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7. मेरे व्यवहार से यह पता चलता है कि मैं जानता हूँ या आश्वस्त हूँ कि वहाँ एक कुर्सी पड़ी है, या वहाँ दरवाजा इत्यादि है। उदाहरणार्थ मैं किसी मित्र से कहता हूँ " उस कुर्सी को वहाँ ले जाओ", "दरवाज़े को बंद कर दो”, इत्यादि, इत्यादि । | 7. मेरे व्यवहार से यह पता चलता है कि मैं जानता हूँ या आश्वस्त हूँ कि वहाँ एक कुर्सी पड़ी है, या वहाँ दरवाजा इत्यादि है। उदाहरणार्थ मैं किसी मित्र से कहता हूँ " उस कुर्सी को वहाँ ले जाओ", "दरवाज़े को बंद कर दो”, इत्यादि, इत्यादि । | ||
8. " जानने" और " आश्वस्त होने" के प्रत्ययों में भेद केवल वहीं महत्त्वपूर्ण होता है जहाँ "मैं जानता हूँ" कहने का अर्थ होता है : मैं गलत नहीं हो सकता । उदाहरणार्थ, किसी अदालत में दी जा रही किसी गवाही में "मैं जानता हूँ" को "मैं आश्वस्त हूँ" से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। "मैं जानता हूँ" के प्रयोग पर अदालत में पाबंदी की कल्पना भी की जा सकती है। (विल्हेल्म माइस्टर के एक अनुच्छेद में तथ्यों की गलत जानकारी के बावजूद " आप जानते हैं” अथवा “ आप जानते थे" का प्रयोग " आप आश्वस्त थे" के अर्थ में किया जाता है ।) | 8. " जानने" और " आश्वस्त होने" के प्रत्ययों में भेद केवल वहीं महत्त्वपूर्ण होता है जहाँ "मैं जानता हूँ" कहने का अर्थ होता है : मैं गलत नहीं हो सकता । उदाहरणार्थ, किसी अदालत में दी जा रही किसी गवाही में "मैं जानता हूँ" को "मैं आश्वस्त हूँ" से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। "मैं जानता हूँ" के प्रयोग पर अदालत में पाबंदी की कल्पना भी की जा सकती है। (''विल्हेल्म माइस्टर'' के एक अनुच्छेद में तथ्यों की गलत जानकारी के बावजूद " आप जानते हैं” अथवा “ आप जानते थे" का प्रयोग " आप आश्वस्त थे" के अर्थ में किया जाता है ।) | ||
9. तो क्या मैं अपने व्यवहार में यह सुनिश्चित करता हूँ कि मैं जानता हूँ कि यह एक हाथ – यानी, मेरा हाथ है ? | 9. तो क्या मैं अपने व्यवहार में यह सुनिश्चित करता हूँ कि मैं जानता हूँ कि यह एक हाथ – यानी, मेरा हाथ है ? | ||
10. मैं जानता हूँ कि एक बीमार व्यक्ति यहाँ लेटा हुआ है? बकवास ! मैं उसके सिरहाने बैठा हूँ, मैं उसके चेहरे को गौर से देख रहा हूँ। – क्या फिर भी मैं यह नहीं जानता कि यहाँ एक बीमार व्यक्ति लेटा है? यह प्रश्न और यह कथन दोनों उसी तरह निरर्थक हैं जैसे मेरा किसी से यह कहना कि 'मैं यहाँ हूँ ।' तो क्या “2 × 2 = 4” कोई गणितीय प्रतिज्ञप्ति न होकर कभी भी उसी तरह निरर्थक है ? “2 × 2 = 4” तो गणित में न तो " कभी " और न ही 'सदा' – सत्य प्रतिज्ञप्ति है, किन्तु चीनी भाषा में लिखित अथवा उच्चारित “2 × 2 = 4” वाक्य का भिन्न अर्थ हो सकता है या फिर उस भाषा में यह वाक्य निरर्थक भी हो सकता है, और इससे यह पता चलता है कि प्रयोग में ही इस प्रतिज्ञप्ति का अर्थ होता है । और "मैं जानता हूँ कि यहाँ पर एक बीमार व्यक्ति लेटा हुआ है" यह प्रतिज्ञप्ति किसी | 10. मैं जानता हूँ कि एक बीमार व्यक्ति यहाँ लेटा हुआ है? बकवास ! मैं उसके सिरहाने बैठा हूँ, मैं उसके चेहरे को गौर से देख रहा हूँ। – क्या फिर भी मैं यह नहीं जानता कि यहाँ एक बीमार व्यक्ति लेटा है? यह प्रश्न और यह कथन दोनों उसी तरह निरर्थक हैं जैसे मेरा किसी से यह कहना कि 'मैं यहाँ हूँ ।' तो क्या “2 × 2 = 4” कोई गणितीय प्रतिज्ञप्ति न होकर कभी भी उसी तरह निरर्थक है ? “2 × 2 = 4” तो गणित में न तो " कभी " और न ही 'सदा' – सत्य प्रतिज्ञप्ति है, किन्तु चीनी भाषा में लिखित अथवा उच्चारित “2 × 2 = 4” वाक्य का भिन्न अर्थ हो सकता है या फिर उस भाषा में यह वाक्य निरर्थक भी हो सकता है, और इससे यह पता चलता है कि प्रयोग में ही इस प्रतिज्ञप्ति का अर्थ होता है । और "मैं जानता हूँ कि यहाँ पर एक बीमार व्यक्ति लेटा हुआ है" यह प्रतिज्ञप्ति किसी ''अनुपयुक्त'' स्थिति में प्रयुक्त होने पर भी निरर्थक न लगकर, सामान्य लगती है क्योंकि इसके अनुरूप किसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है और हम सोचते हैं कि " मैं जानता हूँ कि ..." शब्द संशय-रहित सभी स्थितियों में प्रयुक्त किये जा सकते हैं, और इसीलिए उनमें सन्देह की कल्पना भी नहीं की जा सकती। | ||
