फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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'''70.''' “किन्तु यदि 'खेल' प्रत्यय का इस प्रकार सीमांकन नहीं हुआ है तो आप वास्तव में नहीं जानते कि आपका 'खेल' से क्या तात्पर्य है।” लेकिन जब मैं यह विवरण देता हूँ: “मैदान पौधों से आच्छादित था” — तो क्या आप कहना चाहेंगे कि जब तक मैं पौधों की परिभाषा नहीं दूँ तब तक मैं नहीं जानता कि मैं क्या कह रहा हूँ?
'''70.''' “किन्तु यदि 'खेल' प्रत्यय का इस प्रकार सीमांकन नहीं हुआ है तो आप वास्तव में नहीं जानते कि आपका 'खेल' से क्या तात्पर्य है।” लेकिन जब मैं यह विवरण देता हूँ: “मैदान पौधों से आच्छादित था” — तो क्या आप कहना चाहेंगे कि जब तक मैं पौधों की परिभाषा नहीं दूँ तब तक मैं नहीं जानता कि मैं क्या कह रहा हूँ?


यूँ कहिये कि मेरे अर्थ की व्याख्या, किसी चित्र या “मैदान लगभग ऐसा प्रतीत हो रहा था“ शब्दों द्वारा की जा सकती है। मैं कह सकता हूँ ”वह ''यथार्थत'': ऐसा ही प्रतीत होता था।" — तो क्या वहाँ इस घास और इन पत्तियों का बिल्कुल इसी प्रकार विन्यास किया गया था? नहीं, इसका यह अर्थ नहीं है। और मुझे ''इस'' अर्थ में किसी भी चित्र को यथार्थ के रूप में स्वीकारना नहीं चाहिए।
यूँ कहिये कि मेरे अर्थ की व्याख्या, किसी चित्र या “मैदान लगभग ऐसा प्रतीत हो रहा था” शब्दों द्वारा की जा सकती है। मैं कह सकता हूँ “वह ''यथार्थत'': ऐसा ही प्रतीत होता था।” — तो क्या वहाँ इस घास और इन पत्तियों का बिल्कुल इसी प्रकार विन्यास किया गया था? नहीं, इसका यह अर्थ नहीं है। और मुझे ''इस'' अर्थ में किसी भी चित्र को यथार्थ के रूप में स्वीकारना नहीं चाहिए।


{{PU box|कोई मुझे कहता है: “बच्चों को कोई खेल खिलाओ।” मैं उन्हें पाँसे से खेला जाने वाला कोई खेल खिलाता हूँ, और दूसरा व्यक्ति कहता है “मेरा आशय उस प्रकार के खेल से नहीं था।" खेल खिलाने का आदेश देते समय क्या उसके मन में पाँसे से खेले जाने वाले खेल थे या नहीं?}}
{{PU box|कोई मुझे कहता है: “बच्चों को कोई खेल खिलाओ।” मैं उन्हें पाँसे से खेला जाने वाला कोई खेल खिलाता हूँ, और दूसरा व्यक्ति कहता है “मेरा आशय उस प्रकार के खेल से नहीं था।" खेल खिलाने का आदेश देते समय क्या उसके मन में पाँसे से खेले जाने वाले खेल थे या नहीं?}}
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अथवा: कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता जिसमें बाइबल में मोसिस के बारे में वर्णित गुण हो — अथवा: इसी प्रकार का कोई अन्य अर्थ। — हम रॅसेल का अनुगमन करते हुए कह सकते हैं: “मोसिस” नाम को विभिन्न विवरणों द्वारा परिभाषित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, “वह पुरुष जिसने यहूदियों का बियावान में नेतृत्व किया”, “वह पुरुष जो अमुक समय और अमुक स्थान पर रहता था, और 'मोसिस' कहलाता था”, “वह पुरुष जिसे शैशवास्था में फ़ारोह की पुत्री ने नील नदी से निकाला था” इत्यादि। और हम जिस किसी भी परिभाषा को मानेंगे उसके आधार पर “मोसिस था ही नहीं” प्रतिज्ञप्ति का, और मोसिस के बारे में सभी प्रतिज्ञप्तियों के विभिन्न अर्थ होंगे। — और हम यह बताए जाने पर कि “'''न''' की सत्ता नहीं थी” यह तो नहीं पूछते: “आपका क्या अर्थ है? क्या आप कहना चाहते हैं कि..... अथवा..... इत्यादि?”
अथवा: कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता जिसमें बाइबल में मोसिस के बारे में वर्णित गुण हो — अथवा: इसी प्रकार का कोई अन्य अर्थ। — हम रॅसेल का अनुगमन करते हुए कह सकते हैं: “मोसिस” नाम को विभिन्न विवरणों द्वारा परिभाषित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, “वह पुरुष जिसने यहूदियों का बियावान में नेतृत्व किया”, “वह पुरुष जो अमुक समय और अमुक स्थान पर रहता था, और 'मोसिस' कहलाता था”, “वह पुरुष जिसे शैशवास्था में फ़ारोह की पुत्री ने नील नदी से निकाला था” इत्यादि। और हम जिस किसी भी परिभाषा को मानेंगे उसके आधार पर “मोसिस था ही नहीं” प्रतिज्ञप्ति का, और मोसिस के बारे में सभी प्रतिज्ञप्तियों के विभिन्न अर्थ होंगे। — और हम यह बताए जाने पर कि “'''न''' की सत्ता नहीं थी” यह तो नहीं पूछते: “आपका क्या अर्थ है? क्या आप कहना चाहते हैं कि..... अथवा..... इत्यादि?”


