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657. गणित की प्रतिज्ञप्तियों के बारे में कहा जा सकता है कि वे जड़ हो चुकी हैं। – "मैं... कहलाता हूँ", के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। किन्तु मेरे जैसे | 657. गणित की प्रतिज्ञप्तियों के बारे में कहा जा सकता है कि वे जड़ हो चुकी हैं। – "मैं... कहलाता हूँ", के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। किन्तु मेरे जैसे | ||
कई अन्य लोग भी अनेकानेक प्रमाणों के आधार पर इसे ''अकाट्य'' मानते हैं। और वे विचारहीनता के कारण ऐसा नहीं मानते, क्योंकि, किसी प्रमाण का अत्यन्त प्रभावी बल इस तथ्य में निहित है कि उससे प्रतिकूल प्रमाण की स्थिति में भी हमें उसे छोड़ने की ''आवश्यकता'' नहीं पड़ती। अतः, अब हमें गणितीय प्रतिज्ञप्तियों को अकाट्य बनाने वाले आधार जैसा आधार मिल गया है। | |||
658. "किन्तु कहीं अभी आप भ्रमित तो नहीं हैं और थोड़ी देर बाद आपको संभवतः इसका पता चले?" – पहाड़ों की प्रतिज्ञप्ति पर सवालिया चिह्न अंकित करने के लिए भी इस प्रश्न को उठाया जा सकता है? | |||
659. "मैंने अभी-अभी भोजन किया है इस तथ्य के बारे में मैं भूल नहीं कर सकता।" | |||
क्योंकि, जब मैं किसी को "मैंने अभी-अभी भोजन किया है" कहता हूँ तो वह सोच सकता है कि या तो मैं झूठ बोल रहा हूँ या फिर मैं पागल हो गया हूँ, किन्तु वह यह नहीं सोच सकता कि मैं भूल कर रहा हूँ । यहाँ मेरे भूल करने की कल्पना करना निरर्थक है । | |||
किन्तु यह सत्य नहीं है । उदाहरणार्थ, यह सम्भव है कि खाना खाने के तुरन्त बाद अनजाने ही एक घंटे के लिए मैं सो गया होऊँ और अब सोचता हूँ कि मैंने अभी-अभी खाना खाया है । | |||
किन्तु फिर भी यहाँ मैं भूल के विभिन्न प्रकारों में भेद करता हूँ । | |||
660. मैं पूछ सकता हूँ: "अपना नाम लु. वि. होने के बारे में मैं कैसे भूल कर सकता हूँ?" और मैं कह सकता हूँ: मैं नहीं जानता कि यह कैसे संभव होगा । | |||
661. मैं कभी भी चाँद पर नहीं गया, अपनी इस मान्यता के बारे में मैं कैसे भूल कर सकता हूँ? | |||
662. "मैं कभी भी चाँद पर नहीं गया – किन्तु मैं भूल कर सकता हूँ" मेरा यह कहना तो बेवकूफी ही होगी। | |||
क्योंकि सपने में, अज्ञात साधनों द्वारा, वहाँ ले जाए जाने की कल्पना भी मुझे यहाँ भूल के उल्लेख का ''अधिकार नहीं देती''। ऐसा करने पर मैं खेल को ''गलत'' ढंग से खेलता हूँ। | |||
663. भूल करने पर भी मुझे यह कहने का अधिकार है कि "मैं इस बारे में भूल कर ही नहीं सकता"। | |||
664. इन दोनों स्थितियों में भेद है: गणित में सही और गलत की पहचान कोई पाठशाला में सीखता है या फिर मैं स्वयं कहता हूँ कि प्रतिज्ञप्ति के बारे में मैं कोई भूल कर ही नहीं सकता। | |||
665. उत्तरकथन में मैं पूर्वनिर्धारित नियम में कोई विशेष बात जोड़ता हूँ । | |||
666. किन्तु शरीर - रचना (या उसके बड़े भाग) के बारे में क्या कहें? क्या उसके वर्णन को भी संशय से मुक्ति मिली हुई है? | |||
667. स्वप्न में चाँद पर ले जाए जाने का विश्वास रखने वाले लोगों के देश में पहुँचने पर भी, मैं उन्हें यह नहीं कह सकता: "मैं कभी भी चाँद पर नहीं गया हूँ। – बेशक मैं भूल कर सकता हूँ।" और उनके यह प्रश्न पूछने पर कि "कहीं आप भूल तो नहीं कर रहे?" मुझे उत्तर देना होगा : नहीं। | |||
668. किसी को कोई सूचना देने के साथ-साथ मेरे इस कथन कि मैं उसके बारे में कोई भूल कर ही नहीं सकता के क्या व्यावहारिक परिणाम होंगे ? | |||
