या तुम्हें नहीं सूझता कि....?” — और पुराने उदाहरणों एवं व्याख्याओं को दुहराने से कोई लाभ नहीं होगा। ऐसी स्थितियों में सम्भवतः हम कहें : यह व्यक्ति हमारी व्याख्याओं सहित हमारे आदेश को स्वाभाविक रूप से उसी प्रकार समझता है जैसे हम “1000 तक 2 जोड़ो 2000 तक 4, 3000 तक 6, आदि” आदेशों को समझते हैं। | ||
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{{ParPU|186}} “तो आपके कहने का अर्थ यह होता है: '''+n''' को उचित रूप से पालन करने के लिए पग-पग पर नई अन्तर्दृष्टि — अन्तःप्रज्ञा — की आवश्यकता होती है।” — उचित रूप से पालन करने के लिए! किसी विशेष स्थिति में कौन सा उचित कदम है इस का निर्णय कैसे किया जाता है? — “उचित कदम वह होता है जो आदेश — जैसा कि उसका ''तात्पर्य'' है — के अनुरूप होता है।” अतः, जब आपने +2 का आदेश दिया तो आपका तात्पर्य था कि वह 1000 के पश्चात् 1002 लिखे — और क्या आपका तात्पर्य यह भी था कि उसे 1866 के पश्चात् 1868, और 100034 के पश्चात् 100036 इत्यादि ऐसी प्रतिज्ञप्तियों की अनन्त संख्या लिखनी चाहिए? “नहीं : मेरा तात्पर्य तो यह था कि वह ''प्रत्येक'' अंक से एक अंक छोड़कर लिखे : और उससे वे सभी प्रतिज्ञप्तियां निष्पादित होती हैं।” — किन्तु यही तो विवाद का विषय है: किसी भी स्थिति में उस वाक्य से क्या निष्पादित होता है? अथवा पुनः, किसी भी स्थिति में हमें उस वाक्य के “अनुरूप होना” किसे कहना चाहिए (वाक्य को आपके द्वारा दिए गए ''अर्थ'' के साथ — चाहे वह जिसमें भी निहित हो)। यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि प्रत्येक स्थिति में अन्तःप्रज्ञा की आवश्यकता न होकर नए निर्णय की आवश्यकता होती है। | {{ParPU|186}} “तो आपके कहने का अर्थ यह होता है: '''+n''' को उचित रूप से पालन करने के लिए पग-पग पर नई अन्तर्दृष्टि — अन्तःप्रज्ञा — की आवश्यकता होती है।” — उचित रूप से पालन करने के लिए! किसी विशेष स्थिति में कौन सा उचित कदम है इस का निर्णय कैसे किया जाता है? — “उचित कदम वह होता है जो आदेश — जैसा कि उसका ''तात्पर्य'' है — के अनुरूप होता है।” अतः, जब आपने +2 का आदेश दिया तो आपका तात्पर्य था कि वह 1000 के पश्चात् 1002 लिखे — और क्या आपका तात्पर्य यह भी था कि उसे 1866 के पश्चात् 1868, और 100034 के पश्चात् 100036 इत्यादि ऐसी प्रतिज्ञप्तियों की अनन्त संख्या लिखनी चाहिए? “नहीं : मेरा तात्पर्य तो यह था कि वह ''प्रत्येक'' अंक से एक अंक छोड़कर लिखे : और उससे वे सभी प्रतिज्ञप्तियां निष्पादित होती हैं।” — किन्तु यही तो विवाद का विषय है: किसी भी स्थिति में उस वाक्य से क्या निष्पादित होता है? अथवा पुनः, किसी भी स्थिति में हमें उस वाक्य के “अनुरूप होना” किसे कहना चाहिए (वाक्य को आपके द्वारा दिए गए ''अर्थ'' के साथ — चाहे वह जिसमें भी निहित हो)। यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि प्रत्येक स्थिति में अन्तःप्रज्ञा की आवश्यकता न होकर नए निर्णय की आवश्यकता होती है। | ||
{{ParPU|187}} “आदेश देने के समय मैं पहले से ही जानता था कि उसे 1000 के पश्चात् 1002 लिखना चाहिए।” — निश्चित रूप से; और आप यह भी कह सकते हैं कि | {{ParPU|187}} “आदेश देने के समय मैं पहले से ही जानता था कि उसे 1000 के पश्चात् 1002 लिखना चाहिए।” — निश्चित रूप से; और आप यह भी कह सकते हैं कि उस समय आपका यह ''अर्थ'' था; किन्तु आप अपने आप को “जानने” और “अर्थ होने” के व्याकरण द्वारा भ्रमित न होने दें। क्योंकि आप यह नहीं कहना चाहते कि उस समय आपने 1000 से 1002 के पदन्यास के बारे में सोचा था — और यदि आपने इस पदन्यास के बारे में सोचा भी हो तो भी आपने अन्य पदन्यासों के बारे में तो नहीं सोचा था। जब आपने कहा “मैं उस समय पहले से ही जानता था...” तो उसका अर्थ कुछ इस प्रकार था : “यदि उस समय मुझसे पूछा जाता कि 1000 के पश्चात् किस संख्या को लिखा जाना चाहिए तो मैं उत्तर देता ‘1002’ को।” और उसके बाद मैं शंकित नहीं हूँ। यह कल्पना तो वस्तुतः वैसी ही है: “यदि वह पानी में गिर जाता तो मैं भी उसके पीछे कूद पड़ता”। — तो, आपकी समझ में क्या गड़बड़ी थी? | ||
