फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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''कन्फैशन्स'' में ऑगस्टीन कहते हैं: “समय क्या है? जब तक इस प्रश्न को मुझ से नहीं पूछा जाता, तब तक मैं इसका उत्तर जानता हूँ; किन्तु प्रश्न पूछे जाने पर मुझे उसका उत्तर नहीं सूझता।” — प्राकृतिक विज्ञान के प्रश्न के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता (उदाहरणार्थ, “हाइड्रोजन का आपेक्षिक गुरुत्त्व क्या है?”)। किसी ऐसी बात को हमें ''स्मरण रखने की'' आवश्यकता है जिसे हम तब तो जानते हैं जब हमसे उसके बारे में कोई नहीं पूछता; किन्तु जब हमसे उसके विवरण की अपेक्षा की जाती है तब हम उसे नहीं जानते। (और स्पष्टतः यह कोई ऐसी बात है जिसको किसी कारणवश याद रखना कठिन है।)
''कन्फैशन्स'' में ऑगस्टीन कहते हैं: “समय क्या है? जब तक इस प्रश्न को मुझ से नहीं पूछा जाता, तब तक मैं इसका उत्तर जानता हूँ; किन्तु प्रश्न पूछे जाने पर मुझे उसका उत्तर नहीं सूझता।” — प्राकृतिक विज्ञान के प्रश्न के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता (उदाहरणार्थ, “हाइड्रोजन का आपेक्षिक गुरुत्त्व क्या है?”)। किसी ऐसी बात को हमें ''स्मरण रखने की'' आवश्यकता है जिसे हम तब तो जानते हैं जब हमसे उसके बारे में कोई नहीं पूछता; किन्तु जब हमसे उसके विवरण की अपेक्षा की जाती है तब हम उसे नहीं जानते। (और स्पष्टतः यह कोई ऐसी बात है जिसको किसी कारणवश याद रखना कठिन है।)


'''90.''' ऐसा प्रतीत होता है मानो हमें संवृत्तियों को ''भेदना'' पड़ेगा: बहरहाल हमारे अन्वेषण की दिशा तो संवृत्ति की ओर न होकर, यूँ कहिये कि संवृत्ति की ‘संभावनाओं’ की ओर है। अतः हम स्वयं संवृत्ति के बारे में अपने ''वक्तव्य के प्रकार'' का स्मरण करते हैं। अतः ऑगस्टीन घटनाओं की अवधि, उनके भूत, वर्तमान अथवा भविष्य के बारे में दिए गए विभिन्न वक्तव्यों का स्मरण करते हैं। (बेशक ये वक्तव्य भूत, वर्तमान एवं भविष्य काल के बारे में ''दार्शनिक'' वक्तव्य नहीं हैं।)
'''90.''' ऐसा प्रतीत होता है मानो हमें संवृत्तियों को ''भेदना'' पड़ेगा: बहरहाल हमारे अन्वेषण की दिशा तो संवृत्ति की ओर न होकर, यूँ कहिये कि संवृत्ति की ‘''संभावनाओं''’ की ओर है। अतः हम स्वयं संवृत्ति के बारे में अपने ''वक्तव्य के प्रकार'' का स्मरण करते हैं। अतः ऑगस्टीन घटनाओं की अवधि, उनके भूत, वर्तमान अथवा भविष्य के बारे में दिए गए विभिन्न वक्तव्यों का स्मरण करते हैं। (बेशक ये वक्तव्य भूत, वर्तमान एवं भविष्य काल के बारे में ''दार्शनिक'' वक्तव्य नहीं हैं।)


अतः हमारा अन्वेषण तो व्याकरणपरक है। ऐसा अन्वेषण भ्रम को दूर कर हमारी समस्या पर प्रकाश डालता है। शब्द प्रयोग संबंधी भ्रम अन्य कारणों के साथ-साथ विभिन्न भाषा क्षेत्रों की अभिव्यक्ति-प्रकारों में पाई जाने वाली विशिष्ट समानताओं के कारण होते हैं। — उनमें से कुछ भ्रम तो किसी अभिव्यक्ति के एक प्रकार को दूसरे प्रकार से प्रतिस्थापित कर दूर किए जा सकते हैं; इसे हम अभिव्यक्ति-प्रकार का “विश्लेषण” कह सकते हैं क्योंकि यह प्रक्रिया किसी वस्तु को विच्छिन्न करने के समान है।
अतः हमारा अन्वेषण तो व्याकरणपरक है। ऐसा अन्वेषण भ्रम को दूर कर हमारी समस्या पर प्रकाश डालता है। शब्द प्रयोग संबंधी भ्रम अन्य कारणों के साथ-साथ विभिन्न भाषा क्षेत्रों की अभिव्यक्ति-प्रकारों में पाई जाने वाली विशिष्ट समानताओं के कारण होते हैं। — उनमें से कुछ भ्रम तो किसी अभिव्यक्ति के एक प्रकार को दूसरे प्रकार से प्रतिस्थापित कर दूर किए जा सकते हैं; इसे हम अभिव्यक्ति-प्रकार का “विश्लेषण” कह सकते हैं क्योंकि यह प्रक्रिया किसी वस्तु को विच्छिन्न करने के समान है।