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{{ParUG|189}} कभी तो व्याख्या से वर्णन मात्र पर पहुँचना पड़ता है। | {{ParUG|189}} कभी तो व्याख्या से वर्णन मात्र पर पहुँचना पड़ता है। | ||
{{ParUG|190}} जिसे हम ऐतिहासिक साक्ष्य कहते हैं वह बतलाता है कि मेरे जन्म के बहुत पहले से ही पृथ्वी का अस्तित्व है; — विपरीत-कल्पना के समर्थन में ''कुछ भी नहीं | {{ParUG|190}} जिसे हम ऐतिहासिक साक्ष्य कहते हैं वह बतलाता है कि मेरे जन्म के बहुत पहले से ही पृथ्वी का अस्तित्व है; — विपरीत-कल्पना के समर्थन में ''कुछ भी नहीं है''। | ||
{{ParUG|191}} यदि सभी कुछ किसी प्राक्कल्पना के पक्ष में हो और विपक्ष में कुछ भी न कहा जाए — तो क्या वह निश्चित रूप से सत्य होती है? उसके बारे में ऐसा कहा जा सकता है। — किन्तु क्या वह निश्चित रूप से यथार्थ के, तथ्यों के अनुरूप होती है? — इस प्रश्न को पूछते ही आप एक चक्रव्यूह में फँस जाते हैं। | {{ParUG|191}} यदि सभी कुछ किसी प्राक्कल्पना के पक्ष में हो और विपक्ष में कुछ भी न कहा जाए — तो क्या वह निश्चित रूप से सत्य होती है? उसके बारे में ऐसा कहा जा सकता है। — किन्तु क्या वह निश्चित रूप से यथार्थ के, तथ्यों के अनुरूप होती है? — इस प्रश्न को पूछते ही आप एक चक्रव्यूह में फँस जाते हैं। |