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{{ParUG|482}} मानो “मैं जानता हूँ” अभिव्यक्ति का तत्त्वमीमासीय सरोकार न हो। | {{ParUG|482}} मानो “मैं जानता हूँ” अभिव्यक्ति का तत्त्वमीमासीय सरोकार न हो। | ||
{{ParUG|483}} “मैं जानता हूँ” अभिव्यक्ति का समुचित प्रयोग। कमज़ोर नज़र वाला कोई व्यक्ति मुझसे पूछता है: “क्या आपको विश्वास है कि हमें दिखाई पड़ने वाली वह वस्तु एक पेड़ है?” मैं उसे उत्तर देता हूँ: “मैं ''जानता'' हूँ कि वह एक पेड़ है; मैं उसे अच्छी तरह देख सकता हूँ और उससे परिचित भी हूँ”। — अः “क्या न. न. घर पर हैं?” — मैं: “मुझे विश्वास है कि वे घर पर हैं।” — अः क्या वे कल घर पर थे?” — मैं: “मैं जानता हूँ कि वे घर पर थे; मैंने उनसे बातचीत की थी।” अः “क्या आप जानते हैं या केवल ऐसा मानते हैं कि घर का यह भाग बाकी घर से बाद में बनाया गया था?” — मैं: मैं ''जानता'' हूँ कि ऐसा ही है; मैंने यह बात अमुक व्यक्ति से जानी थी।” | {{ParUG|483}} “मैं जानता हूँ” अभिव्यक्ति का समुचित प्रयोग। कमज़ोर नज़र वाला कोई व्यक्ति मुझसे पूछता है: “क्या आपको विश्वास है कि हमें दिखाई पड़ने वाली वह वस्तु एक पेड़ है?” मैं उसे उत्तर देता हूँ: “मैं ''जानता'' हूँ कि वह एक पेड़ है; मैं उसे अच्छी तरह देख सकता हूँ और उससे परिचित भी हूँ”। — '''अः''' “क्या '''न. न.''' घर पर हैं?” — मैं: “मुझे विश्वास है कि वे घर पर हैं।” — '''अः''' क्या वे कल घर पर थे?” — मैं: “मैं जानता हूँ कि वे घर पर थे; मैंने उनसे बातचीत की थी।” '''अः''' “क्या आप जानते हैं या केवल ऐसा मानते हैं कि घर का यह भाग बाकी घर से बाद में बनाया गया था?” — मैं: मैं ''जानता'' हूँ कि ऐसा ही है; मैंने यह बात अमुक व्यक्ति से जानी थी।” | ||
{{ParUG|484}} तो, इन परिस्थितियों में हम “मैं जानता हूँ” कहते हैं और यह उल्लेख भी करते हैं, या कर सकते हैं कि हम कैसे जानते हैं। | {{ParUG|484}} तो, इन परिस्थितियों में हम “मैं जानता हूँ” कहते हैं और यह उल्लेख भी करते हैं, या कर सकते हैं कि हम कैसे जानते हैं। | ||
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9.4. | 9.4. | ||
{{ParUG|486}} क्या आप जानते हैं या फिर क्या यह केवल आपका विश्वास ही है कि आपका नाम लु. वि. है? क्या यह कोई सार्थक प्रश्न है? | {{ParUG|486}} क्या आप जानते हैं या फिर क्या यह केवल आपका विश्वास ही है कि आपका नाम '''लु. वि.''' है? क्या यह कोई सार्थक प्रश्न है? | ||
क्या आप जानते हैं, या फिर क्या यह केवल आपका विश्वास ही है कि आप अभी हिन्दी के शब्द लिख रहे हैं? क्या आपका विश्वास है कि “विश्वास” का ''यही'' अर्थ होता है? ''कैसा'' अर्थ? | क्या आप जानते हैं, या फिर क्या यह केवल आपका विश्वास ही है कि आप अभी हिन्दी के शब्द लिख रहे हैं? क्या आपका विश्वास है कि “विश्वास” का ''यही'' अर्थ होता है? ''कैसा'' अर्थ? | ||
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10.4. | 10.4. | ||
{{ParUG|491}} “क्या मैं जानता हूँ या फिर क्या यह मेरा विश्वास ही है कि मेरा नाम लु.वि. है?” — बेशक, यदि यह प्रश्न होता “क्या मुझे निश्चय है या फिर मैं केवल अनुमान लगा रहा हूँ कि....?” तो मेरे उत्तर पर भरोसा किया जा सकता था। | {{ParUG|491}} “क्या मैं जानता हूँ या फिर क्या यह मेरा विश्वास ही है कि मेरा नाम '''लु.वि.''' है?” — बेशक, यदि यह प्रश्न होता “क्या मुझे निश्चय है या फिर मैं केवल अनुमान लगा रहा हूँ कि....?” तो मेरे उत्तर पर भरोसा किया जा सकता था। | ||
