फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

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"पट्टी शब्द के प्रयोग के विवरण का रूपान्तर करके यह कहा जा सकता है कि अमुक शब्द का अर्थ अमुक वस्तु है। उदाहरणार्थ, जब हमें इस भ्रान्ति का निराकरण करना हो कि "पट्टी" शब्द उस निर्माण-पत्थर के आकार का द्योतक है जिस पत्थर को हम वस्तुतः "गुटका" कहते हैं तो ऐसा ही किया जाएगा। किन्तु इस प्रकार का '''द्योतन''<nowiki/>', अर्थात् इन शब्दों का शेष सब बातों के लिए प्रयोग, तो पहले से ही ज्ञात है।
"पट्टी शब्द के प्रयोग के विवरण का रूपान्तर करके यह कहा जा सकता है कि अमुक शब्द का अर्थ अमुक वस्तु है। उदाहरणार्थ, जब हमें इस भ्रान्ति का निराकरण करना हो कि "पट्टी" शब्द उस निर्माण-पत्थर के आकार का द्योतक है जिस पत्थर को हम वस्तुतः "गुटका" कहते हैं तो ऐसा ही किया जाएगा। किन्तु इस प्रकार का '''द्योतन''<nowiki/>', अर्थात् इन शब्दों का शेष सब बातों के लिए प्रयोग, तो पहले से ही ज्ञात है।
यह कहना भी उतना ही उपयुक्त होगा कि "'''अ'''", "'''आ'''" इत्यादि प्रतीकों का अर्थ अंक है; उदाहरणार्थ, जब यह कथन इस भ्रान्ति का निराकरण करता है कि भाषा में "'''अ'''", "'''आ'''", "'''इ'''" का वही कार्य है जो कि वास्तव में "गुटका", "पट्टी", "खम्बा" का है। और यह भी कहा जा सकता है कि "'''इ'''" का अर्थ यह अंक है, न कि वह अंक उदाहरणार्थ जब इससे यह समझाया जाए कि अक्षरों को '''अ''', '''आ''', '''इ''', '''ई''' इत्यादि क्रम में प्रयोग करना होता है न कि '''अ''', '''आ''', '''ई''', '''इ''' क्रम में ।
परन्तु शब्दों के प्रयोगों के विवरणों के इस प्रकार के समीकरण से शब्दों के प्रयोगों सादृश्य नहीं आ जाता। क्योंकि, जैसा कि हमें स्पष्ट है, वे एक दूसरे से नितान्त भिन्न हैं।
'''11.''' औज़ार-बक्स में रखे औज़ारों के बारे में सोचिए: उसमें हथौड़ा है, प्लास है, आरी है, पेचकस है, पट्टिका है, गोंददानी है, गोंद है, कीलें और पेच हैं। — शब्दों के कार्य वैसे ही विभिन्न हैं जैसे कि इन वस्तुओं के कार्य। (और दोनों ही में समानताएं भी हैं ।)
वस्तुतः, हम जिससे भ्रमित होते हैं वह है शब्दों की एकाकृति, जब हम उन्हें सुनते हैं, अथवा लिखित या मुद्रित देखते हैं। क्योंकि इनकी प्रयोगविधि ''हमें स्पष्ट रूप से'' पता नहीं चलती विशेषतः दार्शनिक चिंतन करते समय तो बिल्कुल भी नहीं !
