फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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दो" हो सकता है तो आप का अर्थ "पट्टी!" क्यों नहीं हो सकता? — परन्तु जब मैं "पट्टी!” कहता हूँ तो मैं जो चाहता हूँ वह यह है ''कि वह मुझे पट्टी ला दे''! — निश्चय ही; किन्तु 'यह चाहना' क्या आपके कहे वाक्य से भिन्न किसी वाक्य को किसी न किसी रूप में सोचना है? —
दो" हो सकता है तो आप का अर्थ "पट्टी!" क्यों नहीं हो सकता? — परन्तु जब मैं "पट्टी!” कहता हूँ तो मैं जो चाहता हूँ वह यह है ''कि वह मुझे पट्टी ला दे''! — निश्चय ही; किन्तु 'यह चाहना' क्या आपके कहे वाक्य से भिन्न किसी वाक्य को किसी न किसी रूप में सोचना है? —


'''20.''' परन्तु अब ऐसा लगता है कि जब कोई कहता है, "मुझे पट्टी ला दो", तो इस अभिव्यक्ति से उसका अर्थ अकेले शब्द "पट्टी!" के अनुरूप कोई ''एक'' लम्ब शब्द हो सकता है। — तो क्या इससे हमारा अर्थ कभी तो एक शब्द, और कभी चार शब्द हो सकता है? और प्रायः इससे हमारा अर्थ कैसे होता है? — मेरे विचार में हमारी प्रवृत्ति यह कहने की होगी : इस वाक्य से हमारा अर्थ ''चतुश्शब्द'' होता है जब हम इस वाक्य को "मुझे एक पट्टी दो", "उसे एक पट्टी दो", "दो पट्टियां लाओ" इत्यादि वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करते हैं; अर्थात् उन वाक्यों से भेद करते हुए जिनमें हमारे आदेशों में प्रयुक्त अलग-अलग शब्दों के इतर संयोग होते हैं। — किन्तु किसी वाक्य को अन्य वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करने में क्या निहित होता है? क्या अन्य वाक्य संभवत : मन में विचरते रहते हैं? सभी ही? उस वाक्य को कहते हुए ही अथवा उससे पहले या फिर बाद में भी? — नहीं। यह व्याख्या चाहे हमें कुछ लुभावनी भी लगे तो भी यह देखने के लिए कि हम यहाँ पथभ्रष्ट हो रहे हैं, हमें केवल क्षण भर के लिए इतना ही सोचना आवश्यक है कि वास्तव में होता क्या है। हम कहते हैं कि हम आदेशात्मक वाक्य का अन्य वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करते हैं क्योंकि हमारी भाषा में उन अन्य वाक्यों की संभावना निहित है। वह विदेशी जो हमारी भाषा को नहीं समझता, और जिसने कई बार किसी को "मुझे पट्टी ला दो!" आदेश देते हुए सुना है संभवतः यह सोचे कि यह संपूर्ण ध्वनि-श्रृंखला तो 'निर्माण-पत्थर' जैसे उसकी भाषा के शब्द जैसा एक ही शब्द है। यदि उसने यह आदेश दिया होता, तो शायद वह उसका उच्चारण किसी और प्रकार से करता, और हम कहते : उसका उच्चारण इतना विचित्र इसलिए है कि वह इसे एक ही शब्द मानता है। — परन्तु ऐसा उच्चारण करते हुए क्या उसमें कुछ अन्य क्रिया नहीं हो रही होती — ऐसी प्रक्रिया जो इस तथ्य से सम्बद्ध हो कि उसकी इस वाक्य की संकल्पना एक ही शब्द की है? — या तो उसमें वही प्रक्रिया होगी या फिर उससे कुछ भिन्न। जब आप ऐसा आदेश देते हैं तो आप को क्या लगता है? यह आदेश देते हुए क्या आप सजग हैं- कि यह चार शब्दों का समूह है? बेशक, आप इस भाषा — जिसमें अन्य वाक्य भी हैं — में निपुण हैं, किन्तु आपकी यह निपुणता क्या तभी प्रकाशित होती है जब आप वाक्य को बोलते हैं? और यह मैंने मान ही लिया है कि यदि किसी विदेशी की इस वाक्य की संकल्पना भिन्न है, तो उसका उच्चारण भी भिन्न ही होगा। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि जिसे हम उसकी भ्रान्त संकल्पना कहते हैं वह उसके आदेश की किसी सहगामी प्रक्रिया में निहित हो।
