फ़िलोसॉफ़िकल इन्वेस्टिगेशंस: Difference between revisions

no edit summary
No edit summary
No edit summary
Line 136: Line 136:
'''21.''' ऐसे भाषा-खेल की कल्पना कीजिए जिसमें '''क''' पूछता है और '''ख''' चट्टे में पड़ी हुई पट्टियों या गुटकों की संख्या बताता है, अथवा फिर किसी स्थान पर रखे निर्माण-पत्थरों के रंग और आकार बताता है। ऐसा विवरण यूँ भी हो सकता है: “पाँच पट्टियां"। तो विवरण अथवा कथन "पांच पट्टियां" तथा आदेश "पांच पट्टियां!" में क्या अन्तर है? — यह तो भाषा-खेल में इन शब्दों के उच्चारण के ढंग पर निर्भर करता है। उन्हें बोलते हुए कंठस्वर, भंगिमा तथा अन्य बहुत कुछ भी बेशक भिन्न ही होगा। परन्तु हम कंठ-स्वर की अभिन्नता की भी कल्पना कर सकते हैं-क्योंकि आदेश और विवरण दोनों ही विभिन्न प्रकार के कंठस्वरों और विभिन्न भंगिमाओं के साथ कहे जा सकते हैं-अन्तर तो केवल उनके प्रयोग में है। (निश्चय ही हम "कथन" और "आदेश" शब्दों को वाक्यों के व्याकरण-सम्मत आकारों के रूप में तथा स्वर-शैलियों के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं; हम वास्तव में "क्या आज मौसम लुभावना नहीं?" को प्रश्न कहते हैं यद्यपि इसका कथन के रूप में प्रयोग होता है।) हम ऐसी भाषा की कल्पना कर सकते हैं जिसमें सभी वाक्यों का आकार तथा स्वर आलंकारिक प्रश्नों का सा हो; या फिर प्रत्येक आदेश का आकार "क्या आप चाहेंगे कि...?" प्रश्न रूप हो। संभवत: तब यह कहा जाए: “वह जो कहता है उसका आकार तो प्रश्न रूपी है, परन्तु वास्तव में वह आदेश है" — अर्थात् भाषा के प्रयोग की विधि में उसका प्रयोग आदेश का है। (इसी प्रकार "आप यह करेंगे" कथन भविष्यवाणी के रूप में नहीं, अपितु आदेश के रूप में, कहा जाता है। वह क्या है जो इसे भविष्यवाणी अथवा आदेश का रूप प्रदान करता है?)
'''21.''' ऐसे भाषा-खेल की कल्पना कीजिए जिसमें '''क''' पूछता है और '''ख''' चट्टे में पड़ी हुई पट्टियों या गुटकों की संख्या बताता है, अथवा फिर किसी स्थान पर रखे निर्माण-पत्थरों के रंग और आकार बताता है। ऐसा विवरण यूँ भी हो सकता है: “पाँच पट्टियां"। तो विवरण अथवा कथन "पांच पट्टियां" तथा आदेश "पांच पट्टियां!" में क्या अन्तर है? — यह तो भाषा-खेल में इन शब्दों के उच्चारण के ढंग पर निर्भर करता है। उन्हें बोलते हुए कंठस्वर, भंगिमा तथा अन्य बहुत कुछ भी बेशक भिन्न ही होगा। परन्तु हम कंठ-स्वर की अभिन्नता की भी कल्पना कर सकते हैं-क्योंकि आदेश और विवरण दोनों ही विभिन्न प्रकार के कंठस्वरों और विभिन्न भंगिमाओं के साथ कहे जा सकते हैं-अन्तर तो केवल उनके प्रयोग में है। (निश्चय ही हम "कथन" और "आदेश" शब्दों को वाक्यों के व्याकरण-सम्मत आकारों के रूप में तथा स्वर-शैलियों के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं; हम वास्तव में "क्या आज मौसम लुभावना नहीं?" को प्रश्न कहते हैं यद्यपि इसका कथन के रूप में प्रयोग होता है।) हम ऐसी भाषा की कल्पना कर सकते हैं जिसमें सभी वाक्यों का आकार तथा स्वर आलंकारिक प्रश्नों का सा हो; या फिर प्रत्येक आदेश का आकार "क्या आप चाहेंगे कि...?" प्रश्न रूप हो। संभवत: तब यह कहा जाए: “वह जो कहता है उसका आकार तो प्रश्न रूपी है, परन्तु वास्तव में वह आदेश है" — अर्थात् भाषा के प्रयोग की विधि में उसका प्रयोग आदेश का है। (इसी प्रकार "आप यह करेंगे" कथन भविष्यवाणी के रूप में नहीं, अपितु आदेश के रूप में, कहा जाता है। वह क्या है जो इसे भविष्यवाणी अथवा आदेश का रूप प्रदान करता है?)


