फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

no edit summary
No edit summary
No edit summary
Line 65: Line 65:
'''6.''' हम कल्पना कर सकते हैं कि §2 में वर्णित भाषा '''क''' एवं '''ख''' की, अपितु किसी जन-जाति की ''सम्पूर्ण'' भाषा है। बच्चों को यही सिखाया जाता है कि ''यही'' कार्य करें, उनको करते हुए ''इन्हीं'' शब्दों का प्रयोग करें, और दूसरे के शब्दों पर ''यही'' प्रतिक्रिया करें।
'''6.''' हम कल्पना कर सकते हैं कि §2 में वर्णित भाषा '''क''' एवं '''ख''' की, अपितु किसी जन-जाति की ''सम्पूर्ण'' भाषा है। बच्चों को यही सिखाया जाता है कि ''यही'' कार्य करें, उनको करते हुए ''इन्हीं'' शब्दों का प्रयोग करें, और दूसरे के शब्दों पर ''यही'' प्रतिक्रिया करें।


अध्यापक का वस्तुओं को इंगित करते हुए, बच्चों का ध्यान उस ओर आकृष्ट करना और ऐसा करते समय किसी शब्द का उच्चारण करना इस प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है; उदाहरणार्थ "पट्टी" शब्द का उच्चारण करते हुए उचित आकार की ओर इंगित करना। (मैं इसे "निदर्शनात्मक परिभाषा" नहीं कहना चाहता क्योंकि बच्चा अभी यह नहीं पूछ सकता कि इसका नाम क्या है। मैं इसे शब्दों का "निदर्शनात्मक शिक्षण" कहूँगा। — मैं कहता हूँ कि यह प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है; इसलिए नहीं कि इसके अलावा प्रशिक्षण के किसी अन्य प्रकार की कल्पना नहीं की जा सकती बल्कि इसलिए कि मानव-जाति के साथ होता ऐसा ही है।) यह कहा जा सकता है कि शब्दों का निदर्शनात्मक प्रशिक्षण शब्द और विषय का साहचर्य स्थापित करता है। ??? इसका अर्थ क्या है? इसके तो अनेक अर्थ हो सकते हैं; सर्वप्रथम तो हम संभवतः यही सोचेंगे कि किसी शब्द के सुनने पर बच्चे के मानस पटल पर उस विषय का चित्र उभर आता है। किन्तु यदि ऐसा होता भी हो, तो भी — क्या शब्द का प्रयोजन यही है? — हाँ यह प्रयोजन ''भी हो सकता'' है। — मैं शब्दों के (ध्वनियों की एक श्रृंखला के) ऐसे प्रयोग की कल्पना कर सकता हूँ। (शब्द का उच्चारण करना तो कल्पना के स्वर-मण्डल पर स्वर को छेड़ने जैसा ही है। परन्तु §2 की भाषा में शब्दों का प्रयोजन बिम्बोद्दीपन तो नहीं है। (हालांकि संभव है कि हमें आगे चलकर पता चले कि बिम्बोद्दीपन भाषा के वास्तविक प्रयोजन को समझने में सहायक हो सकता है।)
अध्यापक का वस्तुओं को इंगित करते हुए, बच्चों का ध्यान उस ओर आकृष्ट करना और ऐसा करते समय किसी शब्द का उच्चारण करना इस प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है; उदाहरणार्थ "पट्टी" शब्द का उच्चारण करते हुए उचित आकार की ओर इंगित करना। (मैं इसे "निदर्शनात्मक परिभाषा" नहीं कहना चाहता क्योंकि बच्चा अभी यह नहीं पूछ सकता कि इसका नाम क्या है। मैं इसे शब्दों का "निदर्शनात्मक शिक्षण" कहूँगा। — मैं कहता हूँ कि यह प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है; इसलिए नहीं कि इसके अलावा प्रशिक्षण के किसी अन्य प्रकार की कल्पना नहीं की जा सकती बल्कि इसलिए कि मानव-जाति के साथ होता ऐसा ही है।) यह कहा जा सकता है कि शब्दों का निदर्शनात्मक प्रशिक्षण शब्द और विषय का साहचर्य स्थापित करता है। परन्तु इसका अर्थ क्या है? इसके तो अनेक अर्थ हो सकते हैं; सर्वप्रथम तो हम संभवतः यही सोचेंगे कि किसी शब्द के सुनने पर बच्चे के मानस पटल पर उस विषय का चित्र उभर आता है। किन्तु यदि ऐसा होता भी हो, तो भी — क्या शब्द का प्रयोजन यही है? — हाँ यह प्रयोजन ''भी हो सकता'' है। — मैं शब्दों के (ध्वनियों की एक श्रृंखला के) ऐसे प्रयोग की कल्पना कर सकता हूँ। (शब्द का उच्चारण करना तो कल्पना के स्वर-मण्डल पर स्वर को छेड़ने जैसा ही है। परन्तु §2 की भाषा में शब्दों का प्रयोजन बिम्बोद्दीपन तो नहीं है। (हालांकि संभव है कि हमें आगे चलकर पता चले कि बिम्बोद्दीपन भाषा के वास्तविक प्रयोजन को समझने में सहायक हो सकता है।)


