फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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{{ParPU|59}} “''नाम'' केवल उसका ही द्योतन करते हैं जिसमें वास्तविकता का ''तत्त्व'' होता है; जिसको नष्ट नहीं किया जा सकता; जो सभी परिवर्तनों में समान रहता है।” — किन्तु वह है क्या? — क्यों, जैसे ही हमने यह वाक्य कहा वह हमारे मन में झूल गया! एक अत्यंत विशिष्ट प्रतिबिंब की: विशिष्ट चित्र की, यही तो ऐसी अभिव्यक्ति थी जिसका हम प्रयोग करना चाहते हैं। क्योंकि निश्चित रूप से, अनुभव तो हमें ऐसे तत्त्व प्रदर्शित नहीं करता। हम किसी संयुक्त विषय के (उदाहरणार्थ, कुर्सी के) ''संघटक'' अंगों को देखते हैं। हम कहते हैं कि कुर्सी की पीठ कुर्सी का अंग है, किन्तु पीठ स्वयं तो लकड़ी के अनेक टुकड़ों से बनी है; जबकि कुर्सी की टांग तो कुर्सी का असंयुक्त संघटक अंग है। हम ऐसे साकल्य को भी जानते हैं जिसमें परिवर्तन होता है (जो नष्ट हो जाता है) जबकि उसके संघटक अंग अपरिवर्तित रहते हैं। यही वे पदार्थ हैं जिनसे हम वास्तविकता के चित्र की रचना करते हैं।
{{ParPU|59}} “''नाम'' केवल उसका ही द्योतन करते हैं जिसमें वास्तविकता का ''तत्त्व'' होता है; जिसको नष्ट नहीं किया जा सकता; जो सभी परिवर्तनों में समान रहता है।” — किन्तु वह है क्या? — क्यों, जैसे ही हमने यह वाक्य कहा वह हमारे मन में झूल गया! एक अत्यंत विशिष्ट प्रतिबिंब की: विशिष्ट चित्र की, यही तो ऐसी अभिव्यक्ति थी जिसका हम प्रयोग करना चाहते हैं। क्योंकि निश्चित रूप से, अनुभव तो हमें ऐसे तत्त्व प्रदर्शित नहीं करता। हम किसी संयुक्त विषय के (उदाहरणार्थ, कुर्सी के) ''संघटक'' अंगों को देखते हैं। हम कहते हैं कि कुर्सी की पीठ कुर्सी का अंग है, किन्तु पीठ स्वयं तो लकड़ी के अनेक टुकड़ों से बनी है; जबकि कुर्सी की टांग तो कुर्सी का असंयुक्त संघटक अंग है। हम ऐसे साकल्य को भी जानते हैं जिसमें परिवर्तन होता है (जो नष्ट हो जाता है) जबकि उसके संघटक अंग अपरिवर्तित रहते हैं। यही वे पदार्थ हैं जिनसे हम वास्तविकता के चित्र की रचना करते हैं।


{{ParPU|60}} जब मैं कहता हूँ: “मेरा लम्बे हत्थे वाला झाडू कोने में रखा है”, — तो क्या वास्तव में यह कथन झाडू के हत्थे एवं झाड़ू के बारे में है? हाँ, इसे तो हत्थे की स्थिति एवं झाडू की स्थिति बताने वाले कथन द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। और यह कथन निस्संदेह पहले वाले का अधिक विश्लेषित रूप है। — किन्तु मैं उसे ‘अधिक विश्लेषित’ क्यों कहता हूँ? — हाँ, यदि झाडू वहाँ है तो उसका निश्चित रूप से अर्थ है कि हत्थे एवं झाडू को भी एक दूसरे से विशेष प्रकार से संबंधित रूप
