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{{ParUG|22}} यदि हमें किसी ऐसे विश्वस्त व्यक्ति पर विश्वास करना पड़े जो कहता है “मैं भूल नहीं कर सकता”; या फिर जो कहता है “मैं गलत नहीं हूँ”, तो यह बात विचित्र ही होगी। | {{ParUG|22}} यदि हमें किसी ऐसे विश्वस्त व्यक्ति पर विश्वास करना पड़े जो कहता है “मैं भूल नहीं कर सकता”; या फिर जो कहता है “मैं गलत नहीं हूँ”, तो यह बात विचित्र ही होगी। | ||
{{ParUG|23}} यदि मैं यह नहीं जानता कि किसी के दो हाथ हैं (उदाहरण के रूप में, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके हाथ काट दिए गए हों ); तो किसी विश्वस्त व्यक्ति के इस आश्वासन पर कि उसके दो हाथ हैं, मैं विश्वास कर लूँगा। और यदि वह यह कहे कि वह इस बारे में ''जानता'' है तो इससे मुझे यही पता चलता है कि वह इसको सुनिश्चित कर रहा है और इसीलिए उसकी बाँहे अब पट्टियों, या किन्हीं अन्य आवरणों से ढंकी नहीं हैं। विश्वस्त व्यक्ति पर विश्वास करने का आधार मेरी इस मान्यता में है कि वह इस बात का निश्चय कर सकता है। किन्तु, संभवतः कोई भौतिक वस्तु है ही नहीं, ऐसा कहने वाला व्यक्ति यह नहीं मानता। | {{ParUG|23}} यदि मैं यह नहीं जानता कि किसी के दो हाथ हैं (उदाहरण के रूप में, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके हाथ काट दिए गए हों); तो किसी विश्वस्त व्यक्ति के इस आश्वासन पर कि उसके दो हाथ हैं, मैं विश्वास कर लूँगा। और यदि वह यह कहे कि वह इस बारे में ''जानता'' है तो इससे मुझे यही पता चलता है कि वह इसको सुनिश्चित कर रहा है और इसीलिए उसकी बाँहे अब पट्टियों, या किन्हीं अन्य आवरणों से ढंकी नहीं हैं। विश्वस्त व्यक्ति पर विश्वास करने का आधार मेरी इस मान्यता में है कि वह इस बात का निश्चय कर सकता है। किन्तु, संभवतः कोई भौतिक वस्तु है ही नहीं, ऐसा कहने वाला व्यक्ति यह नहीं मानता। | ||
{{ParUG|24}} प्रत्ययवादी कुछ इस प्रकार का प्रश्न करेगा: “मुझे अपने हाथों के अस्तित्व पर संशय न करने का क्या अधिकार है?” (और उस पर यह उत्तर तो नहीं हो सकता: मैं ''जानता'' हूँ कि उनका अस्तित्व है) किन्तु ऐसा प्रश्नकर्ता इस तथ्य को भूल जाता है कि सत्ता विषयक संशय किसी भाषा-खेल में ही कारगर होता है। यानी हमें पहले यह पूछना पड़ेगा: इस प्रकार का संशय कैसा होगा?, पर, हम इसे आसानी से समझ नहीं पाते। | {{ParUG|24}} प्रत्ययवादी कुछ इस प्रकार का प्रश्न करेगा: “मुझे अपने हाथों के अस्तित्व पर संशय न करने का क्या अधिकार है?” (और उस पर यह उत्तर तो नहीं हो सकता: मैं ''जानता'' हूँ कि उनका अस्तित्व है) किन्तु ऐसा प्रश्नकर्ता इस तथ्य को भूल जाता है कि सत्ता विषयक संशय किसी भाषा-खेल में ही कारगर होता है। यानी हमें पहले यह पूछना पड़ेगा: इस प्रकार का संशय कैसा होगा?, पर, हम इसे आसानी से समझ नहीं पाते। |