परन्तु यदि निदर्शनात्मक शिक्षण का ऐसा परिणाम है — तो क्या यह कहना होगा कि इस से शाब्द-बोध प्रभावित होता है? क्या आप "पट्टी", कथन को नहीं समझते जब आप इस कथन को सुनकर अमुक कार्य करने लगते हैं? — बेशक, निदर्शनात्मक शिक्षण ऐसा करने में सहायक तो हुआ, परन्तु विशेष प्रशिक्षण के संयोग के साथ ही। अन्य प्रशिक्षण के साथ, इन्हीं शब्दों का वही निदर्शनात्मक शिक्षण नितान्त भिन्न बोध कराने वाला होता।
परन्तु यदि निदर्शनात्मक शिक्षण का ऐसा परिणाम है — तो क्या यह कहना होगा कि इस से शाब्द-बोध प्रभावित होता है? क्या आप "पट्टी", कथन को नहीं समझते जब आप इस कथन को सुनकर अमुक कार्य करने लगते हैं? — बेशक, निदर्शनात्मक शिक्षण ऐसा करने में सहायक तो हुआ, परन्तु विशेष प्रशिक्षण के संयोग के साथ ही। अन्य प्रशिक्षण के साथ, इन्हीं शब्दों का वही निदर्शनात्मक शिक्षण नितान्त भिन्न बोध कराने वाला होता।
Line 534: Line 534:
''कन्फैशन्स'' में ऑगस्टीन कहते हैं : "समय क्या है? जब तक इस प्रश्न को मुझ से नहीं पूछा जाता, तब तक मैं इसका उत्तर जानता हूँ; किन्तु प्रश्न पूछे जाने पर मुझे उसका उत्तर नहीं सूझता।" — प्राकृतिक विज्ञान के प्रश्न के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता (उदाहरणार्थ, "हाइड्रोजन का आपेक्षिक गुरुत्त्व क्या है?")। किसी ऐसी बात को हमें ''स्मरण रखने की'' आवश्यकता है जिसे हम तब तो जानते हैं जब हमसे उसके बारे में कोई नहीं पूछता; किन्तु जब हमसे उसके विवरण की अपेक्षा की जाती है तब हम उसे नहीं जानते। (और स्पष्टतः यह कोई ऐसी बात है जिसको किसी कारणवश याद रखना कठिन है।)
''कन्फैशन्स'' में ऑगस्टीन कहते हैं : "समय क्या है? जब तक इस प्रश्न को मुझ से नहीं पूछा जाता, तब तक मैं इसका उत्तर जानता हूँ; किन्तु प्रश्न पूछे जाने पर मुझे उसका उत्तर नहीं सूझता।" — प्राकृतिक विज्ञान के प्रश्न के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता (उदाहरणार्थ, "हाइड्रोजन का आपेक्षिक गुरुत्त्व क्या है?")। किसी ऐसी बात को हमें ''स्मरण रखने की'' आवश्यकता है जिसे हम तब तो जानते हैं जब हमसे उसके बारे में कोई नहीं पूछता; किन्तु जब हमसे उसके विवरण की अपेक्षा की जाती है तब हम उसे नहीं जानते। (और स्पष्टतः यह कोई ऐसी बात है जिसको किसी कारणवश याद रखना कठिन है।)