किन्तु जब मैं मोसिस के बारे में कोई वक्तव्य देता हूँ तो — क्या मैं सदैव इन विवरणों में से किसी ''एक'' को “मोसिस ” के स्थान पर प्रतिस्थापित करने को तत्पर रहता हूँ? संभवत: मैं कहूँ: “मोसिस ” शब्द से मैं उस पुरुष को समझता हूँ जिसने वे सब कार्य किए, या फिर उनमें से बहुत से कार्य किए जिनका विवरण बाईबल में दिया गया है। किन्तु कितने? क्या मैं निश्चय कर चुका हूँ कि मुझे अपनी प्रतिज्ञप्ति असत्य मानने के लिए कितना कुछ असत्य सिद्ध करना होगा? क्या मेरे लिए “मोसिस” नाम की प्रत्येक संभावना की निश्चित एवं असंदिग्ध उपयोगिता है? — क्या ऐसा नहीं है कि मेरे पास, मानो कि, अनुकूल आलंबनों की एक पूर्ण श्रृंखला है और यदि कोई अन्य आलंबन मेरे नीचे से खिसका दिया जाए तो मैं किसी एक आलंबन का सहारा लेने को तत्पर हूँ और उससे भिन्न (आलंबन) का भी? — एक अन्य स्थिति पर विचार कीजिए। जब मैं कहता हूँ “'''न''' की मृत्यु हो गयी है”, तो '''न''' नाम के अर्थ के लिए कुछ ऐसा समझना होगा: मेरा विश्वास है कि वह व्यक्ति जीवित था जिसे मैंने (1) अमुक-अमुक स्थानों पर देखा है, (2) जो देखने में इस (चित्र) के समान दिखता था, (3) जिसने अमुक-अमुक कार्य किए हैं, और (4) जिसका सामाजिक जीवन में “'''न'''” नाम था। — यह पूछे जाने पर कि “'''न'''” से मैं क्या समझता हूँ, मुझे इन सबका या इनमें से कुछ का ब्यौरा देना होगा, और भिन्न अवसरों पर भिन्न बातों का विवरण देना होगा। अतः “'''न'''” की मेरी परिभाषा संभवतः “वह पुरुष जिसके बारे में यह सब सत्य हो” होगी। — किन्तु इनमें से कोई बात यदि अब असत्य हो तो? — क्या मैं “'''न''' की मृत्यु हो गई है” प्रतिज्ञप्ति को असत्य घोषित करने को तत्पर हूँगा — तब भी जब मुझे असत्य होने वाली बात आनुषंगिक प्रतीत हो? किन्तु आनुषंगिकता की सीमाएं कहाँ हैं? — यदि मैंने ऐसी स्थिति में नाम की परिभाषा दी है तो अब मुझे उसे परिवर्तित करने को तत्पर रहना चाहिए।
किन्तु जब मैं मोसिस के बारे में कोई वक्तव्य देता हूँ तो — क्या मैं सदैव इन विवरणों में से किसी ''एक'' को “मोसिस” के स्थान पर प्रतिस्थापित करने को तत्पर रहता हूँ? संभवत: मैं कहूँ: “मोसिस” शब्द से मैं उस पुरुष को समझता हूँ जिसने वे सब कार्य किए, या फिर उनमें से बहुत से कार्य किए जिनका विवरण बाईबल में दिया गया है। किन्तु कितने? क्या मैं निश्चय कर चुका हूँ कि मुझे अपनी प्रतिज्ञप्ति असत्य मानने के लिए कितना कुछ असत्य सिद्ध करना होगा? क्या मेरे लिए “मोसिस” नाम की प्रत्येक संभावना की निश्चित एवं असंदिग्ध उपयोगिता है? — क्या ऐसा नहीं है कि मेरे पास, मानो कि, अनुकूल आलंबनों की एक पूर्ण श्रृंखला है और यदि कोई अन्य आलंबन मेरे नीचे से खिसका दिया जाए तो मैं किसी एक आलंबन का सहारा लेने को तत्पर हूँ और उससे भिन्न (आलंबन) का भी? — एक अन्य स्थिति पर विचार कीजिए। जब मैं कहता हूँ “'''न''' की मृत्यु हो गयी है”, तो '''न''' नाम के अर्थ के लिए कुछ ऐसा समझना होगा: मेरा विश्वास है कि वह व्यक्ति जीवित था जिसे मैंने (1) अमुक-अमुक स्थानों पर देखा है, (2) जो देखने में इस (चित्र) के समान दिखता था, (3) जिसने अमुक-अमुक कार्य किए हैं, और (4) जिसका सामाजिक जीवन में “'''न'''” नाम था। — यह पूछे जाने पर कि “'''न'''” से मैं क्या समझता हूँ, मुझे इन सबका या इनमें से कुछ का ब्यौरा देना होगा, और भिन्न अवसरों पर भिन्न बातों का विवरण देना होगा। अतः “'''न'''” की मेरी परिभाषा संभवतः “वह पुरुष जिसके बारे में यह सब सत्य हो” होगी। — किन्तु इनमें से कोई बात यदि अब असत्य हो तो? — क्या मैं “'''न''' की मृत्यु हो गई है” प्रतिज्ञप्ति को असत्य घोषित करने को तत्पर हूँगा — तब भी जब मुझे असत्य होने वाली बात आनुषंगिक प्रतीत हो? किन्तु आनुषंगिकता की सीमाएं कहाँ हैं? — यदि मैंने ऐसी स्थिति में नाम की परिभाषा दी है तो अब मुझे उसे परिवर्तित करने को तत्पर रहना चाहिए।


