फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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यह समझा जा सकता है कि इस भ्रम का कारण यह है कि अपनी युक्ति के दौरान हम एक के बाद दूसरी व्याख्या देते हैं; मानो हर व्याख्या हमें उस क्षण तक संतुष्ट करती है, जब तक हम उसके पीछे छुपी किसी अन्य व्याख्या को न सोचें। इससे पता चलता है कि नियम को समझने का ऐसा ढंग भी होता है जो ''व्याख्या नहीं''  होता, किन्तु जिसका हमें तब पता चलता है जब हम वास्तविक स्थितियों में कभी “नियम पालन” करते हैं और कभी “नियम-विरुद्ध” आचरण करते हैं।
यह समझा जा सकता है कि इस भ्रम का कारण यह है कि अपनी युक्ति के दौरान हम एक के बाद दूसरी व्याख्या देते हैं; मानो हर व्याख्या हमें उस क्षण तक संतुष्ट करती है, जब तक हम उसके पीछे छुपी किसी अन्य व्याख्या को न सोचें। इससे पता चलता है कि नियम को समझने का ऐसा ढंग भी होता है जो ''व्याख्या नहीं''  होता, किन्तु जिसका हमें तब पता चलता है जब हम वास्तविक स्थितियों में कभी “नियम पालन” करते हैं और कभी “नियम-विरुद्ध” आचरण करते हैं।


इसलिए हम यह कहना चाहते हैं: नियमानुसार होने वाली प्रत्येक क्रिया व्याख्या होती है। किन्तु हमें “व्याख्या” पद को, नियम की किसी एक अभिव्यक्ति का किसी दूसरी अभिव्यक्ति से, प्रतिस्थापन तक सीमित रखना पड़ेगा।
इसलिए हम यह कहना चाहते हैं : नियमानुसार होने वाली प्रत्येक क्रिया व्याख्या होती है। किन्तु हमें “व्याख्या” पद को, नियम की किसी एक अभिव्यक्ति का किसी दूसरी अभिव्यक्ति से, प्रतिस्थापन तक सीमित रखना पड़ेगा।


{{ParPU|202}} और इसीलिए “नियम-पालन” एक पद्धति है। और यह समझना कि कोई नियम-पालन कर रहा है, नियम पालन करना नहीं होता। अतः ‘निजी रूप’ से नियम पालन संभव नहीं होता : अन्यथा यह सोचना कि हम नियम-पालन कर रहे हैं वास्तव में नियम-पालन करने के समान होता।
{{ParPU|202}} और इसीलिए “नियम-पालन” एक पद्धति है। और यह समझना कि कोई नियम-पालन कर रहा है, नियम पालन करना नहीं होता। अतः ‘निजी रूप’ से नियम पालन संभव नहीं होता : अन्यथा यह सोचना कि हम नियम-पालन कर रहे हैं वास्तव में नियम-पालन करने के समान होता।