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640. या फिर क्या मैं यह कहूँ: यह वाक्य ''एक प्रकार'' की चूक को नकार देता है। | 640. या फिर क्या मैं यह कहूँ: यह वाक्य ''एक प्रकार'' की चूक को नकार देता है। | ||
641. "उसने आज ही मुझे इस बारे में बताया है – मैं इस बारे में भूल कर ही नहीं सकता।" – किन्तु इसके गलत निकलने पर क्या होगा?! – किसी बात के 'गलत निकलने' के ढंगों में क्या हमें भेद नहीं करना होगा? – अपने कथन की भूल को कैसे ''प्रदर्शित'' किया जा ''सकता'' है? यहाँ प्रमाण के सामने प्रमाण है, और यह ''निर्णय लेना होगा'' कि कौनसा प्रमाण रहे और कौनसा न रहे। | |||
642. पर मान लो कोई झिझकते हुए कहे: क्या होगा यदि मैं अचानक जागूँ और कहूँ कि "जरा रुकिए, मैं कल्पना कर रहा था कि मुझे लु. वि. कहते हैं!" – बेशक, किन्तु कौन जानता है कि मैं पुनः न जागूँ और इसे विचित्र कल्पना न कहूँ, इत्यादि, इत्यादि? | |||
643. हम ऐसी स्थिति की कल्पना तो कर ही सकते हैं – और ऐसी स्थितियाँ होती भी हैं – जिनमें 'जागने' के बाद कोई संदेह ही नहीं रहे कि कौनसी कल्पना थी और कौनसी वास्तविकता। किन्तु, ऐसी स्थिति या उसकी संभावना से "मैं भूल कर ही नहीं सकता" प्रतिज्ञप्ति की साख कम नहीं हो जाती। | |||
644. अन्यथा, क्या सभी कथनों की साख इस प्रकार कम नहीं हो जाएगी? | |||
645. मैं भूल कर ही नहीं सकता, – किन्तु, सही या गलत, क्या यह नहीं हो सकता कि कभी मैं सोचूँ कि मैं निर्णय करने के योग्य ही नहीं था। | |||
646. यदि सर्वदा, या बहुधा ऐसा हो तो भाषा-खेल का स्वरूप ही पूरी तरह बदल जाएगा। | |||
647. भाषा-खेल में स्वीकृत भूल और अपवाद स्वरूप होने वाली पूर्ण-अनियमितता में भेद होता है। | |||
648. किसी अन्य व्यक्ति को मैं भरोसा दिला सकता हूँ कि मैं 'भूल कर ही नहीं सकता'। | |||
मैं किसी को कहता हूँ कि "अमुक व्यक्ति सुबह मेरे साथ था और उसने मुझे अमुक बात बताई"। यदि यह चकित करने वाली बात हो तो वह मुझसे पूछ सकता है: "आप इस बारे में भूल कर ही नही सकते?" उसका आशय हो सकता है: "क्या यह वास्तव में ''आज सुबह'' ही घटित हुआ?" या फिर : " क्या आपको उसे ठीक-ठीक समझने का भरोसा है?" समय और कथन सम्बन्धी अपनी निर्दोषता को प्रदर्शित करने के लिए मुझे जिन बातों का विवरण देना होगा वे तो सर्वविदित है । उन सब विवरणों से यह तो पता ''नहीं'' चलता कि मैंने पूरे प्रकरण को सपने में देखा हैं, या फिर उसकी केवल कल्पना की है। न ही उनसे यह पता चलता है कि आद्योपांत मेरी ''ज़बान फिसलती'' रही है। (ऐसा भी होता है।) | |||
649. (एक बार मैंने किसी को – अंग्रेजी भाषा में – कहा कि यह टहनी एल्म (चिराबेल का अंग्रेजी नाम) की टहनी की आकृति जैसी है, पर मेरे साथी ने मेरी बात से असहमति जताई। थोड़ी देर बाद ऐसे स्थान पर पहुँचने पर जहाँ ऐश (अंगू का अंग्रेजी नाम) के पेड़ थे मैंने कहा "देखो, ये वैसी टहनियाँ हैं जिनके बारे में मैं बात कर रहा था<nowiki>''</nowiki>। यह सुनकर उसने कहा "किन्तु ये तो ऐश के पेड़ हैं" – फिर मैंने कहा "एल्म शब्द से मेरा तात्पर्य ऐश से था"।) | |||