और इसे इस प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है: मैं “'''न'''” नाम का प्रयोग, बिना किसी ''निश्चित'' अर्थ के करता हूँ। (किन्तु इससे उसकी उपयोगिता उतनी सी ही कम होती है जितनी कि चार पैरों में से तीन पैरों पर खड़ी ऐसी मेज की जो कभी-कभी दोलायमान हो जाती है।)
और इसे इस प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है: मैं “'''न'''” नाम का प्रयोग, बिना किसी ''निश्चित'' अर्थ के करता हूँ। (किन्तु इससे उसकी उपयोगिता उतनी सी ही कम होती है जितनी कि चार पैरों में से तीन पैरों पर खड़ी ऐसी मेज की जो कभी-कभी दोलायमान हो जाती है।)
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'''88.''' यदि मैं किसी से कहूँ “इस स्थान के आसपास खड़े रहना” — क्या यह व्याख्या संपूर्ण रूप से सार्थक नहीं होगी? और, क्या, कोई अन्य व्याख्या निरर्थक नहीं हो सकती?
'''88.''' यदि मैं किसी से कहूँ “इस स्थान के आसपास खड़े रहना” — क्या यह व्याख्या संपूर्ण रूप से सार्थक नहीं होगी? और, क्या, कोई अन्य व्याख्या निरर्थक नहीं हो सकती?