'''22.''' फ्रेगे की यह धारणा, कि प्रत्येक कथ्य में एक तथ्य निहित होता है, वास्तव में हमारी भाषा में प्रत्येक कथन को "यह अभिकथित है कि अमुक स्थिति है" — रूप में लिखने की संभावना पर आधारित है। किन्तु "अमुक स्थिति है" हमारी भाषा का वाक्य नहीं है — भाषा-खेल में ऐसी तो कोई चाल ही नहीं है। और "यह अभिकथित है कि..." न लिखकर यदि मैं "यह अभिकथित है: अमुक अमुक स्थिति है" लिखूँ तो "यह अभिकथित है" शब्द निष्प्रयोजन हो जाते हैं।
'''22.''' फ्रेगे की यह धारणा, कि प्रत्येक कथ्य में एक तथ्य निहित होता है, वास्तव में हमारी भाषा में प्रत्येक कथन को "यह अभिकथित है कि अमुक स्थिति है" — रूप में लिखने की संभावना पर आधारित है। किन्तु "अमुक स्थिति है" हमारी भाषा का वाक्य नहीं है — भाषा-खेल में ऐसी तो कोई चाल ही नहीं है। और "यह अभिकथित है कि..." न लिखकर यदि मैं "यह अभिकथित है: अमुक-अमुक स्थिति है" लिखूँ तो "यह अभिकथित है" शब्द निष्प्रयोजन हो जाते हैं।


प्रत्येक कथन को एक प्रश्न के रूप में लिखकर फिर "हाँ" जोड़कर भी तो लिखा जा सकता है; उदाहरणार्थ: "क्या वर्षा हो रही है? हाँ!"। क्या इससे यह प्रदर्शित होता है कि प्रत्येक कथन में एक प्रश्न निहित है?
प्रत्येक कथन को एक प्रश्न के रूप में लिखकर फिर "हाँ" जोड़कर भी तो लिखा जा सकता है; उदाहरणार्थ: "क्या वर्षा हो रही है? हाँ!"। क्या इससे यह प्रदर्शित होता है कि प्रत्येक कथन में एक प्रश्न निहित है?
Line 142: Line 142:
उदाहरणार्थ: प्रश्नवाचक चिह्न से भेद करते हुए अभिकथन चिह्न के प्रयोग का तो हमें बेशक अधिकार है ही, या फिर यदि हम चाहें तो इसका प्रयोग अभिकथन को गल्प अथवा प्राक्कल्पना से भेद करने के लिए भी कर सकते हैं। यह सोचना तो भ्रम ही है कि किसी अभिकथन में दो क्रियाएं होती हैं, ग्रहण करना तथा अभिकथित करना (सत्य/असत्य कहना या कुछ ऐसा ही तय करना), तथा यह कि इन क्रियाओं में हम कथनात्मक चिह्न को उसी प्रकार समझते हैं जैसे कि स्वरलिपि को उसे पढ़कर गाते समय समझते हैं। लिखित वाक्य को ऊँचे अथवा नीचे सुर में पढ़ना तो स्वरलिपि से गाने के समान है, किन्तु यह पढ़े हुए वाक्य का '''अर्थ करना''<nowiki/>' (सोचना) नहीं होता।
उदाहरणार्थ: प्रश्नवाचक चिह्न से भेद करते हुए अभिकथन चिह्न के प्रयोग का तो हमें बेशक अधिकार है ही, या फिर यदि हम चाहें तो इसका प्रयोग अभिकथन को गल्प अथवा प्राक्कल्पना से भेद करने के लिए भी कर सकते हैं। यह सोचना तो भ्रम ही है कि किसी अभिकथन में दो क्रियाएं होती हैं, ग्रहण करना तथा अभिकथित करना (सत्य/असत्य कहना या कुछ ऐसा ही तय करना), तथा यह कि इन क्रियाओं में हम कथनात्मक चिह्न को उसी प्रकार समझते हैं जैसे कि स्वरलिपि को उसे पढ़कर गाते समय समझते हैं। लिखित वाक्य को ऊँचे अथवा नीचे सुर में पढ़ना तो स्वरलिपि से गाने के समान है, किन्तु यह पढ़े हुए वाक्य का '''अर्थ करना''<nowiki/>' (सोचना) नहीं होता।


