51
edits
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 192: | Line 192: | ||
{{ParUG|74}} क्या हम कह सकते हैं: ''भूल'' का कारण ही नहीं होता, उसका आधार भी होता है? यानी, हम कह सकते हैं: जब कोई भूल करता है तो हम उसकी भूल की व्याख्या उसके ज्ञात विषयों के संदर्भ में कर सकते हैं। | {{ParUG|74}} क्या हम कह सकते हैं: ''भूल'' का कारण ही नहीं होता, उसका आधार भी होता है? यानी, हम कह सकते हैं: जब कोई भूल करता है तो हम उसकी भूल की व्याख्या उसके ज्ञात विषयों के संदर्भ में कर सकते हैं। | ||
{{ParUG|75}} क्या यह मानना उचित होगा: यदि मैं गलती से यह | {{ParUG|75}} क्या यह मानना उचित होगा: यदि मैं गलती से यह समझूँ कि मेरे सामने कोई मेज़ पड़ी है, तो इसे भ्रान्ति कहा जा सकता है; किन्तु जब मैं गलती से यह समझू कि मैंने इस या उस जैसी मेज़ को पिछले कई महीनों से हर रोज़ देखा है, और नियमित रूप से उसका प्रयोग भी किया है तो यह भ्रान्ति नहीं होती? | ||
{{ParUG|76}} स्वाभाविक रूप से मेरा उद्देश्य ऐसे वचनों को कहना है जिन्हें हम कहना तो चाहते हैं किन्तु सार्थक ढंग से कह नहीं पाते। | {{ParUG|76}} स्वाभाविक रूप से मेरा उद्देश्य ऐसे वचनों को कहना है जिन्हें हम कहना तो चाहते हैं किन्तु सार्थक ढंग से कह नहीं पाते। |