किन्तु क्या यह अयथार्थ व्याख्या नहीं है? — हाँ; हम इसे “अयथार्थ” क्यों न कहें? आइए हम “अयथार्थ ” के अर्थ को ही समझें। क्योंकि इसका अर्थ “अनुपयोगी” तो नहीं है। और आइए इसकी तुलना हम उससे करें जिसे हम “यथार्थ” कहते हैं: संभवत: किसी क्षेत्र के चारों ओर खड़िया से एक रेखा खींचने जैसा। यहाँ हमें तुरन्त यह प्रतीत होता है कि रेखा की तो चौड़ाई भी होती है। अतः रंग का किनारा अधिक यथार्थ होगा। किन्तु इस यथार्थता का क्या यहाँ अभी भी कोई अर्थ है; क्या इंजन निष्प्रयोजन नहीं चल रहा? और यह भी ध्यान रहे कि हमने अभी तक इस यथार्थ सीमा के उल्लंघन की भी परिभाषा नहीं दी है; यह उल्लंघन कैसे और किन उपकरणों से सिद्ध किया जाएगा? और ऐसे ही अन्य प्रश्न यहाँ उठते हैं।
किन्तु क्या यह अयथार्थ व्याख्या नहीं है? — हाँ; हम इसे “अयथार्थ” क्यों न कहें? आइए हम “अयथार्थ” के अर्थ को ही समझें। क्योंकि इसका अर्थ “अनुपयोगी” तो नहीं है। और आइए इसकी तुलना हम उससे करें जिसे हम “यथार्थ” कहते हैं: संभवत: किसी क्षेत्र के चारों ओर खड़िया से एक रेखा खींचने जैसा। यहाँ हमें तुरन्त यह प्रतीत होता है कि रेखा की तो चौड़ाई भी होती है। अतः रंग का किनारा अधिक यथार्थ होगा। किन्तु इस यथार्थता का क्या यहाँ अभी भी कोई अर्थ है; क्या इंजन निष्प्रयोजन नहीं चल रहा? और यह भी ध्यान रहे कि हमने अभी तक इस यथार्थ सीमा के उल्लंघन की भी परिभाषा नहीं दी है; यह उल्लंघन कैसे और किन उपकरणों से सिद्ध किया जाएगा? और ऐसे ही अन्य प्रश्न यहाँ उठते हैं।


हम जानते हैं कि जेब-घड़ी के सन्दर्भ में यथार्थ समय मिलाने का, अथवा उसे यथार्थ समय दिखाने के लिए नियंत्रित करने का क्या अर्थ होता है। किन्तु क्या होगा, यदि पूछा जाए: क्या यह यथार्थता आदर्श यथार्थता है, अथवा यह आदर्श के कितने समीप है? — बेशक, हम समय-मापन के अन्य प्रकारों का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिनमें जेब-घड़ी के समय-मापन से भिन्न यथार्थता, यानी उससे अधिक यथार्थता, होती है: उनमें “घड़ी को यथार्थ समय से मिलाना” शब्दों की क्रिया इत्यादि भी भिन्न होती है। — अब यदि मैं किसी को कहूँ: “आपको रात्रिभोज पर ठीक समय पर आना चाहिए; आप को पता है कि भोज ठीक एक बजे आरम्भ होता है” — वास्तव में यहाँ पर ''यथार्थता'' का क्या कोई प्रश्न ही नहीं होता? यह कहना तो संभव है: “प्रयोगशाला अथवा वेधशाला में समय-निर्धारण के बारे में विचार कीजिए; ''इससे'' आप को 'यथार्थता' के अर्थ का पता चलेगा”?
हम जानते हैं कि जेब-घड़ी के सन्दर्भ में यथार्थ समय मिलाने का, अथवा उसे यथार्थ समय दिखाने के लिए नियंत्रित करने का क्या अर्थ होता है। किन्तु क्या होगा, यदि पूछा जाए: क्या यह यथार्थता आदर्श यथार्थता है, अथवा यह आदर्श के कितने समीप है? — बेशक, हम समय-मापन के अन्य प्रकारों का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिनमें जेब-घड़ी के समय-मापन से भिन्न यथार्थता, यानी उससे अधिक यथार्थता, होती है: उनमें “घड़ी को यथार्थ समय से मिलाना” शब्दों की क्रिया इत्यादि भी भिन्न होती है। — अब यदि मैं किसी को कहूँ: “आपको रात्रिभोज पर ठीक समय पर आना चाहिए; आप को पता है कि भोज ठीक एक बजे आरम्भ होता है” — वास्तव में यहाँ पर ''यथार्थता'' का क्या कोई प्रश्न ही नहीं होता? यह कहना तो संभव है: “प्रयोगशाला अथवा वेधशाला में समय-निर्धारण के बारे में विचार कीजिए; ''इससे'' आप को 'यथार्थता' के अर्थ का पता चलेगा”?
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{{ParPU|115}} ''चित्र'' ने हमें बाँध लिया है। और हम उससे बाहर नहीं निकल सकते क्योंकि वह हमारी भाषा में ही था और हमें ऐसा लगता है कि भाषा इसे निरपवाद रूप से दोहराती रहती है।
{{ParPU|115}} ''चित्र'' ने हमें बाँध लिया है। और हम उससे बाहर नहीं निकल सकते क्योंकि वह हमारी भाषा में ही था और हमें ऐसा लगता है कि भाषा इसे निरपवाद रूप से दोहराती रहती है।


