फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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{{PU box|द ''कैमिकल हिस्ट्री ऑफ ए कैंडल'' में फैराडे ने लिखा : “जल एक ऐसी वस्तु है जो कभी भी परिवर्तित नहीं होती।”}}
{{PU box|द ''कैमिकल हिस्ट्री ऑफ ए कैंडल'' में फैराडे ने लिखा : “जल एक ऐसी वस्तु है जो कभी भी परिवर्तित नहीं होती।”}}


न्यूनाधिक सम्बद्ध संरचनाओं का परिवार है। — किन्तु अब तर्कशास्त्र का क्या होगा? इसकी दृढ़ता तो यहाँ कमजोर पड़ गई प्रतीत होती है। — किन्तु क्या उस परिस्थिति में तर्कशास्त्र पूर्णतः लुप्त नहीं हो जाएगा? — क्योंकि वह अपनी दृढ़ता कैसे खो सकता है ? बेशक अपनी दृढ़ता की कीमत पर तो नहीं — स्फुटिक शुद्धता के ''पूर्वकल्पित विचार'' को तो अपने सम्पूर्ण परीक्षण को पूरी तरह उलट कर ही दूर किया जा सकता है। (कहा जा सकता है: अपने परीक्षण के संदर्भ की धुरी को तो हमें घुमाना ही चाहिए, किन्तु अपनी वास्तविक आवश्यकता के केन्द्रबिन्दु के इर्द-गिर्द ही।)
न्यूनाधिक सम्बद्ध संरचनाओं का परिवार है। — किन्तु अब तर्कशास्त्र का क्या होगा? इसकी दृढ़ता तो यहाँ कमजोर पड़ गई प्रतीत होती है। — किन्तु क्या उस परिस्थिति में तर्कशास्त्र पूर्णतः लुप्त नहीं हो जाएगा? — क्योंकि वह अपनी दृढ़ता कैसे खो सकता है ? बेशक अपनी दृढ़ता की कीमत पर तो नहीं — स्फुटिक शुद्धता के ''पूर्वकल्पित विचार'' को तो अपने सम्पूर्ण परीक्षण को पूरी तरह उलट कर ही दूर किया जा सकता है। (कहा जा सकता है: अपने परीक्षण के संदर्भ की धुरी को तो हमें घुमाना ही चाहिए, किन्तु अपनी वास्तविक आवश्यकता के केन्द्रबिन्दु के इर्द-गिर्द ही।)


वाक्यों और शब्दों के बारे में तर्कशास्त्र का दर्शन बिल्कुल उसी अर्थ में उल्लेख करता है जिसमें हम अपने दैनिक जीवन में उनका उल्लेख करते हैं, उदाहरणार्थ, जब हम कहते हैं, “यह एक चीनी वाक्य है” अथवा “नहीं वह तो लिपि प्रतीत भर होती है; वास्तव में तो वह अलंकृति है”।
वाक्यों और शब्दों के बारे में तर्कशास्त्र का दर्शन बिल्कुल उसी अर्थ में उल्लेख करता है जिसमें हम अपने दैनिक जीवन में उनका उल्लेख करते हैं, उदाहरणार्थ, जब हम कहते हैं, “यह एक चीनी वाक्य है” अथवा “नहीं वह तो लिपि प्रतीत भर होती है; वास्तव में तो वह अलंकृति है”।
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{{ParPU|145}} मान लीजिए अब शिष्य द्वारा 0 से 9 तक अंक-श्रृंखला लिखने से हम संतुष्ट हैं। — और यह संतुष्टि उसके बहुधा सफल होने पर ही होगी न कि उसके सौ बार में से एक बार ठीक होने पर। अब मैं श्रृंखला को आगे बढ़ाता हूँ और इकाई की प्रथम श्रृंखला में पुनरावृत्ति की ओर उसका ध्यान आकर्षित करता हूँ, और फिर दहाई की पुनरावृत्ति की ओर। (इसका अर्थ मात्र यह है कि मैं एक विशिष्ट बलाघात का प्रयोग करता हूँ, अंकों को रेखांकित करता उनको अमुक-अमुक ढंग से एक के बाद दूसरा अंक लिखता हूँ, और इस समान ही कुछ और करता हूँ।) — और अब कुछ समय बाद वह श्रृंखला को स्वाधीनतापूर्वक आगे बढ़ाता है — अथवा नहीं बढ़ाता। — किन्तु आप ऐसा क्यों कहते हैं? ''इतना'' तो स्पष्ट ही है! — बेशक; मैं तो यही कहना चाहता था : किसी भी आगामी ''व्याख्या'' का परिणाम तो शिक्षार्थी की ''प्रतिक्रिया'' पर निर्भर करता है।
{{ParPU|145}} मान लीजिए अब शिष्य द्वारा 0 से 9 तक अंक-श्रृंखला लिखने से हम संतुष्ट हैं। — और यह संतुष्टि उसके बहुधा सफल होने पर ही होगी न कि उसके सौ बार में से एक बार ठीक होने पर। अब मैं श्रृंखला को आगे बढ़ाता हूँ और इकाई की प्रथम श्रृंखला में पुनरावृत्ति की ओर उसका ध्यान आकर्षित करता हूँ, और फिर दहाई की पुनरावृत्ति की ओर। (इसका अर्थ मात्र यह है कि मैं एक विशिष्ट बलाघात का प्रयोग करता हूँ, अंकों को रेखांकित करता उनको अमुक-अमुक ढंग से एक के बाद दूसरा अंक लिखता हूँ, और इस समान ही कुछ और करता हूँ।) — और अब कुछ समय बाद वह श्रृंखला को स्वाधीनतापूर्वक आगे बढ़ाता है — अथवा नहीं बढ़ाता। — किन्तु आप ऐसा क्यों कहते हैं? ''इतना'' तो स्पष्ट ही है! — बेशक; मैं तो यही कहना चाहता था : किसी भी आगामी ''व्याख्या'' का परिणाम तो शिक्षार्थी की ''प्रतिक्रिया'' पर निर्भर करता है।


बहरहाल, अब हम मान लेते हैं कि अध्यापक के थोड़े प्रयत्नों के बाद वह श्रृंखला को ठीक ढंग से आगे बढ़ाता है, ठीक वैसे ही जैसे हम उसे आगे बढ़ाते हैं। तो अब हम कह सकते हैं कि उसने प्रणाली में निपुणता प्राप्त कर ली है। — किन्तु उसे श्रृंखला
बहरहाल, अब हम मान लेते हैं कि अध्यापक के थोड़े प्रयत्नों के बाद वह श्रृंखला को ठीक ढंग से आगे बढ़ाता है, ठीक वैसे ही जैसे हम उसे आगे बढ़ाते हैं। तो अब हम कह सकते हैं कि उसने प्रणाली में निपुणता प्राप्त कर ली है। — किन्तु उसे श्रृंखला


को कहाँ तक बढ़ाना पड़ेगा ताकि हम ऐसा कह सकें? स्पष्ट है कि यहाँ आप कोई सीमा तय नहीं कर सकते।
को कहाँ तक बढ़ाना पड़ेगा ताकि हम ऐसा कह सकें? स्पष्ट है कि यहाँ आप कोई सीमा तय नहीं कर सकते।