650. निश्चित रूप से इसका अर्थ है: कई (अनेक) स्थितियों में ''भूल'' की संभावना को दूर किया जा सकता है। – हिसाब में भूल ऐसे ही सुधारी जाती है। किसी हिसाब की बार-बार जाँच करने के बाद हम यह नहीं कह सकते कि "फिलहाल यह ''अत्यन्त सम्भावित'' परिणाम ही है क्योंकि अभी भी कोई चूक हो सकती है"। किसी चूक के मिल जाने पर भी – हम ऐसा क्यों न समझें कि यह किसी नई चूक का परिणाम है। | |||
651.12 × 12 के 144 होने के बारे में मैं भूल कर ही नहीं सकता। पर ''गणितीय'' निश्चितता की तुलना हम आनुभविक प्रतिज्ञप्तियों की सापेक्षित निश्चितता से तो नहीं कर सकते। क्योंकि हमारी गणितीय प्रतिज्ञप्तियाँ भी हमारे जीवन से जुड़े क्रिया-कलापों का परिणाम हैं और उनमें भी वैसी ही भूल-चूक और भ्रान्ति की सम्भावना है। | |||
652. क्या अब मैं यह अनुमान कर सकता हूँ कि मनुष्य न तो कभी अपनी वर्तमान गणितीय प्रतिज्ञप्तियों का परित्याग करेंगे, और न ही यह कहेंगे कि आखिकार उन्हें पता चल ही गया कि स्थिति क्या है? फिर भी, क्या हमारे संदेह का कोई औचित्य है? | |||
653. यदि 12 × 12 = 144 यह प्रतिज्ञप्ति संदेह से मुक्त हो तो, अ-गणितीय प्रतिज्ञप्तियाँ भी संदेह मुक्त होनी चाहिएं। | |||
26.4.51 | |||
654. किन्तु इसके विरोध में अनेक आपत्तियाँ हैं । – प्रथमतः "12 × 12 इत्यादि" प्रतिज्ञप्ति एक ''गणितीय'' प्रतिज्ञप्ति है और इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी स्थिति में केवल गणितीय प्रतिज्ञप्तियाँ ही होती हैं । और यदि यह अनुमान उचित न हो तो कोई ऐसी प्रतिज्ञप्ति होनी चाहिए जो इस प्रतिज्ञप्ति के समान सुनि-श्चित हो और जो इस परिकलन-पद्धति से संबंधित होने के बावजूद गणितीय न हो । मैं किसी ऐसी प्रतिज्ञप्ति के बारे में सोच रहा हूँ: "जब परिकलन जानने वाले लोग '12 × 12' को गुणा करते हैं, तो अधिकांश लोगों का गुणनफल '144' होता है।" इस प्रतिज्ञप्ति का कोई भी विरोध नहीं करेगा और यह गणितीय है भी नहीं है । किन्तु क्या यह गणितीय प्रतिज्ञप्ति के समान सुनिश्चित है? | |||
655. गणितीय प्रतिज्ञप्ति पर तो, मानो आधिकारिक रूप से, अकाट्यता की मुहर लगा दी गई है। यानी: "अन्य बातों के बारे में विवाद कीजिए; ''यह'' तो ध्रुव है – यह तो ऐसी धुरी है जिसके चारों ओर आपके विवाद घूमते हैं।" | |||
656. पर मैं लु. वि. कहलाता हूँ, इस प्रतिज्ञप्ति के बारे में ऐसा ''नहीं'' कहा जा सकता। न ही यह बात इस प्रतिज्ञप्ति के बारे में कही जा सकती है कि अमुक लोगों ने अमुक समस्या का ठीक-ठीक समाधान कर लिया है। | |||
657. गणित की प्रतिज्ञप्तियों के बारे में कहा जा सकता है कि वे जड़ हो चुकी हैं। – "मैं... कहलाता हूँ", के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। किन्तु मेरे जैसे | |||
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