{{ParPU|116}} जब दार्शनिक — “ज्ञान”, “सत्ता”, “वस्तु”, “मैं”, “प्रतिज्ञप्ति”, ”नाम" जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं — और पदार्थ के ''सार'' को ढूँढ़ने का प्रयत्न करते हैं तो हमें प्रश्न करना चाहिए : इस शब्द के मौलिक निवास-स्थान, भाषा-खेल में क्या कभी इसे इस ढंग से प्रयोग किया जाता है? —
{{ParPU|116}} जब दार्शनिक — “ज्ञान”, “सत्ता”, “वस्तु”, “मैं”, “प्रतिज्ञप्ति”, “नाम” जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं — और पदार्थ के ''सार'' को ढूँढ़ने का प्रयत्न करते हैं तो हमें प्रश्न करना चाहिए : इस शब्द के मौलिक निवास-स्थान, भाषा-खेल में क्या कभी इसे इस ढंग से प्रयोग किया जाता है? —


इससे ''हम'' शब्दों को उनके परा-भौतिक प्रयोग से वापिस दैनन्दिन प्रयोग में लौटा लाते हैं।
इससे ''हम'' शब्दों को उनके परा-भौतिक प्रयोग से वापिस दैनन्दिन प्रयोग में लौटा लाते हैं।
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अपने नियमों में इस उलझाव को ही हम समझना (अतः उसे स्पष्टतः देखना) चाहते हैं।
अपने नियमों में इस उलझाव को ही हम समझना (अतः उसे स्पष्टतः देखना) चाहते हैं।


यह हमारे किसी ''अर्थ'' होने के प्रत्यय पर प्रकाश डालता है। क्योंकि तब स्थितियां हमारे पूर्वाभास से उलट निकलती हैं। उदाहरणार्थ, जब भी कोई व्याघात प्रकट होता है हम यही कहते हैं: “मेरा वह अर्थ तो नहीं था। ”
यह हमारे किसी ''अर्थ'' होने के प्रत्यय पर प्रकाश डालता है। क्योंकि तब स्थितियां हमारे पूर्वाभास से उलट निकलती हैं। उदाहरणार्थ, जब भी कोई व्याघात प्रकट होता है हम यही कहते हैं: “मेरा वह अर्थ तो नहीं था।”


व्याघात की शिष्ट स्थिति अथवा शिष्ट जनों में उसकी स्थिति : यही तो दार्शनिक समस्या है।
व्याघात की शिष्ट स्थिति अथवा शिष्ट जनों में उसकी स्थिति : यही तो दार्शनिक समस्या है।
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{{ParPU|175}} कागज के टुकड़े पर कोई यादृच्छिक डिज़ाइन बनाएं। — और अब उसके पास ही उसकी प्रतिकृति बनाएं ऐसा करते समय आप अपने आपको उससे नियंत्रित होने दें। — मैं कहना चाहूँगा : “निश्चय ही, मैं यहाँ नियंत्रित था। किन्तु जहाँ तक घटित — यदि मैं उसे घटित होना कहूँ तो — में वैशिष्ट्य का प्रश्न है, वह अब मुझे विशिष्ट नहीं लगता।”
{{ParPU|175}} कागज के टुकड़े पर कोई यादृच्छिक डिज़ाइन बनाएं। — और अब उसके पास ही उसकी प्रतिकृति बनाएं ऐसा करते समय आप अपने आपको उससे नियंत्रित होने दें। — मैं कहना चाहूँगा : “निश्चय ही, मैं यहाँ नियंत्रित था। किन्तु जहाँ तक घटित — यदि मैं उसे घटित होना कहूँ तो — में वैशिष्ट्य का प्रश्न है, वह अब मुझे विशिष्ट नहीं लगता।”