{{ParUG|492}} “क्या मैं जानता हूँ या फिर क्या यह मेरा विश्वास ही है....?” इसकी यह भी अभिव्यक्ति हो सकती है: जिस बात को हम अभी तक संशयातीत समझते आये हैं यदि वही निर्मूल ''लगने लगे'' तो क्या होगा? तब क्या मेरी वही प्रतिक्रिया होगी जो किसी मान्यता के निर्मूल सिद्ध होने पर होती है? अथवा क्या इससे मेरे समस्त निर्णयों का आधार ही समाप्त हो जायेगा? — बेशक मेरा मन्तव्य कोई ''भविष्यवाणी'' करना नहीं है। | {{ParUG|492}} “क्या मैं जानता हूँ या फिर क्या यह मेरा विश्वास ही है....?” इसकी यह भी अभिव्यक्ति हो सकती है: जिस बात को हम अभी तक संशयातीत समझते आये हैं यदि वही निर्मूल ''लगने लगे'' तो क्या होगा? तब क्या मेरी वही प्रतिक्रिया होगी जो किसी मान्यता के निर्मूल सिद्ध होने पर होती है? अथवा क्या इससे मेरे समस्त निर्णयों का आधार ही समाप्त हो जायेगा? — बेशक मेरा मन्तव्य कोई ''भविष्यवाणी'' करना नहीं है। | ||
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{{ParUG|514}} मुझे यह आधारभूत कथन लगता था; यदि यही गलत है तो फिर ‘सत्य’ अथवा ‘असत्य’ किसे कहेंगे?! | {{ParUG|514}} मुझे यह आधारभूत कथन लगता था; यदि यही गलत है तो फिर ‘सत्य’ अथवा ‘असत्य’ किसे कहेंगे?! | ||
{{ParUG|515}} यदि मेरा नाम लु. वि. नहीं है तो मैं “सत्य” अथवा “असत्य” पर कैसे विश्वास कर सकता हूँ? | {{ParUG|515}} यदि मेरा नाम '''लु. वि.''' नहीं है तो मैं “सत्य” अथवा “असत्य” पर कैसे विश्वास कर सकता हूँ? | ||
{{ParUG|516}} ऐसी स्थिति (जैसे कोई मुझे बताये) जिसमें मैं अपने नाम के बारे में ही संदेह करने लगूँ से इस संदेह के आधार भी संदेहास्पद हो जाएंगे, और तब मैं अपने पुराने विश्वास को यथावत् बनाये रख सकता हूँ। | {{ParUG|516}} ऐसी स्थिति (जैसे कोई मुझे बताये) जिसमें मैं अपने नाम के बारे में ही संदेह करने लगूँ से इस संदेह के आधार भी संदेहास्पद हो जाएंगे, और तब मैं अपने पुराने विश्वास को यथावत् बनाये रख सकता हूँ। | ||
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13.4. | 13.4. | ||
{{ParUG|520}} मूअर को यह कहने का पूर्ण अधिकार है कि उन्हें पता है कि उनके समक्ष एक पेड़ विद्यमान है। यह स्वाभाविक है कि वे गलत हो सकते हैं। (क्योंकि यह “मुझे विश्वास है कि वह एक पेड़ है” अभिव्यक्ति जैसा ''नहीं'' है।) किन्तु उनके ठीक या गलत होने का कोई दार्शनिक महत्त्व नहीं है। यदि मूअर उन लोगों पर आक्षेप कर रहें हैं जिनका कहना है कि हमें ऐसी बातों का ज्ञान हो ही नहीं सकता, तो वह उनको यह कहकर आश्वस्त नहीं कर सकते कि उन्हें अमुक-अमुक बात ज्ञात है। मूअर पर विश्वास करना आवश्यक नहीं है। यदि उनके विरोधी यह कहते कि हम अमुक-अमुक बात पर विश्वास नहीं कर सकते तो मूअर यह उत्तर दे सकते थे: | {{ParUG|520}} मूअर को यह कहने का पूर्ण अधिकार है कि उन्हें पता है कि उनके समक्ष एक पेड़ विद्यमान है। यह स्वाभाविक है कि वे गलत हो सकते हैं। (क्योंकि यह “मुझे विश्वास है कि वह एक पेड़ है” अभिव्यक्ति जैसा ''नहीं'' है।) किन्तु उनके ठीक या गलत होने का कोई दार्शनिक महत्त्व नहीं है। यदि मूअर उन लोगों पर आक्षेप कर रहें हैं जिनका कहना है कि हमें ऐसी बातों का ज्ञान हो ही नहीं सकता, तो वह उनको यह कहकर आश्वस्त नहीं कर सकते कि उन्हें अमुक-अमुक बात ज्ञात है। मूअर पर विश्वास करना आवश्यक नहीं है। यदि उनके विरोधी यह कहते कि हम अमुक-अमुक बात पर ''विश्वास'' नहीं कर सकते तो मूअर यह उत्तर दे सकते थे: “''मुझे'' इस पर विश्वास है।” | ||
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