'''90.''' ऐसा प्रतीत होता है मानो हमें संवृत्तियों को ''भेदना'' पड़ेगा&nbsp;: बहरहाल हमारे अन्वेषण की दिशा तो संवृत्ति की ओर न होकर, यूँ कहिये कि संवृत्ति की '''संभावनाओं''<nowiki/>' की ओर है। अतः हम स्वयं संवृत्ति के बारे में अपने ''वक्तव्य के प्रकार'' का स्मरण करते हैं। अतः ऑगस्टीन घटनाओं की अवधि, उनके भूत, वर्तमान अथवा भविष्य के बारे में दिए गए विभिन्न वक्तव्यों का स्मरण करते हैं। (बेशक ये वक्तव्य भूत, वर्तमान एवं भविष्य काल के बारे में ''दार्शनिक'' वक्तव्य नहीं हैं।)
'''90.''' ऐसा प्रतीत होता है मानो हमें संवृत्तियों को ''भेदना'' पड़ेगा&nbsp;: बहरहाल हमारे अन्वेषण की दिशा तो संवृत्ति की ओर न होकर, यूँ कहिये कि संवृत्ति की <nowiki>'</nowiki>''संभावनाओं''<nowiki>'</nowiki> की ओर है। अतः हम स्वयं संवृत्ति के बारे में अपने ''वक्तव्य के प्रकार'' का स्मरण करते हैं। अतः ऑगस्टीन घटनाओं की अवधि, उनके भूत, वर्तमान अथवा भविष्य के बारे में दिए गए विभिन्न वक्तव्यों का स्मरण करते हैं। (बेशक ये वक्तव्य भूत, वर्तमान एवं भविष्य काल के बारे में ''दार्शनिक'' वक्तव्य नहीं हैं।)


अतः हमारा अन्वेषण तो व्याकरणपरक है। ऐसा अन्वेषण भ्रम को दूर कर हमारी समस्या पर प्रकाश डालता है। शब्द प्रयोग संबंधी भ्रम अन्य कारणों के साथ-साथ विभिन्न भाषा क्षेत्रों की अभिव्यक्ति-प्रकारों में पाई जाने वाली विशिष्ट समानताओं के कारण होते हैं। — उनमें से कुछ भ्रम तो किसी अभिव्यक्ति के एक प्रकार को दूसरे प्रकार से प्रतिस्थापित कर दूर किए जा सकते हैं; इसे हम अभिव्यक्ति-प्रकार का "विश्लेषण" कह सकते हैं क्योंकि यह प्रक्रिया किसी वस्तु को विच्छिन्न करने के समान है।
अतः हमारा अन्वेषण तो व्याकरणपरक है। ऐसा अन्वेषण भ्रम को दूर कर हमारी समस्या पर प्रकाश डालता है। शब्द प्रयोग संबंधी भ्रम अन्य कारणों के साथ-साथ विभिन्न भाषा क्षेत्रों की अभिव्यक्ति-प्रकारों में पाई जाने वाली विशिष्ट समानताओं के कारण होते हैं। — उनमें से कुछ भ्रम तो किसी अभिव्यक्ति के एक प्रकार को दूसरे प्रकार से प्रतिस्थापित कर दूर किए जा सकते हैं; इसे हम अभिव्यक्ति-प्रकार का "विश्लेषण" कह सकते हैं क्योंकि यह प्रक्रिया किसी वस्तु को विच्छिन्न करने के समान है।