किन्तु अब इस पर ध्यान दें : ''जब तक'' मैं नियंत्रित होता हूँ तब तक सब कुछ बिल्कुल सामान्य रहता है, कुछ भी ''विशेष'' नहीं लगता; किन्तु बाद में जब मैं अपने आप से पूछता हूँ कि क्या हुआ था, तो वह मुझे अनिर्वचनीय प्रतीत होता है। ''बाद'' में कोई भी विवरण मुझे संतुष्ट नहीं करता। मानो मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने मात्र अवलोकन किया था, अमुक मुखाकृति बनाई थी, और अमुक रेखा खींची थी। — किन्तु क्या मुझे कुछ और ''स्मरण'' नहीं है? नहीं; और फिर भी मुझे प्रतीत होता है कि कुछ और अवश्य होना चाहिए; विशेषत : तब जब मैं स्वयं “''नियंत्रित'' होने”, “ ''प्रभावित'' होने” और अन्य ऐसे शब्दों का उल्लेख करता हूँ। “क्योंकि निश्चय ही” मैं अपने आप से कहता हूँ “मैं ''नियंत्रित'' था।” — केवल तभी उस सूक्ष्म, अमूर्त प्रभाव का विचार उठता है।
किन्तु अब इस पर ध्यान दें : ''जब तक'' मैं नियंत्रित होता हूँ तब तक सब कुछ बिल्कुल सामान्य रहता है, कुछ भी ''विशेष'' नहीं लगता; किन्तु बाद में जब मैं अपने आप से पूछता हूँ कि क्या हुआ था, तो वह मुझे अनिर्वचनीय प्रतीत होता है। ''बाद'' में कोई भी विवरण मुझे संतुष्ट नहीं करता। मानो मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने मात्र अवलोकन किया था, अमुक मुखाकृति बनाई थी, और अमुक रेखा खींची थी। — किन्तु क्या मुझे कुछ और ''स्मरण'' नहीं है? नहीं; और फिर भी मुझे प्रतीत होता है कि कुछ और अवश्य होना चाहिए; विशेषत : तब जब मैं स्वयं “''नियंत्रित'' होने”, “''प्रभावित'' होने” और अन्य ऐसे शब्दों का उल्लेख करता हूँ। “क्योंकि निश्चय ही” मैं अपने आप से कहता हूँ “मैं ''नियंत्रित'' था।” — केवल तभी उस सूक्ष्म, अमूर्त प्रभाव का विचार उठता है।


{{ParPU|176}} जब मैं अपने अनुभव का सिंहावलोकन करता हूँ तो मुझे प्रतीत होता है। कि इसके बारे में अनिवार्य बात तो यह है कि यह संवृत्तियों की समकालीनता का नहीं, अपितु उनके संबंधों से 'प्रभावित होने का अनुभव' है। किन्तु इसके साथ ही मैं किसी भी अनुभव की हुई संवृत्ति को “प्रभावित होने का अनुभव” नहीं कहना चाहूँगा। (इच्छा करना ''संवृत्ति'' तो नहीं होता, इस विचार का इसमें बीजाणु है।) मैं कहना चाहूँगा कि मुझे ‘''क्योंकि''’ का अनुभव हुआ पर फिर भी मैं किसी भी संवृत्ति को “क्योंकि का अनुभव” नहीं कहना चाहता।
{{ParPU|176}} जब मैं अपने अनुभव का सिंहावलोकन करता हूँ तो मुझे प्रतीत होता है। कि इसके बारे में अनिवार्य बात तो यह है कि यह संवृत्तियों की समकालीनता का नहीं, अपितु उनके संबंधों से 'प्रभावित होने का अनुभव' है। किन्तु इसके साथ ही मैं किसी भी अनुभव की हुई संवृत्ति को “प्रभावित होने का अनुभव” नहीं कहना चाहूँगा। (इच्छा करना ''संवृत्ति'' तो नहीं होता, इस विचार का इसमें बीजाणु है।) मैं कहना चाहूँगा कि मुझे ‘''क्योंकि''’ का अनुभव हुआ पर फिर भी मैं किसी भी संवृत्ति को “क्योंकि का अनुभव” नहीं कहना चाहता।