'''12.''' यह रेल-इंजन के चालक-कक्ष को देखने जैसा ही है। वहाँ हमें सभी हत्थे लगभग एक जैसे ही दिखाई देते हैं। (स्वाभाविकतः, क्योंकि वे सभी पकड़ने के लिए होते हैं ।) किन्तु उनमें से एक तो क्रैंक का हत्था है जिसे अविराम चलाया जा सकता है (जो कि वाल्व के खुलने को नियमित करता है); दूसरा हत्था स्विच का है जिसकी केवल दो ही स्थितियां हैं: चालू या बन्द ! तीसरा ब्रेकलिवर का हत्था है जिसे जितना अधिक खींचे उतनी ही अधिक ब्रेक लगती है; चौथा, पंप का हत्थाः जिसे आगे-पीछे चलाने से ही कोई गति होती है।
'''13.''' "भाषा के प्रत्येक शब्द का कुछ न कुछ अर्थ होता है" कहने मात्र से तो हम तब तक ''कुछ भी नहीं'' कह पाते जब तक हम यह व्याख्या नहीं करते कि निश्चित रूप से हम ''कौन'' से भेद करना चाहते हैं। (हाँ, यह तो हो सकता है कि §8 की भाषा के शब्दों का हम ऐसे 'अर्थहीन' शब्दों से भेद करना चाहें जैसे कि लुइस राल की कविताओं में आने वाले शब्द, अथवा गानों में आने वाले "डमडम-डिगाडिगा " जैसे शब्द |
'''14.''' किसी के इस कथन की कल्पना कीजिए: "''सभी'' औजार कुछ न कुछ परिवर्तन करने के लिए होते हैं। जैसे हथौड़ा कील की स्थिति में परिवर्तन करता है, आरी बदलाव लाती है बोर्ड के आकार में; आदि, आदि।" — किन्तु पट्टिका, गोंददानी, कीलों से क्या बदलता है? — "हमारा ज्ञान — वस्तु की लम्बाई का, गोंद के तापमान का, और बक्से के ठोसपन का।" — परन्तु क्या अभिव्यक्तियों के इस समीकरण से कुछ भी उपलब्ध होगा? —
'''15.''' "द्योतक है" शब्द का सबसे सीधा प्रयोग सम्भवतः तभी होता है जब द्योतित वस्तु पर वह प्रतीक अंकित कर दिया जाए जिसका वह द्योतन करता है। मान लीजिए कि '''क''' द्वारा निर्माण कार्य में लाए जाने वाले औजारों पर कुछ चिह्न लगे हुए हैं। जब '''क''' अपने सहायक को अमुक चिह्न दिखाता है, तो वह उस चिह्न वाले औज़ार ले आता है।
इस प्रकार तथा इससे बहुत कुछ मिलते-जुलते प्रकारों से ही नाम का अर्थ होता है तथा किसी विषय का नामकरण भी । दार्शनिक चिन्तन में बहुधा अपने आप से यह कहना लाभप्रद सिद्ध होगा: किसी वस्तु का नामकरण तो उस वस्तु पर लेबल लगाने जैसा ही है।
'''16.''' उन रंग नमूनों के बारे में क्या कहा जाए जो '''ख''' को '''क''' दिखाता है: क्या वे ''भाषा'' के अंग हैं? आप चाहें तो ऐसा कह सकते हैं। वे शब्द तो नहीं हैं फिर भी जब मैं किसी को कहता हूँ: "'वह' शब्द का उच्चारण करो", तब 'वह' शब्द को तो आप उस वाक्य का एक अंग ही मानेंगे। फिर भी, उसका कार्य तो है, यह कार्य भाषा-खेल §8 में रंग-नमूने जैसा ही है; अर्थात् वह जो अन्य व्यक्ति कहना चाहता है उसका नमूना है।
नमूनों को भाषा के उपकरण मानना सर्वाधिक स्वाभाविक और भ्रान्ति रहित है।
((निजवाचक सर्वनाम " ''यह'' वाक्य" पर टिप्पणी ।))
