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{{ParPU|549}} “‘नहीं’ शब्द कैसे निषेध कर सकता है?” — “‘नहीं’ संकेत इंगित करता है कि आपको इसके साथ जुड़ी अभिव्यक्ति को निषेधपूर्वक समझना है।” हम कहना चाहेंगे: निषेध का संकेत तो हमारे द्वारा कुछ करने — संभवत: कुछ बेहद जटिल करने का अवसर होता है। मानो निषेध-चिह्न हमारे कुछ करने का कारण हो। किन्तु क्या करने का? वह तो बताया ही नहीं गया। मानो उसका तो मात्र संकेत ही देना था; मानो वह तो पहले से ही हमें ज्ञात हो। मानो किसी भी व्याख्या की आवश्यकता ही नहीं थी, क्योंकि बहरहाल हम तो पहले से ही विषय से परिचित थे। | {{ParPU|549}} “‘नहीं’ शब्द कैसे निषेध कर सकता है?” — “‘नहीं’ संकेत इंगित करता है कि आपको इसके साथ जुड़ी अभिव्यक्ति को निषेधपूर्वक समझना है।” हम कहना चाहेंगे: निषेध का संकेत तो हमारे द्वारा कुछ करने — संभवत: कुछ बेहद जटिल करने का अवसर होता है। मानो निषेध-चिह्न हमारे कुछ करने का कारण हो। किन्तु क्या करने का? वह तो बताया ही नहीं गया। मानो उसका तो मात्र संकेत ही देना था; मानो वह तो पहले से ही हमें ज्ञात हो। मानो किसी भी व्याख्या की आवश्यकता ही नहीं थी, क्योंकि बहरहाल हम तो पहले से ही विषय से परिचित थे। | ||
{{PU box|(क) “यह तथ्य, कि तीन निषेधों का परिणाम निषेध ही होता है, तो मेरे द्वारा प्रयुक्त एकल निषेध में पहले से ही निहित होता है।” ('अर्थ' के मिथक का आविष्कार करने की लालसा।) | |||
ऐसा प्रतीत होता है मानो निषेध के स्वभाव से ही यह निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि दोहरा निषेध अस्तिवाचक होता है। (और इसमें कुछ सच्चाई भी है। क्या? ''हमारा'' स्वभाव इन दोनों से संबंधित है।) | |||
(ख) “नहीं” के प्रयोग के ये नियम ठीक भी हैं अथवा नहीं, का तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता। (मेरा तात्पर्य नियमों का अर्थ के अनुरूप होने का प्रश्न है।) क्योंकि इन नियमों के बिना तो शब्द का कोई अर्थ ही नहीं होता; और अब यदि हम नियमों को बदल दें तो इसका कोई अन्य अर्थ हो जाता है (या कोई अर्थ नहीं होता), और उस स्थिति में तो हम शब्द को ही बदल सकते हैं।}} | |||
{{ParPU|550}} कहा जा सकता है कि निषेध तो वर्जन की, अस्वीकार की भंगिमा है। किन्तु ऐसी भंगिमा तो अनेक स्थितियों में प्रयुक्त होती है! | {{ParPU|550}} कहा जा सकता है कि निषेध तो वर्जन की, अस्वीकार की भंगिमा है। किन्तु ऐसी भंगिमा तो अनेक स्थितियों में प्रयुक्त होती है! | ||
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(इ) विभिन्न प्रतिबिम्बों को हम इन दो निषेधों से जोड़ते हैं। मानो “'''क'''” अर्थ को उल्टा देता है। और ''इसीलिए'', ऐसे दो निषेध अर्थों को उनकी मूल स्थिति में पहुँचा देते हैं। “'''ख'''” सिर हिलाने के समान है। और जिस प्रकार एक बार सिर हिलाने को दूसरी बार सिर हिलाने द्वारा रद्द नहीं किया जाता। और इसीलिए यद्यपि, व्यवहारिक तौर पर, दोनों संकेतों वाले वाक्यों का एक ही अर्थ होता है, तो भी “'''क'''” और “'''ख'''” विभिन्न विचारों को अभिव्यक्त करते हैं। | (इ) विभिन्न प्रतिबिम्बों को हम इन दो निषेधों से जोड़ते हैं। मानो “'''क'''” अर्थ को उल्टा देता है। और ''इसीलिए'', ऐसे दो निषेध अर्थों को उनकी मूल स्थिति में पहुँचा देते हैं। “'''ख'''” सिर हिलाने के समान है। और जिस प्रकार एक बार सिर हिलाने को दूसरी बार सिर हिलाने द्वारा रद्द नहीं किया जाता। और इसीलिए यद्यपि, व्यवहारिक तौर पर, दोनों संकेतों वाले वाक्यों का एक ही अर्थ होता है, तो भी “'''क'''” और “'''ख'''” विभिन्न विचारों को अभिव्यक्त करते हैं। | ||
{{ParPU|557}} तो, जब मैंने दोहरे निषेध का उच्चारण किया तो उससे सकारात्मक के | {{ParPU|557}} तो, जब मैंने दोहरे निषेध का उच्चारण किया तो उससे सकारात्मक के |