'''20.''' परन्तु अब ऐसा लगता है कि जब कोई कहता है, "मुझे पट्टी ला दो", तो इस अभिव्यक्ति से उसका अर्थ अकेले शब्द "पट्टी!" के अनुरूप कोई ''एक'' लम्बा शब्द हो सकता है। — तो क्या इससे हमारा अर्थ कभी तो एक शब्द, और कभी चार शब्द हो सकता है? और प्रायः इससे हमारा अर्थ कैसे होता है? — मेरे विचार में हमारी प्रवृत्ति यह कहने की होगी : इस वाक्य से हमारा अर्थ ''चतुश्शब्द'' होता है जब हम इस वाक्य को "मुझे एक पट्टी दो", "उसे एक पट्टी दो", "दो पट्टियां लाओ" इत्यादि वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करते हैं; अर्थात् उन वाक्यों से भेद करते हुए जिनमें हमारे आदेशों में प्रयुक्त अलग-अलग शब्दों के इतर संयोग होते हैं। — किन्तु किसी वाक्य को अन्य वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करने में क्या निहित होता है? क्या अन्य वाक्य संभवत : मन में विचरते रहते हैं? सभी ही? उस वाक्य को कहते हुए ही अथवा उससे पहले या फिर बाद में भी? — नहीं। यह व्याख्या चाहे हमें कुछ लुभावनी भी लगे तो भी यह देखने के लिए कि हम यहाँ पथभ्रष्ट हो रहे हैं, हमें केवल क्षण भर के लिए इतना ही सोचना आवश्यक है कि वास्तव में होता क्या है। हम कहते हैं कि हम आदेशात्मक वाक्य का अन्य वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करते हैं क्योंकि हमारी भाषा में उन अन्य वाक्यों की संभावना निहित है। वह विदेशी जो हमारी भाषा को नहीं समझता, और जिसने कई बार किसी को "मुझे पट्टी ला दो!" आदेश देते हुए सुना है संभवतः यह सोचे कि यह संपूर्ण ध्वनि-श्रृंखला तो 'निर्माण-पत्थर' जैसे उसकी भाषा के शब्द जैसा एक ही शब्द है। यदि उसने यह आदेश दिया होता, तो शायद वह उसका उच्चारण किसी और प्रकार से करता, और हम कहते : उसका उच्चारण इतना विचित्र इसलिए है कि वह इसे एक ही शब्द मानता है। — परन्तु ऐसा उच्चारण करते हुए क्या उसमें कुछ अन्य क्रिया नहीं हो रही होती — ऐसी प्रक्रिया जो इस तथ्य से सम्बद्ध हो कि उसकी इस वाक्य की संकल्पना एक ही शब्द की है? — या तो उसमें वही प्रक्रिया होगी या फिर उससे कुछ भिन्न। जब आप ऐसा आदेश देते हैं तो आप को क्या लगता है? यह आदेश देते हुए क्या आप सजग हैं- कि यह चार शब्दों का समूह है? बेशक, आप इस भाषा — जिसमें अन्य वाक्य भी हैं — में निपुण हैं, किन्तु आपकी यह निपुणता क्या तभी प्रकाशित होती है जब आप वाक्य को बोलते हैं? और यह मैंने मान ही लिया है कि यदि किसी विदेशी की इस वाक्य की संकल्पना भिन्न है, तो उसका उच्चारण भी भिन्न ही होगा। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि जिसे हम उसकी भ्रान्त संकल्पना कहते हैं वह उसके आदेश की किसी सहगामी प्रक्रिया में निहित हो।


यह 'पदलोची' वाक्य है, इसलिए नहीं कि इसको बोलते हुए जो हम सोचते हैं उसमें से कुछ छूट जाता है, परन्तु इसलिए कि हमारी भाषा के विशिष्ट प्रतिमान की तुलना में यह संक्षिप्त है। — बेशक यहाँ कोई टोक सकता है: "आप यह मानते हैं कि संक्षिप्त और असंक्षिप्त वाक्य का अर्थ एक ही है — तो यह अर्थ क्या है? क्या इस अर्थ के लिए कोई भाषाई अभिव्यक्ति नहीं है?" — किन्तु वाक्यों के एक ही अर्थ होने का तथ्य क्या उनके प्रयोग की अभिन्नता में ही निहित नहीं है? — (रूसी भाषा में "पत्थर लाल है" की बजाय "पत्थर लाल" कहते हैं; क्या उन्हें इस के अर्थ में "है" का अभाव खटकता है, या फिर वे उसे अपने विचार में जोड़ लेते हैं?)
यह 'पदलोची' वाक्य है, इसलिए नहीं कि इसको बोलते हुए जो हम सोचते हैं उसमें से कुछ छूट जाता है, परन्तु इसलिए कि हमारी भाषा के विशिष्ट प्रतिमान की तुलना में यह संक्षिप्त है। — बेशक यहाँ कोई टोक सकता है: "आप यह मानते हैं कि संक्षिप्त और असंक्षिप्त वाक्य का अर्थ एक ही है — तो यह अर्थ क्या है? क्या इस अर्थ के लिए कोई भाषाई अभिव्यक्ति नहीं है?" — किन्तु वाक्यों के एक ही अर्थ होने का तथ्य क्या उनके प्रयोग की अभिन्नता में ही निहित नहीं है? — (रूसी भाषा में "पत्थर लाल है" की बजाय "पत्थर लाल" कहते हैं; क्या उन्हें इस के अर्थ में "है" का अभाव खटकता है, या फिर वे उसे अपने विचार में जोड़ लेते हैं?)