'''17.''' यह कहना संभव होगा : §8 की भाषा में ''विभिन्न प्रकार के शब्द'' हैं। क्योंकि “पट्टी” शब्द के कार्य और "गुटका" शब्द के कार्य का सादृश्य “पट्टी" शब्द के कार्य और "'''ई'''" शब्द के कार्य के सादृश्य से कहीं अधिक है। परन्तु शब्दों के वर्ग बनाना तो हमारे वर्गीकरण के उद्देश्य पर और हमारे झुकाव पर निर्भर करता है।
उन विभिन्न दृष्टियों के बारे में सोचिए जिनसे औज़ारों का, या फिर शतरंज के मोहरों का वर्गीकरण किया जा सकता है।
'''18.''' इस बात से परेशान न हों कि §2 एवं §8 की भाषाओं में केवल आदेश ही हैं। यदि आप यह कहना चाहते हैं कि इससे यह प्रदर्शित होता है कि वे भाषाएं अपूर्ण हैं तो अपने आप से प्रश्न कीजिए कि क्या हमारी भाषा पूर्ण है, — क्या वह पूर्ण थी जब उसमें अभी रसायन-शास्त्र की प्रतीक-पद्धति और अत्यणुकलन गणितीय प्रतीक-पद्धति का समावेश नहीं हुआ था; क्योंकि ये तो यूँ कहिए कि हमारी भाषा के उपनगर ही हैं। (और एक कस्बे को कस्बा होने के लिए कितने मकान, या कितनी वीथियाँ चाहिऐं?) हमारी भाषा को एक पुराने नगर रूप में देखा जा सकता है: एक भूल-भुलैयाँ छोटी संकरी गलियों एवं चौराहों की, पुराने एवं नए मकानों और विभिन्न कालों में समय-समय पर परिवर्तित मकानों की; और यह भूल-भुलैयाँ घिरी है नई बस्तियों से, जिनमें सीधी-सपाट सड़कें एवं एक जैसे घर हैं ।
'''19.''' ऐसी भाषा की कल्पना करना सुगम है जिसमें केवल युद्ध के आदेश एवं विवरण हों — या फिर ऐसी भाषा की कल्पना भी सुगम है जिसमें केवल प्रश्न हों और उनके उत्तर हाँ या ना में देने के लिए अभिव्यक्तियां हों। और अनगिनत अन्य भाषाओं की कल्पना करना भी सुगम है। — और किसी भाषा की कल्पना करने का अर्थ तो एक जीवन-शैली की कल्पना करना है।
परन्तु इस बारे में क्या कहेंगे: क्या §2 की भाषा में "पट्टी!" शब्द है, या वाक्य? — यदि यह शब्द है तो निश्चय ही इस का अर्थ वही नहीं है जो हमारी लोकभाषा में इसी की ध्वनि वाले शब्द का है, क्योंकि §2 की भाषा में एक बुलावा है। किन्तु यदि यह वाक्य है तो निश्चय ही हमारी भाषा का न्यूनीकृत वाक्य "पट्टी!" तो नहीं हो सकता — जहाँ तक पहले प्रश्न का सम्बन्ध है, आप "पट्टी!" बुलावे को शब्द भी कह सकते हैं और वाक्य भी; शायद इसे अपभ्रंश वाक्य कहना उचित होगा (जैसे हम अपभ्रंश हाइपरबोला कहते हैं); वास्तव में यह हमारा 'न्यूनीकृत' वाक्य ''ही'' है। — परन्तु निश्चय ही यह तो "मुझे पट्टी ला दो" वाक्य का एक लघु रूप मात्र है, और उदाहरण §2 में तो ऐसा कोई वाक्य है ही नहीं। — परन्तु इसके विपरीत मैं यह क्यों न कहूँ कि "मुझे पट्टी ला दो" वाक्य, "पट्टी!" वाक्य का ''विस्तार'' है? क्योंकि जब आप "पट्टी!" कहते हैं तो वास्तव में आपका आशय होता है: "मुझे पट्टी ला दो"। पर आप यह कैसे करते हैं: कैसे ''यह'' अर्थ होता है जब आप "पट्टी!" कहते हैं? क्या आप अपने आप से असंक्षिप्त वाक्य कहते हैं? और यह बताने के लिए कि "पट्टी!" बुलावे से किसी का क्या अर्थ होता है, मैं इस बुलावे का किसी अन्य अभिव्यक्ति में अनुवाद क्यों करूँ? और यदि इन दोनों का अर्थ एक ही है तो मैं क्यों कहूँ: "जब वह 'पट्टी!' कहता है तो उसका अर्थ 'पट्टी!' होता है"? पुनः यदि आपका अर्थ "मुझे पट्टी ला