(बल्कि मैं यह भी जोड़ सकता हूँ: "जैसे मैं अपना नाम लु. वि. होने के बारे में भूल नहीं कर सकता, वैसे ही इसके बारे में भी भूल नहीं कर सकता।") | |||
फिर भी कोई अन्य व्यक्ति मेरे कथन पर संशय प्रकट कर सकता है। किन्तु, मुझ 'पर भरोसा करने पर वह न केवल मेरी सूचना को स्वीकार करता है अपितु वह मेरी धारणा से मेरे आगामी व्यवहार का भी निश्चित अनुमान लगा लेता है। | |||
669. "मैं भूल कर ही नहीं सकता" यह वाक्य व्यवहार में प्रयुक्त होता है। किन्तु हम पूछ सकते हैं कि क्या हमें इसे इसके संकीर्ण अर्थ में समझना है या फिर यह एक प्रकार की अतिशयोक्ति है जिसका प्रयोग संभवतः किसी को मनाने के लिए किया जाता है। | |||
27.4. | |||
670. हम मानवीय अन्वेषण के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कर सकते हैं। | |||
671. मैं यहाँ से संसार के उस भाग में उड़ कर जाता हूँ जहाँ के लोगों ने उड़ने की संभावना के बारे में या तो बहुत कम या फिर कुछ भी न सुना हो। मैं उन्हें बताता हूँ कि मैं अभी-अभी... से उड़ कर आया हूँ। वे मुझसे पूछते हैं कि कहीं मैं भूल तो नहीं कर रहा। – स्पष्टतः उड़ने के बारे में उनके दोषपूर्ण विचार हैं। (संदूक में बन्द होकर यात्रा करने पर अपनी यात्रा के साधन के बारे में मुझसे भूल होने की संभावना है।) मेरे मात्र यह कहने से कि मैं गलती नहीं कर सकता संभवत: वे सन्तुष्ट नहीं होंगे; किन्तु वास्तविक विधि के विवरण से वे सन्तुष्ट हो जाएंगे। फिर वे ''भूल'' करने की संभावना की बात ही नहीं करेंगे। किन्तु इतना होने पर – मुझ पर भरोसा करने पर भी – वे सोच सकते हैं कि मैं स्वप्नावस्था में था, या जादू के वशीभूत मैं इसकी कल्पना कर रहा हूँ । | |||
672. 'जब मैं ''इस'' साक्ष्य पर भरोसा नहीं करता तो मैं किसी अन्य साक्ष्य पर भरोसा क्यों करूँ?' | |||
673. क्या मेरे द्वारा कतई गलती न कर सकने, और ''न के बराबर'' गलती करने की संभावना वाली स्थितियों में भेद करना कठिन नहीं है? स्थिति के प्रकार के बारे में क्या हम सदा सुस्पष्ट होते हैं? मेरे विचार में तो नहीं। | |||
674. बेशक, ऐसी स्थितियाँ होती हैं जिनमें मेरा यह कहना उचित होता है कि मैं भूल कर ही नहीं सकता, और मूअर उन स्थितियों के कुछ उदाहरण देते हैं। | |||
मैं ऐसी अनेक स्थितियों का वर्णन कर सकता हूँ किन्तु उनके किसी सामान्य गुण के बारे में नहीं बता सकता। (न. न. यह भूल नहीं कर सकता कि उसने कुछ ही दिन पहले अमेरिका से इंगलैंड के लिए उड़ान भरी थी । पागल होने की स्थिति में ही वह किसी अन्य बात की संभावना को स्वीकार करेगा।) | |||
675. यदि कोई यह सोचे कि उसने कुछ ही दिन पहले अमेरिका से इंगलैंड के लिए उड़ान भरी थी, तो, मेरा विश्वास है कि वह ''भूल'' कर ही नहीं सकता । | |||
यही उस व्यक्ति की स्थिति है, जो यह कहता है कि वह इस समय मेज-कुर्सी पर बैठा लिख रहा है। | |||
676. "किन्तु चाहे ऐसी स्थितियों में मैं गलती नहीं भी कर सकूँ तो भी क्या मेरा नशे में होना संभव नहीं है?" यदि मैं नशे में हूँ और यदि नशे ने मेरी चेतना हर ली है, तो वस्तुत: मैं अभी न तो वार्तालाप कर रहा हूँ और न ही चिन्तन कर रहा हूँ। मैं इस क्षण स्वप्नाविष्ट होने की दुरूह कल्पना भी नहीं कर सकता। स्वप्न के समय "मुझे सपना आ रहा है" ऐसा कहने वाले व्यक्ति की बात सुनाई देने पर भी वह उतनी ही ठीक होती है जितनी वास्तविक वर्षा की स्थिति में स्वप्न में उसका यह कथन कि "वर्षा हो रही है", भले ही उसका स्वप्न, वर्षा के कोलाहल से वस्तुतः सम्बन्धित ही क्यों न हो। | |||
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