फ्रेगे का अभिकथन-चिह्न तो ''वाक्यारंभ'' चिह्न है। तो इसका कार्य पूर्णविराम चिह्न जैसा ही है। यह तो पूर्ण वाक्य का उसके उपवाक्य से भेद करता है। यदि मैं किसी को "वर्षा हो रही है", यह कहते हुए सुनूँ, किन्तु यह न जान ---पाऊँ ---  कि मैंने वाक्य का आरम्भ तथा अन्त सुना है अथवा नहीं तो मैं इस वाक्य से कुछ भी न जान पाऊँगा।
फ्रेगे का अभिकथन-चिह्न तो ''वाक्यारंभ'' चिह्न है। तो इसका कार्य पूर्णविराम चिह्न जैसा ही है। यह तो पूर्ण वाक्य का उसके उपवाक्य से भेद करता है। यदि मैं किसी को "वर्षा हो रही है", यह कहते हुए सुनूँ, किन्तु यह न जान पाऊँ   कि मैंने वाक्य का आरम्भ तथा अन्त सुना है अथवा नहीं तो मैं इस वाक्य से कुछ भी न जान पाऊँगा।


{{PU box|विशिष्ट मुद्रा में खड़े हुए किसी मुक्केबाज के चित्र की कल्पना कीजिए। इस चित्र का प्रयोग किसी को यह बताने के लिए किया जा सकता है कि उसे कैसे खड़ा होना चाहिए, कैसे अपने आप को बचाना चाहिए: अथवा कैसे उसे अपने आप को नहीं बचाना चाहिए। अथवा यह बताने के लिए कि कोई व्यक्ति अमुक स्थान पर किस मुद्रा में खड़ा इत्यादि था; इस चित्र का प्रयोग किया जा सकता है। (रसायन-शास्त्र की भाषा में) हम इस चित्र को प्रतिज्ञप्ति मूलक कह सकते हैं। फ्रेंगे ने “पूर्वधारणा” की कल्पना इसी प्रकार बनाई होगी।}}'''23.''' परन्तु वाक्य कितने प्रकार के होते हैं? — उदाहरणार्थ: अभिकथन, प्रश्न, और आदेश? — ''अनगिनत'' प्रकार के होते हैं: "प्रतीकों" के "शब्दों" के, "वाक्यों" के ''अनगिनत'' विविध प्रयोग होते हैं। और यह अनेकता सदा के लिए निश्चित नहीं होती; अपितु कहा जा सकता है कि भाषा के नये प्रकारों का, नए भाषा-खेलों का उद्भव होता है, और उनमें से कुछ अप्रचलित हो जाते हैं और इसीलिए विस्मृत हो जाते हैं। (गणित में हुए परिवर्तनों से हमें इसका ''धुंधला चित्र'' मिल सकता है।)
{{PU box|विशिष्ट मुद्रा में खड़े हुए किसी मुक्केबाज के चित्र की कल्पना कीजिए। इस चित्र का प्रयोग किसी को यह बताने के लिए किया जा सकता है कि उसे कैसे खड़ा होना चाहिए, कैसे अपने आप को बचाना चाहिए: अथवा कैसे उसे अपने आप को नहीं बचाना चाहिए। अथवा यह बताने के लिए कि कोई व्यक्ति अमुक स्थान पर किस मुद्रा में खड़ा इत्यादि था; इस चित्र का प्रयोग किया जा सकता है। (रसायन-शास्त्र की भाषा में) हम इस चित्र को प्रतिज्ञप्ति मूलक कह सकते हैं। फ्रेंगे ने “पूर्वधारणा” की कल्पना इसी प्रकार बनाई होगी।}}'''23.''' परन्तु वाक्य कितने प्रकार के होते हैं? — उदाहरणार्थ: अभिकथन, प्रश्न, और आदेश? — ''अनगिनत'' प्रकार के होते हैं: "प्रतीकों" के "शब्दों" के, "वाक्यों" के ''अनगिनत'' विविध प्रयोग होते हैं। और यह अनेकता सदा के लिए निश्चित नहीं होती; अपितु कहा जा सकता है कि भाषा के नये प्रकारों का, नए भाषा-खेलों का उद्भव होता है, और उनमें से कुछ अप्रचलित हो जाते हैं और इसीलिए विस्मृत हो जाते हैं। (गणित में हुए परिवर्तनों से हमें इसका ''धुंधला चित्र'' मिल सकता है।)