{{ParPU|60}} जब मैं कहता हूँ: “मेरा लम्बे हत्थे वाला झाडू कोने में रखा है”, — तो क्या वास्तव में यह कथन झाडू के हत्थे एवं झाड़ू के बारे में है? हाँ, इसे तो हत्थे की स्थिति एवं झाडू की स्थिति बताने वाले कथन द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। और यह कथन निस्संदेह पहले वाले का अधिक विश्लेषित रूप है। — किन्तु मैं उसे ‘अधिक विश्लेषित’ क्यों कहता हूँ? — हाँ, यदि झाडू वहाँ है तो उसका निश्चित रूप से अर्थ है कि हत्थे एवं झाडू को भी एक दूसरे से विशेष प्रकार से संबंधित रूप में वहाँ होना चाहिए। और पहले वाक्य के अर्थ में मानो यह बात छिपी हुई थी, और विश्लेषित वाक्य में स्पष्टतः ''अभिव्यक्त'' हो गई है। तो क्या जब कोई कहता है कि झाडू कोने में पड़ी है तो उसका वास्तव में अर्थ होता है: झाडू का हत्था है, और झाड़ू भी वहाँ पड़ी है, और हत्था झाडू में जुड़ा है? — झाडू यदि हम किसी से पूछें कि क्या उसका यह अर्थ था तो सम्भवतः वह कहेगा कि उसने विशेष रूप से हत्थे के बारे में, विशेष रूप से झाड़ू के बारे में सोचा ही नहीं था। और वह ''सही'' उत्तर होगा, क्योंकि उसका तात्पर्य विशेषतः न तो हत्थे का और न ही झाडू का उल्लेख करना था। मान लीजिए कि “झाडू मेरे पास लाओ” कहने के स्थान पर आप कहें “झाडू के हत्थे और उस झाडू को जो उससे जुड़ा है मेरे पास लाओ”! — क्या यह उत्तर नहीं है: “क्या आप झाडू माँग रहे हैं? आप इसे इतने अजीब ढंग से क्यों कह रहे हैं?” — क्या वह अधिक विश्लेषित वाक्य को अच्छी प्रकार से समझता है? कहा जा सकता है कि उससे इतना ही पता चलता है जितना कि साधारण वाक्य से, किन्तु यह जानकारी अधिक घुमावदार ढंग से मिलती है। — ऐसे भाषा-खेल की कल्पना कीजिए जिसमें किसी को अनेक भागों से बने विशेष विषयों को लाने का, उन्हें घुमाने फिराने का, अथवा इसी प्रकार का कुछ और करने का आदेश दिया जाता है। और उसे खेलने के दो ढंग हैं: (क) एक में §15 के सदृश संयुक्त विषयों (झाडुओं, कुर्सियों, मेजों, इत्यादि) के नाम होते हैं; (ख) दूसरे में केवल भागों का ही नामकरण किया जाता है और उनके द्वारा साकल्य का विवरण दिया जाता है। दूसरे खेल का आदेश किस अर्थ में पहले खेल के आदेश का विश्लेषित रूप है? क्या उत्तरोक्त पूर्वोक्त में छिपा होता है, और विश्लेषण द्वारा इसे अब उजागर किया जा रहा है? यह ठीक है कि जब झाडू को हत्थे को और झाड़ू को अलग किया जाता है तो झाडू को खंडित किया जाता है; किन्तु क्या उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि झाडू लाने के आदेश में इसके सम्बद्ध भागों को लाने का आदेश भी निहित है?
