1. इस लेफ्टिनेंट का नाम संभवतः वोज़ेस्लाव मोल था।
2. अर्विड स्ज़ोग्रेन लुडविग विट्गेन्स्टाइन के मित्र और संबंधी थे जिन्होंने उनकी भतीजी क्लारा साल्ज़ेर से विवाह किया था।
3. अर्नेस्ट रेनान् : हिस्ट्री ऑव् दॅ पीपल आव् इस्रायलं, खंड I अध्याय III
4. फ़िलोसॉफ़िकल रिमार्क्स, संपादित रश रहीज़, अनुवादित रेमण्ड हारग्रीव्स और रोज़र व्हाईट (ऑक्सफोर्ड, ब्लैकवल 1975) में प्रकाशित प्राक्कथन का प्रारम्भिक मसौदा।
5. जी. ई. लैस्सिंग, दॅ एज्यूकेशन ऑव् ह्यूमन रेस, §§ 48-49
6. ठीक से पढ़ा नहीं जा सकता, यह स्पष्ट नहीं है कि: "मनुष्यों के प्रकार" लिखा है या "मनुष्य। प्रकार।" और "प्रकार।" "मनुष्यों।" का पाठान्तर है।
7. संपादक ने मूल-पाण्डुलिपि में विराम-चिह्न लगाने की ऐसी भूल को सुधारा है जिसके परिणामस्वरूप निरर्थक वाक्य बनता था।
8. पहले विट्गेन्स्टाइन ने "फ्रेगे, रसेल, स्पेंग्लर, खाफा" के नाम ही लिखे थे, किन्तु बाद में बिना अर्ध-विराम चिह्न लगाए बाकी नामों को जोड़ा है।
9. यह वाक्य विल्हेल्म बुश की गद्य-कविता "एडवर्ड का स्वप्न" से लिया गया है, यह बात बताने के लिए संपादक श्री रोबर्ट लोइफ्फ्लर का आभारी है।
10. मूल-पाण्डुलिपि में "हैं" : विट्गेन्स्टाइन ने पहले "यहूदी" लिखा पर बाद में इसे "यहूदियों का इतिहास" से प्रतिस्थापित कर दिया, किन्तु "हैं" को "है" नहीं किया।
11. पाण्डुलिपि में काल-समंजक नहीं दिए गए हैं। पाण्डुलिपि में स्वरचिह्नों को समझना अत्यन्त कठिन है, उनकी व्याख्या करने के लिए संपादक श्री फैबियन डाहल्स्ट्रॉम के आभारी हैं। श्री डाहल्स्ट्रॉम ने निम्नलिखित व्याख्या सुझाई है:
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12. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा। यह स्पष्ट नहीं है कि इसे "परिधान पहन कर आत्मतुष्टि के लिए दर्पण में निहारते ही" अथवा "परिधान पहन कर आत्मतुष्टि के लिए स्वयं को दर्पण में देखकर बनने-ठनने की प्रक्रिया में" पढ़ा जाए।
13. एडल्बर्ट फॉन् चैमिस्सो, द स्ट्रेन्ज टेल ऑव पीटर श्लेमिल।
14. हाइनरिख़ फॉन् क्लाईस्ट: "लैटर फ्रॉम वन पोयट टू एनअदर", 5 जनवरी 1811।
15. "<कोई> पश्चिमी व्यवसाय" में "कोई" शब्द और "हमारी भाषा के शब्द में" "भाषा" शब्द Ms-153a,122r, संख्या वाली कापी से लिए गए हैं।
16. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा: "बन्द" के बाद अर्ध-विराम चिह्न।
17. देखें फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस, भाग I § 131।
18. पाठ ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा।
19. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा: या तो "के" या फिर "तो"।
20. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा।
21. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा। यह स्पष्ट नहीं है कि यहाँ "यह" शब्द "युक्तियुक्त" को इंगित कर रहा है या फिर "विवरण" को।
22. मूलपाठ में एक अर्धविराम चिह्न लगाया गया है जो व्याकरण-सम्मत नहीं है और स्पष्टतः एक भूल है।
23. अन्ना रेबनी, स्कज़ोल्डन नॉर्वे, में एक अध्यापिका। विट्गेन्स्टाइन ने यहीं पर अपनी कुटिया बनाई थी।
24. शोपेनहॉवर, "दॅ मेटाफ़िसिक्स ऑव् म्यूज़िक", दें वर्ल्ड ऐज विल एण्ड आइडिया, अध्याय, 39।
25. विट्गेन्स्टाइन की बहन मार्गेट स्टोन्बोरो, जिनके लिए उन्होंने 19 कुन्डमॅन्नगास्से, वियना में घर बनाया था।
26. मूल पाठ से यह स्पष्ट नहीं होता कि इसे "निजी सत्र" के रूप में पढ़ना चाहिए या "प्रशिक्षण सत्र" के रूप में।
27. विट्गेन्स्टाइन स्पष्टतः इसके ऊपर लिखते हैं "प्रशंसा-रहित": "समासक"।
28. "(न.)" और "(व.)" का अर्थ स्पष्ट नहीं है।
29. लन्दन की एक दुकान
30. विट्गेन्स्टाइन ने इस अभिव्यक्ति का चुनाव किया।
31. रिमार्क्स ऑन दॅ फाउन्डेशन्स ऑव् मैथेमैटिक्स, द्वितीय संस्करण, के पृष्ठ 302 पर संपादकीय टिप्पणी को देखें।
32. देखें फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस, भाग I, § 546
33. मूल पाठ अस्पष्ट है।
34. गोट्टफ्रीड केल्लर, दॅ लॉस्ट लाफ़।
35. गेथे, दॅ ब्राइड आव् कोरिन्थ।
36. फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस, भाग II, खण्ड IV।
37. देखें जेट्टल § 175।
38. पाठ स्पष्ट नहीं है ।
39. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा: या तो "कभी" या फिर "संभवतः"।
40. फ्रेडरिख नीत्शे, ह्यूमन, आल टू ह्यूमन, 1 § 155।
41. पाठ स्पष्ट नहीं है: यह स्पष्ट नहीं है कि इसे "मूल कृति" या संभवतः "प्रारूप" समझा जाए अथवा "घड़ी" या "मशीन" समझा जाए।
42. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान और उसके फौरन बाद।
43. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा: या तो "बाद में" या फिर "अभी भी"।
44. मूल पाठ स्पष्ट नहीं है।
45. मूल पाठ अस्पष्ट है।
46. जॉर्ज क्रिस्टोफ़ लिश्टेनबर्ग, टिमोरस, प्राक्कथन। पूरा वाक्य यह है: क्योंकि बैल और गधा भी काम कर सकते
हैं किन्तु अभी तक मनुष्य ही वचन दे सकते हैं।
47. 17 दिसम्बर, 1795 को गेथे को लिखा पत्र।
48. फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस के लिए।
49. ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा: एकवचन है या बहुवचन ।
50. देखें नोटबुक्स, 7.10.1916।
51. बीथोवन की आठवीं सिम्फनी।
52. जॉहन बुनयान, दॅ पिलग्रिम्ज़ प्रोग्रेस फ्रॉम दिस वर्ल्ड टु दैट विच इज़ टु कम।
53. पाठ स्पष्ट नहीं है।
54. देखें ज़ेट्टल, § 712।