उस समय आपका यह ''अर्थ'' था; किन्तु आप अपने आप को “जानने” और “अर्थ होने” के व्याकरण द्वारा भ्रमित न होने दें। क्योंकि आप यह नहीं कहना चाहते कि उस समय आपने 1000 से 1002 के पदन्यास के बारे में सोचा था — और यदि आपने इस पदन्यास के बारे में सोचा भी हो तो भी आपने अन्य पदन्यासों के बारे में तो नहीं सोचा था। जब आपने कहा “मैं उस समय पहले से ही जानता था...” तो उसका अर्थ कुछ इस प्रकार था : “यदि उस समय मुझसे पूछा जाता कि 1000 के पश्चात् किस संख्या को लिखा जाना चाहिए तो मैं उत्तर देता ‘1002’ को।” और उसके बाद मैं शंकित नहीं हूँ। यह कल्पना तो वस्तुतः वैसी ही है: “यदि वह पानी में गिर जाता तो मैं भी उसके पीछे कूद पड़ता”। — तो, आपकी समझ में क्या गड़बड़ी थी? | |||
{{ParPU|188}} यहाँ पहले तो मैं कहना चाहूँगा : आप समझते थे कि आदेश का अर्थ होने की क्रिया से पहले ही, अपने ढंग से, आपने उन सभी पदन्यासों को पार कर लिया जिनकी किसी भी क्रिया को भौतिक रूप से करने से पहले आवश्यकता होती है: जब आपका वह अर्थ था तो आपके मन ने, मानो आगे उड़ान भरी और आपके इस या उस पदन्यास पर भौतिक रूप से पहुँचने से पहले ही उसने सभी पदन्यासों को पार कर लिया। | {{ParPU|188}} यहाँ पहले तो मैं कहना चाहूँगा : आप समझते थे कि आदेश का अर्थ होने की क्रिया से पहले ही, अपने ढंग से, आपने उन सभी पदन्यासों को पार कर लिया जिनकी किसी भी क्रिया को भौतिक रूप से करने से पहले आवश्यकता होती है: जब आपका वह अर्थ था तो आपके मन ने, मानो आगे उड़ान भरी और आपके इस या उस पदन्यास पर भौतिक रूप से पहुँचने से पहले ही उसने सभी पदन्यासों को पार कर लिया। | ||
अतः आपकी रुचि ऐसी अभिव्यक्तियों को प्रयोग करने में हुई : “''वास्तव'' में कदम तो मेरे लिखने, बोलने अथवा विचार करने से पूर्व ही उठाये जा चुके हैं।” और ऐसा प्रतीत हुआ मानो वे किसी ''अप्रतिम'' ढंग से पूर्वनिर्धारित, पूर्वानुमानित हों | अतः आपकी रुचि ऐसी अभिव्यक्तियों को प्रयोग करने में हुई : “''वास्तव'' में कदम तो मेरे लिखने, बोलने अथवा विचार करने से पूर्व ही उठाये जा चुके हैं।” और ऐसा प्रतीत हुआ मानो वे किसी ''अप्रतिम'' ढंग से पूर्वनिर्धारित, पूर्वानुमानित हों -- क्योंकि मात्र अर्थ प्रदान करने की क्रिया ही वास्तविकता का पूर्वानुमान कर सकती है। | ||
{{ParPU|189}} “किन्तु, तब, क्या पदन्यास बीजगणितीय सूत्र द्वारा निर्धारित ''नहीं'' किए जाते?” — इस प्रश्न में एक भ्रान्ति निहित है। | {{ParPU|189}} “किन्तु, तब, क्या पदन्यास बीजगणितीय सूत्र द्वारा निर्धारित ''नहीं'' किए जाते?” — इस प्रश्न में एक भ्रान्ति निहित है। | ||
हम इस अभिव्यक्ति का प्रयोग करते हैं: “...... सूत्र द्वारा पदन्यास निर्धारित किए जाते हैं।” | हम इस अभिव्यक्ति का प्रयोग करते हैं: “...... सूत्र द्वारा पदन्यास निर्धारित किए जाते हैं।” -- इसका प्रयोग ''कैसे'' किया जाता है? -- संभवतः हम इस तथ्य को उद्धृत करें कि लोगों को इस प्रकार शिक्षित (प्रशिक्षित) किया जाता है कि वे y = x<sup>2</sup> सूत्र का प्रयोग इस प्रकार करें कि जब वे x को एक ही संख्या से प्रतिस्थापित करें तब उन्हें y का एक ही मूल्य मिले। अथवा हम कह सकते हैं: “ये व्यक्ति इस प्रकार प्रशिक्षित हैं कि वे 3 जोड़ो' आदेश मिलने पर समान स्थान पर समान पदन्यास करते हैं”। हम इसे यह कहकर अभिव्यक्त कर सकते हैं: इन लोगों के लिए “3 जोड़ो” आदेश एक संख्या से आगामी संख्या तक प्रत्येक पदन्यास को पूर्णतः निर्धारित करता है। (उन अन्य लोगों की तुलना में जिन्हें यह नहीं पता कि यह आदेश मिलने पर उन्हें क्या करना है, अथवा उन लोगों की तुलना में जो इस पर पूर्ण निश्चितता से प्रतिक्रिया करते हैं, किन्तु अपने-अपने ढंग से।) | ||