Line 214: Line 214:
'''28.''' किसी नामवाचक संज्ञा, किसी रंग के नाम, किसी पदार्थ के नाम, किसी संख्यांक, कम्पास के किसी बिन्दु के नाम, इत्यादि को निदर्शनात्मक विधि से परिभाषित किया जा सकता है। संख्या '''दो''' की परिभाषा — दो पेचों को इंगित करते हुए — यह कह कर करना कि "उसको '''दो''' कहते हैं" — बिल्कुल ठीक है। — किन्तु '''दो''' को इस प्रकार कैसे परिभाषित किया जा सकता है? जिस व्यक्ति को आप यह परिभाषा देते हैं वह यह नहीं जानता कि आप "'''दो'''" किसे कहते हैं; वह यह समझेगा कि "'''दो'''" तो इस पेच-समूह को दिया गया नाम है! — उसका ऐसा समझना ''संभव'' तो है; किन्तु संभवत: वह ऐसा समझता नहीं। वह इससे बिल्कुल उलट गलती कर सकता है; जब मेरा अभिप्राय इस पेच-समूह को नाम देने का तो यह हो सकता है कि वह उस नाम को संख्यांक समझे। और उसी प्रकार जब मैं उसे निदर्शनात्मक परिभाषा द्वारा किसी व्यक्ति का नाम बताता हूँ तो यह उतना ही संभव है कि वह उस नाम को किसी रंग, किसी जाति, अथवा कम्पास के किसी बिन्दु का ही, नाम समझे। अर्थात् निदर्शनात्मक परिभाषा को तो ''सदैव'' विविध प्रकार से समझा जा सकता है।
'''28.''' किसी नामवाचक संज्ञा, किसी रंग के नाम, किसी पदार्थ के नाम, किसी संख्यांक, कम्पास के किसी बिन्दु के नाम, इत्यादि को निदर्शनात्मक विधि से परिभाषित किया जा सकता है। संख्या '''दो''' की परिभाषा — दो पेचों को इंगित करते हुए — यह कह कर करना कि "उसको '''दो''' कहते हैं" — बिल्कुल ठीक है। — किन्तु '''दो''' को इस प्रकार कैसे परिभाषित किया जा सकता है? जिस व्यक्ति को आप यह परिभाषा देते हैं वह यह नहीं जानता कि आप "'''दो'''" किसे कहते हैं; वह यह समझेगा कि "'''दो'''" तो इस पेच-समूह को दिया गया नाम है! — उसका ऐसा समझना ''संभव'' तो है; किन्तु संभवत: वह ऐसा समझता नहीं। वह इससे बिल्कुल उलट गलती कर सकता है; जब मेरा अभिप्राय इस पेच-समूह को नाम देने का तो यह हो सकता है कि वह उस नाम को संख्यांक समझे। और उसी प्रकार जब मैं उसे निदर्शनात्मक परिभाषा द्वारा किसी व्यक्ति का नाम बताता हूँ तो यह उतना ही संभव है कि वह उस नाम को किसी रंग, किसी जाति, अथवा कम्पास के किसी बिन्दु का ही, नाम समझे। अर्थात् निदर्शनात्मक परिभाषा को तो ''सदैव'' विविध प्रकार से समझा जा सकता है।