दो" हो सकता है तो आप का अर्थ "पट्टी!" क्यों नहीं हो सकता? — परन्तु जब मैं "पट्टी!” कहता हूँ तो मैं जो चाहता हूँ वह यह है ''कि वह मुझे पट्टी ला दे''! — निश्चय ही; किन्तु 'यह चाहना' क्या आपके कहे वाक्य से भिन्न किसी वाक्य को किसी न किसी रूप में सोचना है? —
'''20.''' परन्तु अब ऐसा लगता है कि जब कोई कहता है, "मुझे पट्टी ला दो", तो इस अभिव्यक्ति से उसका अर्थ अकेले शब्द "पट्टी!" के अनुरूप कोई ''एक'' लम्ब शब्द हो सकता है। — तो क्या इससे हमारा अर्थ कभी तो एक शब्द, और कभी चार शब्द हो सकता है? और प्रायः इससे हमारा अर्थ कैसे होता है? — मेरे विचार में हमारी प्रवृत्ति यह कहने की होगी: इस वाक्य से हमारा अर्थ ''चतुश्शब्द'' होता है जब हम इस वाक्य को "मुझे एक पट्टी दो", "उसे एक पट्टी दो", "दो पट्टियां लाओ" इत्यादि वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करते हैं; अर्थात् उन वाक्यों से भेद करते हुए जिनमें हमारे आदेशों में प्रयुक्त अलग-अलग शब्दों के इतर संयोग होते हैं। — किन्तु किसी वाक्य को अन्य वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करने में क्या निहित होता है? क्या अन्य वाक्य संभवत: मन में विचरते रहते हैं? सभी ही? उस वाक्य को कहते हुए ही अथवा उससे पहले या फिर बाद में भी? — नहीं । यह व्याख्या चाहे हमें कुछ लुभावनी भी लगे तो भी यह देखने के लिए कि हम यहाँ पथभ्रष्ट हो रहे हैं, हमें केवल क्षण भर के लिए इतना ही सोचना आवश्यक है कि वास्तव में होता क्या है। हम कहते हैं कि हम आदेशात्मक वाक्य का अन्य वाक्यों से भेद करते हुए प्रयोग करते हैं क्योंकि हमारी भाषा में उन अन्य वाक्यों की संभावना निहित है। वह विदेशी जो हमारी भाषा को नहीं समझता, और जिसने कई बार किसी को "मुझे पट्टी ला दो!" आदेश देते हुए सुना है संभवतः यह सोचे कि यह संपूर्ण ध्वनि-श्रृंखला तो 'निर्माण-पत्थर' जैसे उसकी भाषा के शब्द जैसा एक ही शब्द है। यदि उसने यह आदेश दिया होता, तो शायद वह उसका उच्चारण किसी और प्रकार से करता, और हम कहते: उसका उच्चारण इतना विचित्र इसलिए है कि वह इसे एक ही शब्द मानता है। — परन्तु ऐसा उच्चारण करते हुए क्या उसमें कुछ अन्य क्रिया नहीं हो रही होती — ऐसी प्रक्रिया जो इस तथ्य से सम्बद्ध हो कि उसकी इस वाक्य की संकल्पना एक ही शब्द की है? — या तो उसमें वही प्रक्रिया होगी या फिर उससे कुछ भिन्न । जब आप ऐसा आदेश देते हैं तो आप को क्या लगता है? यह आदेश देते हुए क्या आप सजग हैं- कि यह चार शब्दों का समूह है? बेशक, आप इस भाषा — जिसमें अन्य वाक्य भी हैं — में निपुण हैं, किन्तु आपकी यह निपुणता क्या तभी प्रकाशित होती है जब आप वाक्य को बोलते हैं? और यह मैंने मान ही लिया है कि यदि किसी विदेशी की इस वाक्य की संकल्पना भिन्न है, तो उसका उच्चारण भी भिन्न ही होगा। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि जिसे हम उसकी भ्रान्त संकल्पना कहते हैं वह उसके आदेश की किसी सहगामी प्रक्रिया में निहित हो ।
यह 'पदलोची' वाक्य है, इसलिए नहीं कि इसको बोलते हुए जो हम सोचते हैं उसमें से कुछ छूट जाता है, परन्तु इसलिए कि हमारी भाषा के विशिष्ट प्रतिमान की तुलना में यह संक्षिप्त है। — बेशक यहाँ कोई टोक सकता है: "आप यह मानते हैं कि संक्षिप्त और असंक्षिप्त वाक्य का अर्थ एक ही है — तो यह अर्थ क्या है? क्या इस अर्थ के लिए कोई भाषाई अभिव्यक्ति नहीं है?" — किन्तु वाक्यों के एक ही अर्थ होने का तथ्य क्या उनके प्रयोग की अभिन्नता में ही निहित नहीं है? — (रूसी भाषा में "पत्थर लाल है" की बजाय "पत्थर लाल" कहते हैं; क्या उन्हें इस के अर्थ में "है" का अभाव खटकता है, या फिर वे उसे अपने विचार में जोड़ लेते हैं?)
'''21.''' ऐसे भाषा-खेल की कल्पना कीजिए जिसमें '''क''' पूछता है और '''ख''' चट्टे में पड़ी हुई पट्टियों या गुटकों की संख्या बताता है, अथवा फिर किसी स्थान पर रखे निर्माण-पत्थरों के रंग और आकार बताता है। ऐसा विवरण यूँ भी हो सकता है: “पाँच पट्टियां"। तो विवरण अथवा कथन "पांच पट्टियां" तथा आदेश "पांच पट्टियां!" में क्या अन्तर है? — यह तो भाषा-खेल में इन शब्दों के उच्चारण के ढंग पर निर्भर करता है। उन्हें बोलते हुए कंठस्वर, भंगिमा तथा अन्य बहुत कुछ भी बेशक भिन्न ही होगा। परन्तु हम कंठ-स्वर की अभिन्नता की भी कल्पना कर सकते हैं-क्योंकि आदेश और विवरण दोनों ही विभिन्न प्रकार के कंठस्वरों और विभिन्न भंगिमाओं के साथ कहे जा सकते हैं-अन्तर तो केवल उनके प्रयोग में है। (निश्चय ही हम "कथन" और "आदेश" शब्दों को वाक्यों के व्याकरण-सम्मत आकारों के रूप में तथा स्वर-शैलियों के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं; हम वास्तव में "क्या आज मौसम लुभावना नहीं ?" को प्रश्न कहते हैं यद्यपि इसका कथन के रूप में प्रयोग होता है।) हम ऐसी भाषा की कल्पना कर सकते हैं जिसमें सभी वाक्यों का आकार तथा स्वर आलंकारिक प्रश्नों का सा हो; या फिर प्रत्येक आदेश का आकार "क्या आप चाहेंगे कि...?" प्रश्न रूप हो। संभवत: तब यह कहा जाए: “वह जो कहता है उसका आकार तो प्रश्न रूपी है, परन्तु वास्तव में वह आदेश है" — अर्थात् भाषा के प्रयोग की विधि में उसका प्रयोग आदेश का है। (इसी प्रकार "आप यह करेंगे" कथन भविष्यवाणी के रूप में नहीं, अपितु आदेश के रूप में, कहा जाता है। वह क्या है जो इसे भविष्यवाणी अथवा आदेश का रूप प्रदान करता है?)