इसके विपरीत हम विभिन्न प्रकार के सूत्रों और उनके उपयुक्त विभिन्न प्रयोगों (विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों) की तुलना कर सकते हैं। फिर हम विशिष्ट प्रकार के सूत्र (उपयुक्त प्रयोग की विधियों सहित) को “x के प्रदत्त मूल्य के लिए y संख्या का निर्धारण करने वाला सूत्र” कहकर ''पुकारते'' हैं, और अन्य प्रकार के सूत्र को “x के प्रदत्त मूल्य के लिए y संख्या का निर्धारण न करने वाला” सूत्र कहते हैं। (प्रथम प्रकार का सूत्र y = x<sup>2</sup> होगा, y ≠ x<sup>2</sup> दूसरे प्रकार का सूत्र होगा।) “..... सूत्र y संख्या का निर्धारण करता है” प्रतिज्ञप्ति तो अब सूत्र के आकार के बारे में अभिकथन होगी — और अब हमें इस प्रकार की प्रतिज्ञप्तियों “मेरे द्वारा लिखित सूत्र y का निर्धारण करता है” अथवा “यहy का निर्धारण करने वाला सूत्र है” का निम्न प्रकार की प्रतिज्ञप्तियों से भेद करना होगा : “y = x<sup>2</sup> सूत्र x के प्रदत्त मूल्य के लिए y संख्या का निर्धारण करता है”। “क्या वहाँ लिखे हुए सूत्र द्वारा y का निर्धारण होता है?” प्रश्न का अर्थ तो “क्या जो वहाँ है वह इस अथवा उस प्रकार का सूत्र है?” इसके समान होगा — किन्तु यह तो तुरन्त स्पष्ट नहीं होता कि हम इस प्रश्न का क्या करें : “क्या y = x<sup>2</sup> सूत्र वही नहीं है जो x के प्रदत्त मूल्य के लिए y का निर्धारण करता है?” शिक्षार्थी से यह प्रश्न, यह जानने के लिए किया जा सकता है कि वह “निर्धारण करने” शब्द का प्रयोग समझता है या नहीं; अथवा किसी विशिष्ट प्रणाली में यह एक गणितीय समस्या हो सकती है — यह सिद्ध करने के लिए कि x का मात्र एक वर्ग होता है। | इसके विपरीत हम विभिन्न प्रकार के सूत्रों और उनके उपयुक्त विभिन्न प्रयोगों (विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों) की तुलना कर सकते हैं। फिर हम विशिष्ट प्रकार के सूत्र (उपयुक्त प्रयोग की विधियों सहित) को “x के प्रदत्त मूल्य के लिए y संख्या का निर्धारण करने वाला सूत्र” कहकर ''पुकारते'' हैं, और अन्य प्रकार के सूत्र को “x के प्रदत्त मूल्य के लिए y संख्या का निर्धारण न करने वाला” सूत्र कहते हैं। (प्रथम प्रकार का सूत्र y = x<sup>2</sup> होगा, y ≠ x<sup>2</sup> दूसरे प्रकार का सूत्र होगा।) “..... सूत्र y संख्या का निर्धारण करता है” प्रतिज्ञप्ति तो अब सूत्र के आकार के बारे में अभिकथन होगी — और अब हमें इस प्रकार की प्रतिज्ञप्तियों “मेरे द्वारा लिखित सूत्र y का निर्धारण करता है” अथवा “यहy का निर्धारण करने वाला सूत्र है” का निम्न प्रकार की प्रतिज्ञप्तियों से भेद करना होगा : “y = x<sup>2</sup> सूत्र x के प्रदत्त मूल्य के लिए y संख्या का निर्धारण करता है”। “क्या वहाँ लिखे हुए सूत्र द्वारा y का निर्धारण होता है?” प्रश्न का अर्थ तो “क्या जो वहाँ है वह इस अथवा उस प्रकार का सूत्र है?” इसके समान होगा — किन्तु यह तो तुरन्त स्पष्ट नहीं होता कि हम इस प्रश्न का क्या करें : “क्या y = x<sup>2</sup> सूत्र वही नहीं है जो x के प्रदत्त मूल्य के लिए y का निर्धारण करता है?” शिक्षार्थी से यह प्रश्न, यह जानने के लिए किया जा सकता है कि वह “निर्धारण करने” शब्द का प्रयोग समझता है या नहीं; अथवा किसी विशिष्ट प्रणाली में यह एक गणितीय समस्या हो सकती है — यह सिद्ध करने के लिए कि x का मात्र एक वर्ग होता है। |