'''29.''' संभवतः आप कहेंगे: '''दो''' तो निदर्शनात्मक रूप से केवल इस प्रकार ही परिभाषित किया जा सकता है: "यह ''संख्या'' '''दो''' कहलाती है"। क्योंकि "संख्या" शब्द यह दर्शाता है कि भाषा में, व्याकरण में, उस शब्द के लिए हम कौन सा स्थान नियत करते हैं। परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि निदर्शनात्मक परिभाषा के बोध से पूर्व ही "संख्या" शब्द की व्याख्या करनी होगी। — परिभाषा में "संख्या" शब्द निश्चय ही उस स्थान को दर्शाता है, उस स्थान को बताता है जहाँ हम उस शब्द को रखते हैं। और हम यह कहकर मिथ्याबोधों का निवारण कर सकते हैं; "यह ''रंग'', अमुक-अमुक कहलाता है", "यह ''लम्बाई'', अमुक-अमुक कहलाती है" इत्यादि, इत्यादि। अर्थात्, मिथ्याबोधों का कई बार इस प्रकार निवारण हो जाता है। किन्तु "रंग" या "लम्बाई" शब्द क्या ''एक'' ही रूप में ग्राह्य हैं? — वस्तुतः, उनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। — अन्य शब्दों से परिभाषित करने की! और इस श्रृंखला में अंतिम परिभाषा का क्या होगा? (मत कहिए: "----'अंतिम' परिभाषा तो होती ही नहीं"। यह तो ऐसा कहने जैसा ही होगा: "इस वीथी में अंतिम गृह है ही नहीं: एक और गृह का निर्माण तो सदैव संभव है"।)
'''29.''' संभवतः आप कहेंगे: '''दो''' तो निदर्शनात्मक रूप से केवल इस प्रकार ही परिभाषित किया जा सकता है: "यह ''संख्या'' '''दो''' कहलाती है"। क्योंकि "संख्या" शब्द यह दर्शाता है कि भाषा में, व्याकरण में, उस शब्द के लिए हम कौन सा स्थान नियत करते हैं। परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि निदर्शनात्मक परिभाषा के बोध से पूर्व ही "संख्या" शब्द की व्याख्या करनी होगी। — परिभाषा में "संख्या" शब्द निश्चय ही उस स्थान को दर्शाता है, उस स्थान को बताता है जहाँ हम उस शब्द को रखते हैं। और हम यह कहकर मिथ्याबोधों का निवारण कर सकते हैं; "यह ''रंग'', अमुक-अमुक कहलाता है", "यह ''लम्बाई'', अमुक-अमुक कहलाती है" इत्यादि, इत्यादि। अर्थात्, मिथ्याबोधों का कई बार इस प्रकार निवारण हो जाता है। किन्तु "रंग" या "लम्बाई" शब्द क्या ''एक'' ही रूप में ग्राह्य हैं? — वस्तुतः, उनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। — अन्य शब्दों से परिभाषित करने की! और इस श्रृंखला में अंतिम परिभाषा का क्या होगा? (मत कहिए: "'अंतिम' परिभाषा तो होती ही नहीं"। यह तो ऐसा कहने जैसा ही होगा: "इस वीथी में अंतिम गृह है ही नहीं: एक और गृह का निर्माण तो सदैव संभव है"।)


निदर्शनात्मक परिभाषा में "संख्या" शब्द आवश्यक है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके बिना कोई दूसरा व्यक्ति उस परिभाषा को मेरी इच्छा से विपरीत रूप में ग्रहण करता है या नहीं। और यह निर्भर करता है उन परिस्थितियों पर जिनमें वह परिभाषा दी जा रही है, और उस व्यक्ति पर जिसे मैं यह परिभाषा देता हूँ।
निदर्शनात्मक परिभाषा में "संख्या" शब्द आवश्यक है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके बिना कोई दूसरा व्यक्ति उस परिभाषा को मेरी इच्छा से विपरीत रूप में ग्रहण करता है या नहीं। और यह निर्भर करता है उन परिस्थितियों पर जिनमें वह परिभाषा दी जा रही है, और उस व्यक्ति पर जिसे मैं यह परिभाषा देता हूँ।