 
में वहाँ होना चाहिए। और पहले वाक्य के अर्थ में मानो यह बात छिपी हुई थी, और विश्लेषित वाक्य में स्पष्टतः ''अभिव्यक्त'' हो गई है। तो क्या जब कोई कहता है कि झाडू कोने में पड़ी है तो उसका वास्तव में अर्थ होता है: झाडू का हत्था है, और झाड़ू भी वहाँ पड़ी है, और हत्था झाडू में जुड़ा है? — झाडू यदि हम किसी से पूछें कि क्या उसका यह अर्थ था तो सम्भवतः वह कहेगा कि उसने विशेष रूप से हत्थे के बारे में, विशेष रूप से झाड़ू के बारे में सोचा ही नहीं था। और वह ''सही'' उत्तर होगा, क्योंकि उसका तात्पर्य विशेषतः न तो हत्थे का और न ही झाडू का उल्लेख करना था। मान लीजिए कि “झाडू मेरे पास लाओ” कहने के स्थान पर आप कहें “झाडू के हत्थे और उस झाडू को जो उससे जुड़ा है मेरे पास लाओ”! — क्या यह उत्तर नहीं है: “क्या आप झाडू माँग रहे हैं? आप इसे इतने अजीब ढंग से क्यों कह रहे हैं?” — क्या वह अधिक विश्लेषित वाक्य को अच्छी प्रकार से समझता है? कहा जा सकता है कि उससे इतना ही पता चलता है जितना कि साधारण वाक्य से, किन्तु यह जानकारी अधिक घुमावदार ढंग से मिलती है। — ऐसे भाषा-खेल की कल्पना कीजिए जिसमें किसी को अनेक भागों से बने विशेष विषयों को लाने का, उन्हें घुमाने फिराने का, अथवा इसी प्रकार का कुछ और करने का आदेश दिया जाता है। और उसे खेलने के दो ढंग हैं: (क) एक में §15 के सदृश संयुक्त विषयों (झाडुओं, कुर्सियों, मेजों, इत्यादि) के नाम होते हैं; (ख) दूसरे में केवल भागों का ही नामकरण किया जाता है और उनके द्वारा साकल्य का विवरण दिया जाता है। दूसरे खेल का आदेश किस अर्थ में पहले खेल के आदेश का विश्लेषित रूप है? क्या उत्तरोक्त पूर्वोक्त में छिपा होता है, और विश्लेषण द्वारा इसे अब उजागर किया जा रहा है? यह ठीक है कि जब झाडू को हत्थे को और झाड़ू को अलग किया जाता है तो झाडू को खंडित किया जाता है; किन्तु क्या उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि झाडू लाने के आदेश में इसके सम्बद्ध भागों को लाने का आदेश भी निहित है?


{{ParPU|61}} “किन्तु फिर भी आप इस बात से इन्कार नहीं करेंगे कि (क) में किसी विशेष आदेश का वही अर्थ होता है जो (ख) में होता है; और यदि आप दूसरे को पहले का विश्लेषित रूप न कहें तो आप उसे क्या कहेंगे?” — निश्चित रूप से मुझे भी यह कहना चाहिए कि (क) में आदेश का वही अर्थ होता है जो (ख) में; अथवा जैसे मैंने पहले कहा था: उनसे एक ही बात का पता चलता है। और इसका अर्थ है कि यदि मुझे (क) में कोई आदेश दिखाया जाए और पूछा जाए: “(ख) में कौन से आदेश का इस के जैसा अर्थ है? अथवा फिर “यह (ख) के किस आदेश का व्याघाती है?” तो मुझे अमुक उत्तर देना चाहिए। किन्तु वह यह कहना तो नहीं है कि “वही अर्थ होना”, अथवा “एक ही बात का पता चलना” अभिव्यक्तियों के प्रयोग के बारे में हम किसी ''सामान्य'' सहमति पर पहुँच गए हैं। क्योंकि यह पूछा जा सकता है कि किन स्थितियों में हम कहते हैं: “यह तो एक खेल के ही दो रूप हैं।”
{{ParPU|61}} “किन्तु फिर भी आप इस बात से इन्कार नहीं करेंगे कि (क) में किसी विशेष आदेश का वही अर्थ होता है जो (ख) में होता है; और यदि आप दूसरे को पहले का विश्लेषित रूप न कहें तो आप उसे क्या कहेंगे?” — निश्चित रूप से मुझे भी यह कहना चाहिए कि (क) में आदेश का वही अर्थ होता है जो (ख) में; अथवा जैसे मैंने पहले कहा था: उनसे एक ही बात का पता चलता है। और इसका अर्थ है कि यदि मुझे (क) में कोई आदेश दिखाया जाए और पूछा जाए: “(ख) में कौन से आदेश का इस के जैसा अर्थ है? अथवा फिर “यह (ख) के किस आदेश का व्याघाती है?” तो मुझे अमुक उत्तर देना चाहिए। किन्तु वह यह कहना तो नहीं है कि “वही अर्थ होना”, अथवा “एक ही बात का पता चलना” अभिव्यक्तियों के प्रयोग के बारे में हम किसी ''सामान्य'' सहमति पर पहुँच गए हैं। क्योंकि यह पूछा जा सकता है कि किन स्थितियों में हम कहते हैं: “यह तो एक खेल के ही दो रूप हैं।”