<references /> | 11. "मैं जानता हूँ" अभिव्यक्ति के प्रयोग का वैशिष्ट्य हम समझ ही नहीं पाते। | ||
12. – क्योंकि "मैं जानता हूँ" अभिव्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति का विवरण देती प्रतीत होती है जिसमें ज्ञात विषय की किसी तथ्य के समान गारण्टी दी गई हो । “मैं सोचता था कि मैं जानता हूँ" इस अभिव्यक्ति को हम सर्वदा भूल जाते हैं । | |||
13. क्योंकि " ऐसा है " प्रतिज्ञप्ति का अनुमान किसी अन्य व्यक्ति के " मैं जानता हूँ कि ऐसा है" कहने से नहीं किया जा सकता न ही इसका अनुमान इसे इस कथन से जोड़कर किया जा सकता है कि यह झूठ नहीं है । – किन्तु " ऐसा है " का अनुमान क्या मैं अपने ही कथन " मैं जानता हूँ" से नहीं कर सकता ? अवश्य; और "वहाँ एक हाथ है " इस प्रतिज्ञप्ति की निष्पत्ति " वह जानता है कि वहाँ एक हाथ है " इस प्रतिज्ञप्ति से की जा सकती है। किन्तु उसके "मैं जानता हूँ कि ..." कहने से यह निष्पन्न नहीं होता कि वह वास्तव में इसको जानता है । | |||
14. वह वस्तुतः जानता है इस बात को तो सिद्ध करना होगा। | |||
15. यह सिद्ध करना होगा कि कोई भी भूल असंभव है। "मैं जानता हूँ" यह आश्वासन काफी नहीं है। इस आश्वासन से तो इतना ही पता चलता है कि मैं त्रुटि कर ही नहीं सकता, पर यह तो ''वस्तुनिष्ठापूर्वक'' सिद्ध करना होगा कि मैं इस बारे में त्रुटि नहीं कर रहा । | |||
16. "यदि मैं किसी विषय को जानता हूँ तो मुझे यह भी पता होता है कि मैं उसे जानता हूँ, इत्यादि" ऐसा कहने का अर्थ है : "मैं उसे जानता हूँ" का अर्थ है "मैं उसके ''बारे'' में त्रुटि नहीं कर सकता" । परन्तु मेरे त्रुटि न करने की क्षमता को वस्तुनिष्ठापूर्वक सिद्ध करना होगा । | |||
17. मान लीजिए कि किसी वस्तु को इंगित करते हुए मैं कहता हूँ "मैं इस बारे में त्रुटि कर ही नहीं सकता (कि) : वह एक किताब है "। यहाँ पर त्रुटि किस प्रकार की होगी? क्या इसके बारे में मेरी कोई ''स्पष्ट'' धारणा है ? | |||
18. प्राय: "मैं जानता हूँ" का यह अर्थ होता है : मेरे पास अपने कथन के लिए उचित आधार हैं। भाषा-खेल से परिचित कोई भी व्यक्ति यह मानेगा कि मैं जानता । भाषा-खेल से परिचित कोई भी व्यक्ति यह कल्पना कर सकता है कि उस प्रकार के विषय को ''कैसे'' जाना जाता है । | |||
19. "मैं जानता हूँ कि यह एक हाथ है " इस कथन के आगे तो यह कहा जा सकता है : " क्योंकि मैं ''अपने'' हाथ को ही देख रहा हूँ" । फिर कोई भी समझदार व्यक्ति इस पर संशय नहीं करेगा कि मैं जानता हूँ । – न ही कोई प्रत्ययवादी इस पर संशय करेगा; अपितु वह तो यही कहेगा कि यहाँ पर वह उस व्यावहारिक संशय की बात नहीं कर रहा है जिसे निरस्त किया जा रहा है, परन्तु वह उससे भी ''आगे'' के संशय की बात कर रहा है। – इस ''मरीचिका'' को तो किसी अन्य ढंग से सिद्ध करना होगा । | |||
20. उदाहरणार्थ, "बाह्य जगत् की सत्ता पर संशय करने" का अर्थ किसी ऐसे ग्रह की सत्ता पर संशय करना नहीं होता जिसकी सत्ता को बाद के प्रेक्षणों ने सिद्ध किया हो । – या फिर, क्या मूअर यह कहना चाहते हैं कि यह उनका हाथ है इस के बारे में जानने और शनि ग्रह की सत्ता के बारे में जानने में गुणात्मक भेद होता है? अन्यथा शनि ग्रह की खोज के बारे में, और उसकी सत्ता के बारे में शंकालुओं को बतलाना और यह कहना संभव होना चाहिए कि उसकी सत्ता बाह्य जगत् की सत्ता-सिद्धि से भी सिद्ध हो जाती है। | |||
21. वास्तव में मूअर के दृष्टिकोण का अर्थ यह है : 'जानने' के प्रत्यय में और 'विश्वास होने', 'अनुमान करने', 'संशय करने', 'कायल होने' जैसे प्रत्ययों में उतनी ही समानता है जितना कि "मैं जानता हूँ कि..." कथन गलत नहीं हो सकता। और यदि ऐसा है तो ऐसे वचन से कथन की सत्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। पर यहाँ " मैं समझता था कि मैं जानता हूँ" इस अभिव्यक्ति को अनदेखा किया जा रहा है।–किन्तु यदि उपर्युक्त बात अग्राह्य है तो ''कथन'' में त्रुटि भी तार्किक रूप<references /> |